सिगरेट की गन्ध का एक झोंका(महक )भी शरीर पर अपने दुष्प्रभाव छोड़ता है .फेफड़ों का अस्तर तुरत इन्फ्लेम्द (लाल और सूजा सूजा सा) हो जाता है सिगरेट के धुयें के असर से .समय के साथ फेफड़ों की क्रोनिक बीमारी "एम्फिसीमा ".,क्रोनिक बोंकाइतिसआ घेरतीं हैं ।
साइंसदानों के मुताबिक़ सिगरेट का धुआं तत्काल असर करता है डेमेज करता है स्मोकर के फेफड़ों और डी एन ए को ,भले ही धुयें की मात्रा सीमित हो .सेकिंड हेंड स्मोक से भी यही नुक्सान होता है .यह कहना है अमरीकी संघीय अधिकारियों का ।
यु एस सर्जन जनरल रेगिना बेंजामिन धूम्रपान के चलन को घटाने कम करने की बहु -विध सिफारिश करतें हैं जिसमे टेक्स बढाने ,धूम्रपान प्रतिबंधित करने और ट्रीटमेंट भी इस बीमारी का शामिल है .कशलगाते ही नुकसानी होने लगती है फेफड़ों की .डी एन ए नष्ट होने के अलावा कैंसर भी हो सकता है भले ही स्मोक की इन्तेंसिती (क्वान्टिटी ) कम रहे ।
सिगरेट्स कम्पनियों ने अदबदाकर सिगरेट को एडिक्टिव बनाया है .इसीलिए इसकी लत सिगरेट सुलगाते ही पड़ जाती है .पहली सिगरेट सुलगाने ,सुट्टा लगाने भर की देर है ।
सिगरेट के धुयें में कोई सात सौ रसायन और रासायनिक यौगिक मौजूद रहतें हैं जिनमे सेंकडों विषाक्त होते है ,कमसे कम सत्तर कैंसर पैदा करते हैं .(कार्सिनोजंस कहतें हैं इन रसायनों को ).कोई भी सुरक्षित न्यूनतम मात्रा या एक्सपोज़र लेविल नहीं है सिगरेट स्मोक का .मुसीबत ही मुसीबत है .
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
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