टिप्स टूप्रिवेंट गाल्स्टोंस(प्रिवेंशन ,सितम्बर २०१० ,पृष्ठ १२ )
पित्ताशय का काम यकृत द्वारा तैयार किये गए पित्त (बाइल ज्यूस ) का भंडारण करते रहना है .पाचन की क्रिया में वक्त ज़रुरत के हिसाब से पित्ताशय पित्त का स्राव करता रहता है .(आयुर्वेद में स्वस्थ काया के लिए ,स्वस्थ मन के लिए वात, पित्त और कफ का संतुलन ज़रूरी बतलाया है ।).
जब पित्ताशय(गाल- ब्लेडर) यह काम ठीक से अंजाम नहीं दे पाताऔर वक्त ज़रुरत के मुताबिक़ पित्त पाचन के लिए नहीं हासिल हो पाता ,जब इसके सिकुड़कर पित्त स्राव की प्रक्रिया बाधित होने लगती है ,पित्त को यह बाहर नहीं उलीच पाता तब पित्ताशय में पथरी बनने लगती है .
कालान्तर में (वक्त के साथ )यह पित्त दूसरे पदार्थों से संयुक्त होने लगता है और सख्त होकर स्टोन जैसा कुछ गढ़ने लगता है ।
लेकिन ज़ब आप का खान- पान दुरुस्त रहता है तब पित्ताशय भी अपना काम बखूबी अंजाम देता है .इसलिए ज़रूरी है खान पान को भ्रष्ट ना होने दिया जाए .ईट वेळ ।
रोज़ मर्रा के व्रत उपवास ,भूखों रहना ,नाश्ता ना करना ,खाने के बीच में बड़ा अंतराल (रात का नौ बजे फिर अगलेदिन सीधा दोपहर का खाना वह भी डेढ़ दो बजे ।नाश्ता नदारद .
स्वास्थाय्कर खाना थोड़ा थोड़ा करके खाइए (बेशक दिन भर में ५-६ बार )।
देर रात खाने से बचिए .कहीं यह आपकी आदत तो नहीं ?
याद रहे डायबिटीज़ ,मोटापा ,पित्ताशय की पथरी की पारिवारिक पृष्ठ- भूमि ,पूर्व वृत्तांत वंश कुल में ,चिकनाई सनी खुराक सब मिलकर पित्ताशय की पथरी के खतरे के वजन को बढ़ातें हैं .
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
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1 टिप्पणी:
अच्छी जानकारी के लिए शुक्रिया
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