अकसर किशोरावस्था में ओसीडी के लक्षण दिखलाई देतें हैं ,युवावस्था में दाखिल होते हुए भी .छोटे बच्चों में ओसीडी जैसे लक्षण दिख सकतें हैं लेकिन कई अन्य विकारों की तरफ से भी चले आ रहे हो सकतें हैं ये लक्षण ।
इसलिए पहले "अटेंशन देफिषित डिस -ऑर्डर (अटेन्सन डेफिसिट हाई -पर -एक्टिविटी -डिस -ऑर्डर ),ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस -ऑर्डर्स,"तूरेट्स सिंड्रोम "को दर -किनार करना चाहिए, रुल आउट करना चाहिए जिसके लिए व्यापक मेडिकल और मनो -वैज्ञानिक परीक्षण किये जाने चाहिए तब ओसीडी का सोचा जाए ।
अलावा इसके ओसीडी इक एन्ग्जायती डिस -ऑर्डर है और बच्चों में एन्ग्जायती का स्वरूप बदलता रहता है ,कारक भी ,समय के साथ बदल जातें हैं ,फोकस भी ।
इसलिए ज़रूरी नहीं है जिसमे बाल्य काल में ओसीडी के लक्षण दिखे वह बालिग़ होने पर भी बने रहें और उसे ओसीडी हो ही रोग निदान ,दूध का दूध पानी का पानी कर देता है ।
(ज़ारी ...)।
अगली पोस्ट में पढ़ें :ओसीडी में रोगनिदान कैसे किया जाता है ,इलाज़ क्या है और कैसे किया जाता है .
रविवार, 17 अप्रैल 2011
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