शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

मिनिमम इन्वेज़िव सर्जरी :नै दिशाएँ

व्हाट इज सिंगिल इन्सिश्जन (इन्सीजन )लापारोस्कोपिक सर्जरी ?
पित्ताशय की पथरी (गाल स्टोंस ),अपेंडिक्स ,जी आई ट्रेक्ट (गैस्ट्रो -इन्तेस्तिनल ट्रेक्ट )में मौजूद लघुआकारीय ट्यूमर को निकालने के लिए इन दिनों माहिर एस आई एल एस (सिंगिल इन्सीजन लेपारो -स्कोपिक सर्जरी का बेहतरीन स्तेमाल कर रहें हैं .हालाकि इसमें अतिरिक्त हूनर की ज़रुरत पडती है क्योंकि नाभि के पास लगाए गए एक छोटे से चीरे (डेढ़ से दो सेंटीमीटर )से ही सब कुछ करना पड़ता है .सारा कमाल लचीले इन्स्त्रयुमेंट्स और सर्जन के सधे हुए हाथों का रहता है . क्योंकि पहुँच के लिए इसी कट में से तीन एक्सेस पोर्ट्स दाखिल करवाने पडतें हैं .माइक्रो -कैमरा और हेंड इन्स्त्रयुमेंट्स इन्हीं की बदौलत काम करतें हैं ।
परम्परा गत शल्य में तीन से पांच और चीरे इन्हीं उपकरणों को दाखिल करवाने के लिए लगाने पडतें हैं .यहाँ सर्जन के हाथ बंध जातें हैं ,उतनी आज़ादी इंस्ट्रुमेंट्स के साथ सर्जन नहीं ले सकता ।सब कुछ एक दम से सधाहुआ ,सटीक .
लक्षित अंग की छवि एक बाहरी मोनिटर पर प्रक्षेपित की जाती है .इसे देख कर ही सर्जन अपना काम अंजाम देता है .शल्य के अंत में लक्षित अंग इसी एकल इन्सीजन से बाहर निकाल लिया जाता है ।
जितना बड़ा सर्जन उतना ही बड़ा चीरा नारा बदल कर छोटा चीरा सधे हुए सटीक हाथ हो गया है ।
ज़ाहिर है सर्जरी के बाद सब कुछ बिना किसी ख़ास झंझट के ठीक हो जाता है .पेचीलापन कमतर रहता है .ना सांस लेने में तकलीफ बाद शल्य के ना सीने में कोई तकलीफ .उदर की दीवार पर कोई विक्षति (विरूपण )नहीं .ना अतिरिक्त खून बहने का ख़तरा ना कोई कोई सदमा लगता है सर्जरी के खौफ का ।
मरीज़ चिकित्सा के बाद उसी दिन या फिर अगली सुबह अपने घर आजाता है दिस -चार्ज होकर .

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