हेवी टीन्स एट रिस्क ऑफ़ हार्ट डिजीज ईयर्स लेटर (हेल्थ .कॉम ,अप्रैल ८,२०११ ).
न्यू इंग्लेंड जर्नल ऑफ़ मेडिसन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार किशोरावस्था में लडकों का वजन थोड़ा सा भी ज्यादा रहने पर आगे चलकर व्यस्क होने पर उनके लिए दिल की बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है भले वह फिर अपना वजन कम करके छरहरे ही क्यों न हो जाएँ ।
अध्ययन के अनुसार इन लडकों के लिए दिल की बीमारियों के रोग निदान द्वारा पुष्ट हो जाने का ख़तरापैंतीस के होते होते इनके छरहरे हमउम्र रहे किशोरों की बनिस्पत सात गुना बढ़ जाता है ,इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता व्यस्क होने पर इनका वेट क्या था .
औसत किशोरों की बनिस्पत जो लडके हेविअर रहतें है उनके लिए भी यह ख़तरा बढा हुआ रहता है भले फिर उनका बी एम् आई (बॉडी मॉस इंडेक्स यानी किलोग्रेम में इनका वजन /(ऊंचाई मीटर्स में )२ जिसे किलोग्रेम /मीटर स्क्वायर में व्यक्त किया जाता है .)इस उम्र के हिसाब से सामान्य परास (नोर्मल रेंज )में ही क्यों न रहा हो ।
गनीमत है यही बात मधुमेह के लिए सही नहीं है .वयस्क के बतौर आपका बी एम् आई कितना है इस बात पर मधुमेह- २(सेकेंडरी डाय -बिटीज़ )का ख़तरा निर्भर करता है न कि किशोरावस्था के बी एम् आई पर ।
इसका मतलब यह है पतला होना आपका जाया नहीं गया .सही,स्वास्थ्य के अनुरूप भोजन और दैनिक व्यायाम मधुमेह से बचाए रखने में दूर तक जाता है ।
जो व्यस्क होने पर ओबेसिटी के दायरे में नहीं आतें हैं उनके लिए मधुमेह का ख़तरा कम हो जाता है ,लेकिन दिल की बीमारियों पर यह बात लागू नहीं होती है .यही कहना है इस अध्ययन के अगुवा रहे आमिर तिरोश का .आप ब्रिग्हम एंड वोमेन्स अस्पताल ,बोस्टन में एन -डॉ -क्राई -नोलोजिस्त हैं ,स्रावी तंत्र से जुड़े रोगों के माहिर हैं .दिल के लिए ख़तरा सिर्फ वजन कम कर लेने से कम नहीं होता है .हमारे शरीर की स्मृति में दर्ज़ होजाता है हम किस दौर में मोटे थे .कब हमारा बी एम् आई ज्यादा था ।
आपका वर्तमान में वेट तथा हालिया वेट चेंज (हाल फिलाल वजन में आया बदलाव )मधुमेह -२ होने के खतरे को प्रभावित करता है ।
जबकि अ -थीई -रो -स्केलेरोसिस (धमनियों का संकरा और कठोर पड़ना ,अन्दर से खुरदरा होना )जो अकसर दिल की बीमारियों को रेखांकित करता है मोटापे के साथ साथ चलता हैं .
पूअर डाईट(पोषक तत्वों से रहित खुराक ) तथा सिदेंटरी लाइफ स्टाइल (बैठे बैठे दिन भर काम करने की जीवन शैली गत मजबूरी )मधुमेह तथा दिल की बीमारियों दोनों को ही बढा चढ़ा ,उग्र बना देता है ,भड़का देता है ।
इस स्थिति से फिर उबरा नहीं जाता है ,इट इज डिफिकल्ट टू रिवर्स ।भले फिर आप वजन भी घटा लें ।
नुकसान जो हो गया उसकी भरपाई नहीं हो पाती है ।
अलबत्ता नोट किया जाए :केवल ओवर वेट होना ही इन दोनों दिल की बीमारियों और मधुमेह के लिए उत्तरदाई नहीं है ,न्यूट्रीशन (पोषण ),एक्सरसाइज़ (व्यायाम /कसरत ),दूसरी जीवन शैलियों का चयन (शाकाहारी या मांसाहारी ,टी -टोटलर या एल्कोहलिक ड्रिंक्स का शौक ,गैर -परहेजी )जोखिम को एहम रूप और ज्यादा निर्धारित करते हैंज्यादा असर ग्रस्त करतें हैं .,बनिस्पत केवल बॉडी साइज़ के ।
दो व्यक्तियों का बी एम् आई यकसां होते हुए भी उनके लिए मधुमेह के खतरे का वजन अलग अलग हो सकता है ।
दिल की बीमारियों के लिए भी यह ख़तरा दोनों के लिए एक दम से अलग अलग हो सकता है ।
सवाल यह है इनमे से कौन रोजाना कसरत करता है कौन नहीं .एहम सवाल यह है ।
बात साफ़ है भाई !असल बात है जीवन शैली का अपने लिए चयन .कौन सी जीवन शैली आप अपनाए गले लगाएं हैं ?
वास्तव में अध्ययन में शुमार कुछ लड़के जिनका बी एम् आई नोर्मल माना गया था उनके लिए वयस्क के बतौर दिल की बीमारियों का ख़तरा बढ़ गया था .
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2 टिप्पणियां:
आपने लिखा है कि....
लडकों का वजन थोड़ा सा भी ज्यादा रहने पर आगे चलकर व्यस्क होने पर उनके लिए दिल की बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है...
कृपया लडकियों के बारे में भी जानकारी दें..तो कृपा होगी.
Md this particularstudy was related to boys also so the findings can not be extended and apply to women .
Thanks for yr kind comments .
veerubhai.
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