शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

ऍफ़ डी ए वेज़ फ़ूड डाई ,हाई -पर -एक्टिविटी लिंक .

क्या खाद्य सामिग्री का सौदर्य बोध बढाने वाली खासकर बच्चों को लुभाने वाली डाईज का चलन कुछ नौनिहालों को हाइपर एक्टिव बना सकता है .अटेंशन डेफिसिट हाई -पर -एक्टिविटी डिस-ऑर्डर की वजह या पहले से चली आरही कंडीशन को बद से बदतर बना सकता है ।
१९७० आदि के दशकों से यह चर्चा विवाद में रही है .डॉ और कुछ उपभोक्ता मामलों के माहिर सांस रोके सोचते रहें हैं क्या संशाधित खाद्यों में स्तेमाल कृत्रिम रंजक (आर्टिफीशियल )डाईज नौनिहालों में हाइपर -एक्टिविटी की वजह बन रही हैं ।
अमरीकी खाद्य और दवा संस्थाकी सलाहकार समिति अब साक्ष्यों को खंगाल रही है .आखिर फ़ूड डाईज और व्यवहार में आने वाले फर्क का कोई रिश्ता है भी या नहीं ?
दी सेंटर फॉर साइंस इन दी पब्लिक इंटरेस्ट (वाशिंगटन डी सी आधारित इक वाच डॉगग्रुप )ने २००८ में इक पिटीशन के तहत ऍफ़ डी ए से आठ अलग अलग फ़ूड डाईज को प्रतिबंधित करने की पेश काश की थी जिनमे "यलो -५ "जिसका लेमन -लाइम गेटोरेड से लेकर मकारोनी और चीज़ मिक्सिज़ में भी स्तेमाल होता है ,लकी चार्म सीरियल्स में भी कई और मनभावन लुभाऊ खाद्यों में होता है ,शामिल थी .
ऍफ़ डी ए ने इस पिटीशन का पुनर -आकलन किया २०१० में ,पता चला कलर एडितिव्ज़ सीधे सीधे हाई -पर -एक्टिविटी की वजह नहीं बनतेंहैं अलबत्ता ऍफ़ डी ए ने इस बात से इनकार भी नहीं किया पहले से चली आई व्यवहार गत समस्या ,क्रोनिक अटेंशन एंड डेफिसिट एंड हाई -पर -एक्टिविटी डिस -ऑर्डर बद से बदतर हो सकती है ।
सलाहकार समिति क्या फैसला करती है सिर्फ अनुमेय है लेकिन रिसर्च फिलवक्त अ -निर्णीत है ,न इधर है न उधर .नेच्युरल स्टेंडर्ड रिसर्च के माहिरों का यही कहना है .अलबत्ता कई शोध कार्य यह भी बतलातें हैं ए डी एच डी के सिम्टम्स इन डाईज के चलन से और भड़क सकतें हैं खासकर क्रोनिक मामलों में .

1 टिप्पणी:

virendra sharma ने कहा…

shukriyaa zanaab kaa jaankaari ke liye .
veerubhai .