यौन सुख ,यौन संतुष्टि से जुड़ी है महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वाश्थ्य की नवज .डेली टेलीग्राफ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जो महिलायें यौन सुख के चर्म तक पहुँचती हैं ,वह जीवन ऊर्जा से ही लबालब नहीं रहती उनकी सोच भी सकारात्मक ,सेहत भी बनी रहती है .सवाल यौन संबंधों की बारंबारता ,फ्रीकुएंसी का नहीं है ,गुणवत्ता का है ।
२६ -६५ साला महिलाओं पर सम्पान्न इस अध्धय्यन से पुष्ट हुआ है ,सवाल यह नहीं है कितनी बार एक महीने में शारीरिक सम्बन्ध बनाए गए ,मैथुन रत रहे ,सवाल उस चर्म सुख का है जहाँ तक हर औरत पहुंचना चाहती है ,मैथुन की सम्पूर्णता का है .वह महिलायें जो अपने यौन जीवन से प्रसन्न और संतुष्टथीं , तन और मन दोनों से तंदरुस्त दिखीं ,बरक्स उन मोतार्माओं के जो मैथुन रत तो ज्यादा होती थे लेकिन यौन संतोष से महरूम (वंचित )ही थीं मोनाश यूनिवर्सिटी की सोनिया डेविसनने जिनके नेत्रित्व में यह अध्धय्यन आगे बढाया गया बतलाया -हमारा मकसद यौन संबंधों की गुणवत्ता (क्वालिटी )और तंदरुस्ती के परस्पर अंतर्संबंध के अलावा यह भी पता लगाना था -जहाँ तक यौन सुख का ताल्लुक है ,रजस्वला (प्रिमेनोपोज़ल )और रजोनिवृत्त (पोस्ट -मेनोपौज़ल )महिलाओं के यौन जीवन में क्या फर्क है ,है भी या नहीं ।।
पता चला जो महिलायें अपनी सेक्स लाइफ से संतुष्ट नहीं थी ,उनमे ना जीवन ऊर्जा उतनी थी और और ना तंदरुस्ती .औरत के स्वाश्थ्य की संभाल और देखभाल से उसके यौन जीवन का सीधा सम्बन्ध है ,यही इस अध्धय्यन का संदेश है ।
वह मर्द कृपया नोट करें जो सुरक्षा कवच धारण कर कुरुक्षेत्र के मैदान में कूद जातें हैं ,गोला बारी करतें हैं और बस दूसरी तरफ़ करवट लेकर लेट जातें हैं बिना यह देखे -दूसरी तरफ़ कोई हताहत हुआ भी या नहीं ?जब की यह मामला परस्पर एक साथ चरम पर पहुँचने से जुडा है ,लापरवाही के साथ लक्ष्य हीन गोलीबारी से नहीं .यहाँ दुश्मन और दोस्त दोनों को समर्पण करना होता है ।
ज्यादा तर औरतों ने बतलाया ,अक्सर (५० फीसद मामलों में हमबिस्तर होने पर )पहल मर्द की तरफ़ से होती है ,ज़ाहिर है अंजाम तक भी उसे ही ले जाना है ,नाव जो खे रहा है ,बीच मझधार में छोड़ कर कैसे चल देता है ? किनारे तक पहुँचाओ भैया ,नैया ।
सन्दर्भ सामिग्री :-"ग्रेट सेक्स कीप्स वोमेन हेल्दी "(टाइम्स आफ इंडिया ,अक्तूबर १ ,२००९ ,पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009
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