कोम्प्रिहेंसिव इवेल्युएशन फॉर ऑटिज्म स्पेक ट्राम डिस -ऑर्डर्स (ज़ारी....).
गत पोस्ट से आगे ....
माहिरों के अनुसार डेव -लप -मेंटल डिले का पता लगाने के लिए "फोर्मल ऑडियो -लोजिकल ही -यारिंग इवेल्युवेशन तथा लेड स्क्रीनिंग भी बच्चों की होनी चाहिए .यद्यपि कुछ ही -यारिंग लोस (श्रवण ह्रास )से सम्बंधित समस्याएं ए एस डी (आत्म विमोह स्पेक्ट्रम विकारों ) में मिल सकतीं हैं लेकिन कई बार ऐसा समझ ज़रूर लिया जाता है लेकिन उनमे ही यारिंग -लोस नहीं होता है .हाँ यदि बच्चे को यदि कोई संक्रमण कान में हुआ है तो अस्थाई तौर पर श्रवण सम्बन्धी समस्या आसकती है .
लेड स्क्रीन्निंग उन बच्चों के मामले में ज़रूर करवानी चाहिए जो देर तक "ओरल मोटर स्टेज "में रहतें हैं जिस दरमियान वह हर चीज़ जो भी मिल जाए जहां भी मिल जाए फट मुह में रख लेतें हैं ।
आत्मविमोह विकार से ग्रस्त बच्चों में अकसर लेड का बढ़ा हुआ स्तर उनके रक्त में देखा गया है ।
परम्परा के अनुरूप यह माहिरों की टीम का दायित्व बनता है वह बच्चे का हर पहलू से निरीक्षण करे उसकी कमजोरियों का ,ख़ास ताकत का ,स्ट्रेंग्थ का आकलन कर रोग निदान करें .फिर अपने मूल्यांकन के नतीजे बच्चे के केयर गिवर /माँ -बाप को बतलाएं उनसे खासकर इसी बात के लिए मिलकर ।
बेशक जिस वक्त माँ बाप को रोग निदान का पता चलता है उनके होश उड़ जातें हैं हालाकि वह जानते रहें हैं उनके बच्चे के साथ सब कुछ ठीक ठाक नहीं था .ऐसे समय पर जो माँ -बाप के लिए बेहद संवेदना के क्षण होतें हैं हालाकि माहिरों से सवाल पूछने की मन :स्थिति नहीं रहती है लेकिन सवाल पूछे जाने चाहिए क्योंकि यह एकअकेला मौक़ा होता है उनके लिए एक साथ इतने माहिरों से बच्चे के ताल्लुक कुछ भी पूछ ने का .आगे के लिए अनुदेश लेने का .इस भेंट में ज्यादा से ज्यादा पूछा जाना चाहिए जो बड़े महत्व का हो सकता है .
इन तमाम माहिरों के नाम ,पते नोट किये जाने चाहिए ताकि वक्त ज़रुरत पर आइन्दा उनसे मिला जा सके .(ज़ारी...).
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