'एग्रेशन इन चिल्ड्रन टाइड टू पेरेंटिंग ,नोट जेनेटिक्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,दिसंबर ४ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
बच्चों के व्यक्तित्व की आक्रामकता या अवसाद ग्रस्तता का सम्बन्ध उतना उनके जींस (बायलोजिकल पेरेंट्स की खानदानी -दाय जीवनइकाइयों या जीवन खण्डों )से नहीं जितना पेरेंटिंग या परवरिश और उस माहौल से होता है ,बच्चों के प्रति उस रवैये से होता है जिसमे उनका पल्लवन हो रहा है .यह बात फ़ॉस्टर पेरेंट्स तथा इन -वीट्रो -फर्टी -लाइजेशन से पैदा बच्चों पर भी लागू होती है यानी नेचर नहीं नर्चर का ज्यादा हाथ रहता है उनके व्यवहार की हेंकड़ी या अवसाद ग्रस्त होने के पीछे ।
ओटागो विश्व -विद्यालय के नेत्रित्व में एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने इस अध्ययन के नतीजे 'साइकोलोजिकल मेडिसन 'पत्रिका में प्रकाशित किये हैं .पता चला है पोजिटिव और निगेटिव पेरेंटिंग ही बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धी समस्याओं की वजह बनती है .फिर चाहे वह उनका आक्रामक और उग्र व्यवहार हो या उनका खुद का अवसाद ग्रस्त रहना हो जाना .पेरेंटिंग एन्वायर्नमेंट बच्चों के विकास में एहम भूमिका निभाता है ।
आखिर सभी बच्चे इन समस्याओं से क्यों नहीं ग्रस्त हो जाते ?सोचना माँ -बाप को है आप कैसा माहौल ,परवरिश मुहैया करवा रहें हैं अपने नौनिहालों को .विश्लेसन कीजिये इस पूरे परिवेश का ।
कहीं आप खुद ही तो ज्यादा होस्टाइल नहीं है अपने बच्चों के प्रति .जांच कीजिये अपने प्रतिकूल भाव की ,अति उग्र भावनात्मक व्यवहार की ।
विशेष :कहीं अतिरिक्त अनुशाशन और अपनी झख और जिद ,आदतों का निशाना आप बच्चों को तो नहीं बना रहें हैं .मैं ऐसी कई मम्मियों से वाकिफ हूँ जिनको यह मुगालता है कि पृथ्वी उनकी वजह से घूम रही है .वह अपनी भावनाएं और आदतें बच्चों पर मनमानी ढंग से थोप रहीं हैं .जोर ज़बरिया खिलाना और सुलाना तो इसमें शरीक ही है और भी बहुत कुछ है .मसलन मैड के बच्चों के साथ नहीं खेलना है .होम वर्क की सख्ती ,फटकार ,बड़ा होकर मजदूर बन जाना या सड़क पर झाड़ू लगा ना वगेरा वगेरा कहना जब तब .जबकि बच्चों की उम्र अभी पांच के नीचे है ,एक की ढाई औरदूसरे की चार साल से भी कम.फासला आपने नहीं रखा संतानों के बीच और खीझ उन पर .आखिर क्यों ?
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