थिरेपीज़ फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी :
नॉन -ड्रग थिरेपीज़ सेरिब्रल पाल्ज़ी से ग्रस्त व्यक्ति की सामर्थ्य और क्षमता को ,फंक्शनल एबिलितीज़ को धीरे - धीरे बढ़ाती हैं इसलिए इस विकार के प्रबंधन में इनका बड़ा योगदान है :
फिजिकल थिरेपीज़ (फिजियो -थिरेपी ):इसके तहत मसल ट्रेनिंग तथा व्यायाम आतें हैं जो असरग्रस्त व्यक्ति की स्ट्रेंग्थ (कूवत ,क्षमता )फ्लेक्ज़िबिलिती ,संतुलन ,मोटर डेव -लप -मेंट तथा मोबोलिती में सहायक रहतीं हैं ।
बच्चे को ब्रेसिज़ या फिर स्प्लिन्ट्स की भी सिफारिश की जाती है .इन सब सपोर्ट से फंक्शन में सुधार आता है ,मसलन चलना फिरना थोड़ा मुमकिन और आसान लगने लगता है .
स्टिफ मसल की स्ट्रेचिंग भी कई फिजियो करवातें हैं ताकि कोंत्रेक्चर्स से बचाव हो सके ।
कों -ट्रेक -चर :इज परमानेंट टाईट -निंग ऑर शोर्ट -निंग ऑफ़ ए बॉडी पार्ट सच एज ए मसल ,ए टेंडन ऑर दी स्किन ओफ्तिन -टाइम्स रिज़ल्टिंग इन दिफोर्मितीज़ ।
ए टेंडन इज एन इलास्टिक कोर्ड ऑर बेंड ऑफ़ टफ वाईट फाइब्रस कनेक्तिव टिश्यु देट अतेचिज़ ए मसल टू ए बोन ऑर अदर पार्ट .
(२)अक्युपेश्नल थिरेपी :बच्चे को आत्म निर्भर होने की दीक्षा देती है यह नॉन -ड्रग -चिकित्सा .इसमें वैकल्पिक रणनीतियों और कई अपनाने योग्य एदेप्तिव इक्यूपमेंट्स का भी स्तेमाल किया जाता है .नतीज़न वह दैनिक गतिविधियों में घर बाहर स्कूल और समाज में भाग लेने में अपने को समर्थ पाता है .रोजमर्रा के कामों के साथ तालमेल बिठा पाता है .
(३)स्पीच थिरेपी :
इसके तहत साइन लेंग्विज का स्तेमाल करके बच्चे को सम्प्रेषण की काबलियत दी जाती है ,साफ़ साफ़ बोलना बोल पाना भी सिखाया जाता है ।
रोजमर्रा काम आने वाली चीज़ों की तस्वीरें भी सम्प्रेषण के लिए स्तेमाल की जातीं हैं . कोलाज़ की तरह इन्हें इक बोर्ड पर दर्शाया जाता है ।
तस्वीरों की तरफ इशारे करके वाक्य बनाना भी सिखलाया जाता है ।
खाने और निगलने में स्तेमाल होने वाली पेशियों की दिक्कत दूर करने में भी स्पीच थिरेपी मदद करता है .
सर्जिकल ऑर अदर प्रो -सीज़र्स यूज्ड फॉर सेरिब्रल पाल्ज़ी :
(१)पेशियों की जकड़ टाईट -नेस और हड्डियों के विकारों के प्रबंधन के लिए -
ऑर्थो -पीडिक सर्जरी आजमाई जाती है .बालकों के मामलों में गंभीर कोत्रेक्चर्स और दिफोर्मितीज़ की दुरुस्ती के लिए अश्थियों और जोड़ों की सर्जरी भी करनी पड़ती है ताकि बाजुओं और टांगों का एलाइन्मेन्त ठीक किया जा सके ,इन अंगों को उनके सही स्थान पर बिठाया जचाया जा सके ।
शल्य छोटे रह गई पेशियों और टेंदंस की लम्बाई को थोड़ा बढाने में भी कारगर सिद्ध हुई है .ये तमाम करेक्टिव सर्ज्रीज़ एक तरफ दर्द में राहत पहुंचाती हैं दूसरी तरफ मोबिलिटी को भी बढ़ातीं हैं ,गति -करने चलने फिरने में सुधार लाती हैं .
ब्रेसिज़ और वाकर या फिर बैसाखियों के सहारे चलना पहले से आसान हो जाता है ।
(२)नाड़ियों को काटके भी फैंका जाता है (सेवेरिंग नर्व्ज़):
खासे गंभीर मामलों में जब और कोई ट्रीट -मेंट असर नहीं दिखा पाता तब -सर्जन मे कट दी नर्व्ज़ सर्विंग दी स्पाज्तिक मसल्स .बस मसल भी रिलेक्स हो जाता है दर्द में भी आराम आजाता है .लेकिन इसकी वजह से नंब -नेस भी आसकती है .
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
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2 टिप्पणियां:
एक जरुरी पोस्ट हमारी जानकारी बढ़ाने में सहायक आपका बहुत बहुत आभार
Bahut Bahut shukr guzaar hun sunil bhaai aapkaa .Aap log hi lekhan kaa triggar ban rahen hain .lekhan ko prerit karten hain .
veerubhai .
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