'देखिये उस तरफ उजाला है जिस जगह रौशनी नहीं जाती 'बड़ी मौजू हैं दुष्यंत कुमारजी कि ये पंक्तियाँ 'अटेंशन देफिशित हाई -पर -एक -टीवीटी डिस -ऑर्डर के मामलों में ।
समय पर ज़रूरी चिकित्सा रोग निदान और सही पारिवारिक माहौल कमोबेश बच्चे को ए डी एच डी की गिरिफ्त से निकाल सकता है .दीचाइल्ड कैन परफोर्म एंड लिव विद इट ।
माहिरों के अनुसार माँ -बाप और टीचर्स के सहयोग के अलावा खासकर उन बच्चों के मामले में जो आक्रामक नहीं है और जिनका ताल्लुक स्टेबिल और सपोर्टिव होम एन्वायरन्मेंट से है ,उन्हें साइको -स्तिम्युलेंट ड्रग थिरेपी माफिक आती है .७५ फीसदऐसे ही मामलों में यह कारगर साबित होती है ।
साइको -स्तीम्युलेंत ड्रग में मिथाइल- फेनिदेत खासी सुरक्षित और असरकारी मानी जाती है .यह दवा 'इन्स्पिराल्सिर 'और 'अद्द्विसे' (एडवाइज )का मिश्र है ।
बेशक इसके पार्श्व प्रभावों में नींद में खलल ,अनिद्रा ,भूख का कम हो जाना अवसाद और सिर दर्द भी शामिल हैं ,उदर- शूल और हाई -ब्लड प्रेशर भी ,लेकिन दवा बंद करने पर यह पार्श्व प्रभाव भी नदारद हो जातें हैं ।
कुछ बच्चों में अवांच्छित प्रभाव न के बराबर ही सामने आतें हैं ,बस भूख थोड़ा सा कम लगती है .अलबत्ता इसका दीर्घावधि सेवन बच्चे की बढ़वार को असरग्रस्त कर सकता है इसीलिए डॉक्टर्स उसके वेट पर नजर रखते हैं ।
हर बच्चे के लिए खुराख अलग होती है दवा की ,इसे अन्य दवाओं के साथ भी समायोजित किया जा सकता है .अलबत्ता बच्चे का ध्यान टिकने लगता है वह परीक्षाओं के दौर से कामयाबी के साथ बाहर आता है 'एस एस सी 'और 'एच एस सी ' में अच्छे ग्रेड के साथ उत्तीर्ण होता है .बेशक दवा पर निर्भरता और दवा के फायदे के स्पष्ट लाभ को बच्चा समझने बूझने लगता है .सलाह मशविरे की ज़रुरत फिर भी बनी रहती है .अब उसका ध्यान टिकता है .फोकस होता है दो घंटा तक .लेकिन दवा की अपनी सीमाएं हैं और भी बहुत कुछ चाहिए दवा के अलावा .(ज़ारी ....)
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