कोम्प्लिकेसंस इन एपिलेप्सी :
कुछ मौके ऐसे होतें हैं जब सीज़र खतरनाक हालातों में ले आता है असरग्रस्त व्यक्ति को भी उससे जुड़े लोगों को भी .मसलन :
(१)अगर आप सीज़र के शुरू होते ही गिर गए तब आपकी हड्डी भी टूट सकती है सिर में भी खतरनाक ढंग से चोट लग सकती है .सीज़र के रूप भी तो अनेक हैं देखने वाले को पता ही नहीं चलता है कई मर्तबा मसलन असरग्रस्त व्यक्ति का " ब्लेंक स्टेअर "हो जाना वह बस एक- टक किसी चीज़ को निहारने लगता है .उसे कोई गंध आने लगती है जिसका आसपास के व्यक्ति को कोई पता नहीं चलता है .लड़ -खडाता है और गिर जाता है ,अशक्त होकर .
(२)पानी में डूबके मर जाने का ख़तरा :यदि आपको सीज़र ज़ारी रहतें हैं तब आपके तैरते वक्त आकस्मिक दौरे से डूब जाने के खतरे बाकी लोगों की बनिस्पत १५ गुना बढ़ जातें हैं ।
(३)यदि सीज़र के दौरान आपको बे होशी या नीम -होशी रहती है तब आपके लिए कार चलाना वाजिब नहीं है ,जरा सा ध्यान भंग ऐसे में किसी बड़ी दुर्घटना की भी वजह बन सकता है .यही बात किसी भी मशीन पर काम करते हुए भी लागू होती है ।
तीन महीने से लेकर दो साल तक यदि आपको सीज़र का ख़तरा नहीं रहता है ,सीज़र दवा से थमे रहतें हैं कुछ अमरीकी राज्यों में तभी आपको ड्राइविंग लाइसेंस मिलतें हैं .इसी आशंका से ।
(४)गर्भावस्था के दौरानभावी - माँ और गर्भस्थ दोनों के लिए गिर कर चोट ग्रस्त हो जाने का एकसमान ख़तरा बना रहता है .सीज़र्स से बचाव इस दौर में और भी ज्यादा ज़रूरी होता है .कदम दर कदम डॉ की सलाह पे चलना अनुदेश मानना स्वस्थ बच्चे के लिए आश्वश्त भी करता है ,स्वस्थ बच्चा पैदा भी होता है एपिलेप्टिक गर्भवती महिलाओं को ।
अलबत्ता कई एंटी -एपिलेप्टिक दवाएं बर्थ डि-फेक्ट्स के खतरे को बढा सकतीं हैं ,ये खबरदारी रखना होना डॉ के लिए भी ज़रूरी रहता है ।
कुछ पेचीला -पन कभी कभार बिरले ही देखने में आतें हैं :
मसलन स्टेटस एपिलेप्तिकस मामलों को लें -यह वह स्थिति है जिसमे सीज़र ५ मिनिट से ज्यादा देर तक बने रहें और पिंड न छोड़े व्यक्ति का बारहा फिट्स पडतें ही रहें ,मरीज़ को बीच के अंतराल में होश भी न रहे ,बे -होशी ही बनी रहे ।
ऐसे लोगों के लिए "परमानेंट ब्रेन डेमेज का ख़तरा भी बढ़ जाता है ,मौत का भी ।
(५)सडन अन -एक्स -प्लेंड डेथ इन एपिलेप्सी (एस यु डी ईपी ):जिन लोगों का रोग पर नियंत्रण बहुत गया बीता ,बहुत ही पूअर रहता है ,उनके लिए इस प्रकार की समझ न आने वाली आकस्मिक मौत का ख़तरा भी मौजूद हो जाता है ।
कुलमिलाकर १००० के पीछे एक व्यक्ति की ऐसे ही मामलों में आकस्मिक और समझ ना आने वाली मौत हो जाती है .जिसकी किसी के पास कोई व्याख्या नहीं रहती है ।
यह उन मामलों में ज्यादा देखी गईं हैं जिनमे सीज़र दवा से काबू में नहीं आतें हैं ।
सीज़र की एक ख़ास किस्म में (जन्रेलाइज़्द टोनिक -क्लोनिक सिज़र्स ) जबकि ये बारहा होते भी रहें यह ख़तरा खासतौर पर बढा हुआ रहता है .
(ज़ारी...).
गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
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2 टिप्पणियां:
बड़ी कठिन सी बात बड़े ही सरल ढंग से प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई...
Tahe dil se shukriya Md aapkaa !
veerubhai
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