हिस्टीरिया के बारे में जो साइंसदान अब तक जान चुके हैं उससे ज्यादा बड़ा सच वह है जो वह अभी जान नहीं सकें हैं इस मनोवाज्ञानिक (?)रोग के बारे में जिसके कायिक लक्षण तो होतें हैं कायिक रोग नहीं ,तब क्या यह अन -सुलझे ,अ -विभेदित रहे आये अतीत का तमाशा मात्र है ?
जो हो इस विचार को कि हिस्टीरिया एक मनो -वैज्ञानिक विकार है एक फ्रांसीसीन्यूरोलोजिस्ट जें -मार्टिन चरकात के काम ने आगे बढाया है .अपने जीवन के आखिरी दस साल इस स्नायु -रोग -विज्ञानी ने हिस्टीरिया के न्यूरो -पैथोलोजिकल अन्वेषण में बिताए.एक प्रकार से आपने ही हिस्टीरिया के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए आगे के लिए ज़मीन तैयार की .पुनर्वास किया इस रोग का वैज्ञानिक अध्ययन के एक विषय के रूप में .सिगमंड फ्रायड ने इनकी मृत्यु का आलेख लिखते वक्त इनके जीवन वृत्त के बारे में इस योगदान विशेष उल्लेख किया ।
लेकिन फ्रायड चरकात के इस विचार से सहमत नहीं थे ,आनुवंशिक कारण ,खानदानी विरासतही इस रोग की एक विशिष्ठ वजह बनती है .
लेकिन फ्रायड ने चरकात की सम्मोहन विद्या की भूरी भूरी प्रशंशा की जिसमे इस स्नायु विज्ञानी ने यह दिखलाया कि किस प्रकार मनो -वैज्ञानिक कारण ,नॉन -ओरगेनिक ट्रौमाज़"हिस्तेरिकल पेरेलिसिस "की वजह बनतें हैं .हिप्नोसिस (सम्मोहन विद्या )से चार्कोट ने इसे सिम्युलेट करके दिखलादिया ।
अब आधुनिक स्नायु -विज्ञान भी मानता है कहीं हायर इन दी ब्रेन कुछ होता है जो इस "हिस्तेरिकल पेरेलिसिस "की वजह बनता है .हालाकि वह फिजिकल और नॉन -फिजिकल माइंड में विभेद नहीं करता है .ए माइंड इज जस्ट माइंड ।
फ्रायड के अनुसार बाद के अन्वेषकों ने (पिएर्रे जनेत तथा जोसेफ ब्रयूएर )नेहिस्टीरिया के बारे में जिन नए मतों का प्रतिपादन किया वे मध्य -युगीन "खंडित चेतना :स्प्लिट कोंशाशनेस के ज्यादा करीब आजातें हैं .अंतर बस इतना है पुरानी अवधारणा में मरीज़ के ऊपर "डेमोनिक प्ज़ेशंस"भूत प्रेत बाधा के असर जैसे गैर वैज्ञानिक विचारों को तरजीह मिल रही थी और अब मनोवैज्ञानिक परिकल्पनाएं और अवधारणायें उनका स्थान लेने लगीं थीं ।
१८९० के दशक में खुद फ्रायड ने हिस्टीरिया पर अनेक लेख लिखे जिनके द्वारा आपने चरकात के शुरूआती काम को ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया .अपने विचारों को भी फ्रायडने एक नै परवाज़ दी हिस्टीरिया के बारे में ।
१९२० के दशक के बरसों में फ्रायड का सिद्धांत ब्रिटेन और अमरीका में खासा लोकप्रिय हुआ ।
फ्रायड ने जिस साइको -एनेलेतिक स्कूल ऑफ़ साइकोलोजी के ज़रिये हिस्टीरिया का समाधान प्रस्तुत किया वह खासा विवादित रहा ।
फ्रायड की साइको -एनेलेतिक थियरी के अनुसार मरीज़ में "हिस्तेरिकल सिम्टम्स"उसके अवचेतन मष्तिष्क से चले आतें हैं जो मरीज़ को साइकिक स्ट्रेस से बचाने का एक तरीका बनके आतें हैं (डिफेन्स मिकेनिज्म )।
साइकिक स्ट्रेस :चित्त के वे दवाब जिनका सम्बन्ध परा -शक्तियों से भी हो सकता है जो विज्ञान के दायरे से बाहर रहतें हैं मन के ऐसे कार्य -व्यापार ,दवाब आदि .साइकिक स्ट्रेस के तहत आयेंगें
"सब -कोंशाश मोतिव्ज़ इन्क्ल्युद प्रा -इमारी गैन ,इन व्हिच दी हिस्तेरिक सिम्टम्स रिलीव्ज़ दी स्ट्रेस एंड सेकेंडरी गैन इन व्हिच दी सिम्टम्स प्रोवाइड एन इन्दिपेन्देन्त एडवांटेज ऑफ़ स्टे -इंग होम फ्रॉम एन हेटिद जॉब .
सम क्रिटिक्स हेव नोतिद दी पोसिबिलिती ऑफ़ ए तर्शरी गैन व्हेन ए पेशेंट इज इन -दयुज्द सब -कानशश्ली टू डिस्प्ले ए सिम्तम बिकाओज़ ऑफ़ दी दिजायार्स ऑफ़ अदर्स .यानी जिनकी तवज्जो नहीं मिलती उनसे वह हासिल कर लेना हिस्टीरिया के लक्षणों की आड़ में ।"।
"दे -यर नीड बी नो गैन एट आल हाव -एवर इन ए हिस्तेरिकल सिम्तम "।
मसलन एक बच्चा होकी खेलते खेलते गिर सकता है .घंटों वह नहीं उठ पाता है क्योंकि उसने हाल ही में एक नाम चीन खिलाड़ी को होकी खेलते गिरते देखा था जिसकी गर्दन ही टूट गई थी ,और वह उठ नासका था .
(ज़ारी...)
सोमवार, 25 अप्रैल 2011
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2 टिप्पणियां:
हिस्टीरिया के विविध पहलुओं पर जानकारी भरी पोस्ट
shukriyaa zanaab !
veerubhai .
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