सोमवार, 6 सितंबर 2010

एक ओबसेशन यह भी :स्मैलो - रेक्सिया ?

ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिस -ऑर्डर्स भी अज़ब गज़ब हैं .इन्हीं में से एक है :स्माइल -ओ -रेक्सिया .यानी हमेशा यह सोचते रहना हमारी मुस्कान एक दम से अल्टीमेट हो .परफेक्ट हो .साथ में यह वहम भी पाले रहना ,परफेक्ट मुस्कान हासिल करने के लिए सौन्दर्य -वर्धक मुक्तावली शल्य ( कोस्मेटिक डेन -टिस्त्री) ,एक -मात्र उपाय है ।
डॉ .मिचेल जुक (विख्यात दन्त्य शल्यक ,कोस्मेटिक सर्जन ) ने पहली मर्तबा इस शब्दावली का स्तेमाल किया .यह भी एक प्रकार का ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिस -ऑर्डर है .अना -रेक्सिया नर्वोसा और एना -रेक्सिया बुलिमिया से भी आप ना -वाकिफ नहीं होंगें .एक में किशोरियों को मोटे हो जाने का भय सालता रहता है .भय - ग्रस्त हो वह कुछभी खाने पीने से डरने लगतीं हैं .शीशे में २४ घंटा अपनी फिगर निहारते रहना .जीरो साइज़ हासिल करने की कोशिश आखिर जान भी ले लेती है ।
दूसरे में बेशाख्ता खाना और फिर सायास उलटी (वोमिट इन्द्यूस )करते चलना .पहलवान ऐसा करतें देखे जा सकतें हैं .ताकि पौष्टिक तत्व शरीर में बढ़ते चले जाएँ .दोनों ही विवशताएँ इन्तहां हैं .एब्नोर्मल बिहेवियर है .और ऐसा जब तक करना लें उन्हें चैन नहीं आता ।
एक आदमी घर लोक करने के बाद ताला ही लौट लौट कर चेक करता रहता है "कहीं खुला तो नहीं रह गया "।
एक बारहा साबुन से हाथ ही साफ़ करता रहता है .और जब तक ऐसा ना कर ले बे -चैन रहेगा .यही विवशता ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिस -ऑर्डर है .लाचारी बन जाती है .

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