मानसिक चिकित्सा की एक आनुषांगिक चिकित्सा कहा जा सकता है नीड़ चिकित्सा /नेस्ट थिरेपी को .खासकर उन मानसिक रोगियों पर यह कामयाब पाई गई है जो परम्परा गत किमो -थिरेपी से लाभ न ले पा रहें हों .इलनेस के क्रोनिक हो जाने पर शिजोफ्रेनिया हो या बाई -पोलर -इलनेस कई मरीजों को मेंटल सर्विसिज़ प्रतिकूल लगने लगतीं हैं .दे दू नोट रेस्पोंड टू कन्वेंशनल ट्रीटमेंट ।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम के विकार हों या मामला क्रोनिक स्ट्रेस का हो ,डिस -थीमिया का हो या किसी अन्य गंभीर मानसिक बीमारी का हो एसर्तिव कम्युनिटी ट्रीटमेंट से लेकर कम्युनिटी मेंटल हेल्थ सर्विसिज़ में नीड़ चिकित्सा आजमाई गई है ।
आखिर है क्या 'नीड़ चिकित्सा '?
लातिन भाषा का एक शब्द है एनाइदीयुएस (निडुस ) जिसका अर्थ नेस्ट या नीड़ /घोंसला होता है .इसी शब्द से व्युत्पत्ति हुई है इस सहयोगात्मक चिकित्सा पद्धति की जिसमे सारा जोर मरीज़ के माहौल को बूझ कर उसे तब्दील कर मरीज़ के अनुकूल बनाने पर दिया जाता है .खुद मरीज़ का सहयोग इसमें ज़रूरी हो जाता है यदि वह इस हालत में है की सहयोग कर सके .यहाँ एन्वायरन्मेंट ही चिकित्सा का हिस्सा बन जाता है .ऐसे में मरीज़ और शेष समाज पर भी मानसिक विकार का न्यूनतम दुष्प्रभाव पड़ता है ।
यह एक स्वेच्छिक चिकित्सा है जो मरीज़ अपनाता है उसपर थोपी नहीं जाती है नीडो -थिरेपी ।
बेशक एक प्रकार की कोंसेलिंग ही है नीडो -थिरेपी लेकिन यहाँ जोर माहौल को तब्दील करने पर दिया जाता है न की मरीज़ की पर्सेनेलिती को बदलने पर ।
क्लिनिकल साइकोलोजिस्तों ,एक्युपेश्नल थिरेपिस्तों ,सोसल वर्कर्स ,मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से जुडी नर्सों ,कम्युनिटी हेल्थ वर्कर्स को नीडो -थिरेपी में दक्ष बनाया जा सकता .अलबत्ता कर्म के प्रति पूर्ण समर्थन चाहिए .अध्यवसाय और दृढ़ता चाहिए स्वास्थ्य कर्मी में .
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
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