दी अडोली -सेंट ईयर्स ऑफ़ पीपुल विद ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस -ऑर्डर्स ।
किशोरावस्था का समय बढ़ते विकसते बच्चों के लिए वैसे ही संभ्रम और स्ट्रेस का होता है .उनका शरीर विकस रहा होता है हार्मोनल परिवर्तन उनकी आवाज़ को भी बदल देतें हैं ऐसे में अपनी बडिंग सेक्स्युअलिति को देख कर आत्म विमोहिक विकार से ग्रस्त किशोर और भी भ्रमित हो जातें हैं उन्हें भी इस सब शारीरिक उठानों बदलावों को समझने के लिए मदद की ज़रुरत पडती है .
कुछ व्यवहारों में इस दरमियान सुधार होता है जबकि कुछ और व्यवहार बदतर हो जातें हैं .आत्म विमोहिक व्यवहार और भी बढ़ सकता है ,आक्रामकता में भी इजाफा हो सकता है यही इक तरीका होता है नए नए तनाव और भ्रम से निपटने का ।
यही वह समय है जब बच्चे सामाजिक तौर पर भी ज्यदा संवेदी हो उठतें हैं .एक तरफ कील मुहांसों की चिंता अपनी छवि और अपनी लोकप्रियता ,ग्रेड्स और डेट्स पर ध्यान ।
ऐसे में आत्म विमोह विकारों से ग्रस्त किशोर -गण अपनीवस्तु- स्थिति,रीयलिटी से वाकिफ होकर और भी दुखी हो जातें हैं वह देखतें हैं उनके दोस्त बहुत कम है ,कोई डेटिंग पर नहीं बुलाता .जबकि उनके तमाम हम- उम्र मज़े कर रहें हैं अपने करियर को लेकर तरह तरह के खाब बुन रहे हैं ।डेटिंग पर जा रहें हैं
बेशक यह दुःख कुछ को अन्दर से प्रेरित भी करता है व्यवहार बदलने के लिए कुछ नया कर गुज़र जाने के लिए .सामाजिक हुनर में महारत हासिल करने के लिए .(ज़ारी ....)
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