शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

हृद रोगों से बचे रहा जा सकता है ?

कैन यु प्रिवेंट हार्ट डीज़ीज़ ?योर हार्ट हेल्थ इज इन योर हेंड्स इन मोर वेज़ देन यु कैन इमेजिन (डॉ विकाश सैनी क्लिनिकल कार्डियो -लोजिस्ट एंड रिसर्चर ,हारवर्ड मेडिकल स्कूल ,एंड हारवर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ ,प्रिवेंशन ,सितम्बर ,२०१० ,पृष्ठ ३०-३१ )।
बेशक !क्योंकि हृद रोग सामान्य तौर पर बुढ़ाने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है .बेशाख्ता लोगों को हृद रोगों से बचाया जा सकता है .दृढ और क्रांतिकारी विचार हैं डॉ सैनी के ।
१९६० के दशक में फ्रेमिंग -टनअध्ययन ने हृद रोगों को हवा देने वाले जोखिमों (रिस्क फेक्टर्स )का खुलासा किया था .तब से ही सैनी मानतें हैं ,रिस्क फेक्टर्स मुल्तवी रख कर हृद रोगों से बचा जा सकता है ।
आपने और आपके साथियों ने हाल ही में हारवर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ में काम करते हुए उन साक्ष्यों का पुनर अवलोकन किया है जिनसे यह साफ़ पता चलता है २००५ में हृद रोगों की भेंट चढ़े उन २५ लाख लोगों में से कमसे कम दस लाख लोगों को बचाया जा सकता था .ज़रुरत सिर्फउन रिस्क फेक्टर्स से बचे रहने की थी जिनका दो टूक उल्लेख किया गया था ।
अतिरिक्त रूप से ज्यादा नमक का सेवन (एक्सिस साल्ट ),हाई -पर -टेंशन (उच्च रक्त चाप )मोटापा ,निष्क्रिय कसरत शून्य दैनिकी (कोच पोटेटो बने बैठे बैठे काम करते रहना ),धूम्रपान ,ट्रांस -फेटि एसिड्स (हाई -ड्रो-जिनेतिद वेजिटेबिल आइल ),खुराक में ओमेगा थ्री फेटि -एसिड्स की कमीबेशी ,सब्जियों (ग्रीन्स से बे -रूखी )ज्ञात जोखिम हैं जो हृद रोगों के खतरे के वजन को बढ़ातें हैं .
यकीं मानिए इसमें वेट रिडक्शन का कोई ज़िक्र नहीं है ।
कौन से तरीकें हैं जिनसे जोखिम टाले रखे जा सकतें हैं ?
अमेज़न वर्षा वनों के यानोमामो- मूल भारतीय बेहद कम खुराकी साल्ट लेतें हैं .बा -मुश्किल १०० मिलिग्रेम प्रतिदिन .इनमे उच्च रक्त चाप का कोई नामो -निशाँ नहीं है .उम्र के साथभी उम्रदराज़ होने पर भी इनमे रक्त चाप सम्बन्धी शिकायतें देखने में नहीं आतीं हैं .
जहां तक कोलेस्ट्रोल का सवाल है हालिया अध्ययनों से पुष्ट हुआ है इसे सिर्फ खुराक के ज़रिये भी कम रखा जा सकता है ।
जंगली आदिम लोगों में, कबीलाई लोगों में जो प्रकृति की गोद में सादा जीवन यापन करतें हैं नोर्मलटोटल कोलेस्ट्रोल का खून में स्तर ११० -१२० तक ही पाया गया है .कई स्तन पाइयों पर संपन्नकोलेस्ट्रोल सम्बन्धी अध्ययनों में भी इतना ही सीरम कोलेस्ट्रोल दर्ज़ हुआ है ।
दरअसल आदमी को बैठे रहने के हिसाब से नहीं गढ़ा गया ,घंटों चलते रहने के लिए ही उसे परमात्मा ने दो टांगें दी हैं .विकास क्रम में उसका विशिष्ठ स्थान रहा है ।
निष्क्रियता बेहद मारक सिद्ध हुई है इस दौर में जब हम किताबों में आगे बढ़ें हैं ।
पंजाब के ग्रामीण अंचल में पी जी आई चंडीगढ़ के रिसर्चरों के अध्ययन से पता चला है जैसे जैसे सड़कों का जाल ग्रामीण पंजाब के दूरदराज़ के इलाकों तक फैलता गया ,व्यायाम भी जिंदगी से उसी अनुपात में नदारद होता गया .पश्चिमी जीवन शैली की सौगात है "कोच पोटे -टोज़".फुर्सत के क्षणों में कसरत करने का ना वक्त मिलता है ना अवकाश .ये तो वैसे भी एक तरह का जीवन शैली टेक्स है .कार्य स्थल पर ही हमें सक्रीय रहना होगा .इस इलाके में नै ज़मीं खोदनी पड़ेगी .कुछ नया करना सोचना पड़ेगा योजना कारों को .रोज़गार दाताओं को ।
ग्रामीण चीन २० वीं शती के शुरूआती चरण में परिह्रिदय धमनी रोग से वाकिफ नहीं था .किसानी और पूर्व किसानी से जुड़े लोगों पर संपन अध्ययन से भी यही नतीजे मिलें हैं ।
शिकारियों की जीवन शैली और जोखिम का ग्राफ बनाने पर विदित होगा हृद रोग उनमे सिरे से नदारद रहें हैं ।
इसलिए यह तय बात है यदि जीवन शैली में एक रद्दोबदल कर दी जाए तो ज्यादा तर जोखिम काफूर हो जायेंगें ,हृद रोग या तो ना के बराबर रह जायेंगें या फिर बुढापे में ही कभी कभार सामने आयेंगें .यानी पैर दबा के भाग खड़े होंगें .ज़ाहिर है हमारे सामाजिक जीवन की नए सिरे से बुनावट ज़रूरी है .उद्योगिक युग की सौगातें हमें मार रहीं हैं .अफरा तफरी की ज़िन्दगी ,अरे ये जीना भी कोई जीना है बबुआ ?
बाज़ार की ताकतों को ही पहल करनी होगी क्योंकि बाज़ार का आज हमारे जीवन में बे -हिसाब दखल है .लो साल्ट पैकेजिंग से शुरुआत हो सकती है .संशाधित खाद्य में नमक और केलोरीज़ दोनों का हिसाब किताब रखा जाना ज़रूरी है ।
हमारा जीव विज्ञान हमारी बाय लोजी ,हमारा शरीर क्रिया विज्ञान हमें ऐसा करने की खुली छूट देता है .सामाजिक जीवन के रचाव में एक बड़ी पहल वक्त की मांग है .ताकि हमारे साथ साथ हमारी संतानें भी महफूज़ महसूस करें .ख़ुशी हमारे दामन से आ लिपटे .हृदय रोग ,दिल का दौरा दबे पाँव ना आ सके .

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