कहा गया है "नीम हकीम ख़तरा -ए -जान "बिलकुल यही बात उन माँ -बाप पर लागू होती है जो सहज सुलभ (बिना डॉक्टरी नुश्खे के,ओवर दी काउंटर ड्रग्स ) उपलब्ध दवाओं को बिना सटीक डोज़ की जान कारी के अपने नौनिहालों को दे देते हैं ।
एक अध्ययन के मुताबिक़ ऐसे माँ -बाप अपने बच्चों को जोखिम में ही डाल रहें हैं .यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिडनी ,न्यू -साउथ वेल्स के रिसर्चरों के मुताबिक़ ऐसी दवाओं का अनुचित ,बेलागाम ,बिना सही तौर पर चाइल्ड डोज़ के बारे में जाने ,स्तेमाल ,अपनी ही संतानों पर अनजानी आज़माइश ,पोइजनिंग के मामलों तथा अस्पतालों में बच्चों के आपातकालीन दाखिले के हालात पैदा करता रहा है ।
मजेदार बात यह है ज्यादातर माँ -बाप इस मुगालते में रहतें हैं ,क्योंकि ये दवाएं सहज सुलभ हैं इसलिए निरापद और सुरक्षित तो हैं ही .आप जानतें हैं बच्चों को दी जाने वाली दवा की खुराखें अकसर छोटी होती हैं .(कुछ दवाएं तो बारह साल से कम उम्र बच्चों को दी ही नहीं जातीं हैं .ऐसे में खुराख का अंदाजा अकसर गलत रहता है .असटीक रहता है .बच्चों के लिए जोखिम को बढाता है .
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