गत पोस्ट से आगे .....
भ्रष्ट खान -पान ,सोने जागने का बे -तरतीब अव्यवस्थित रूटीन ,व्यायाम का अभाव सब मिलकर किशोआरावस्था को बीमारी और असंतुलन की tअरफ ले चलतें हैं ।
इस उम्र में माँ को अपना दोस्त बनाइये .वही समझती है समझा सकती है शरीर की बदलती हुई भाषा ,उठाव और पल्लवन .आप काया में घटित इन बदलावों को ठीक से न बांच पातें हैं न समझ और पचा पातें हैं जो सहज स्वाभाविक होतें हैं ।
व्हाट यु ईट एट दिस एज (ड्यूरिंग योर टींस) कैन मेक ऑर ब्रेक यु एज ए पर्सन .भौतिक और मानसिक सेहत ,आपके वेळ बींग ,खुश -हाली की, नव्ज़ जुडी है आपके शरीर को मिलने वाले पुष्टिकर तत्वों से ।
उचित पोषण के लिए पहली शर्त है उचित खान -पान .ऐसे में बेहद एहम है यह जानना हेल्थ फ़ूड है क्या ?क्या है हमारे शरीर की संरचना ,एनाटोमी (अनातोमी ).परिवार का रवैया और खान -पान सम्बन्धी मूल्य ऐसे में सहज ही अति महत्वपूर्ण हो उठतें हैं .किशोर - मन इन्हें आत्म - सात करता चलता है .पीयर प्रेशर और स्कूल कैंटीन इस दीर्धावधि असर के सामने कुछ भी नहीं है .(ज़ारी ....)
पुनश्चय :शारीरिक और पारिवारिक शिक्षा के महत्व को नजर अंदाज़ करना ख़तरा मोल लेना है .इस उम्र में किशोर -मन खाने -पीने की चीज़ों को पुष्टिकर -तत्वों ,खान -पानी के पोषण -मान से जोड़कर कहाँ देख पाता है .बेशक दिखना वह लोक -लुभावन ,मनभावन ,सुन्दर और मनोहर दिखना चाहता है ।
सौन्दर्य के प्रतिमानों ,सौन्दर्य और पुष्टिकर तत्वों से भरपू`र खुराक के बीच एक सहज सम्बन्ध है .न किशोर मन इसकी पड़ताल करता है न इस से कनेक्ट हो पाता है .उसके लिए चीज़ें दो किस्म की हैं या तो वो जिन्हें ज़रूर खाना है या फिर खाना ही नहीं है .स्वास्थ्य -विज्ञान ऐसे में लक्ष्य ही कहाँ रह जाता है ।?
आपको बत्लादें किशोरियों के लिए 'जीरो -साइज़ 'होना सुन्दर होना नहीं है .न ही गुड ,ब्यूटीफुल और गोर्जीयास और सेक्सी का मतलब क्षीण काया (पतला और छरहरा ,कनिका बने रहना है ).पर्याय -वाची शब्द नहीं है ये .खाना /फ़ूड, न 'फेड 'है न 'फीयर' .सौन्दर्य से जुडी नव्ज़ है काया की ,जैसा अन्न वैसा मन ,वैसी काया ,वैसा स्वभाव .जैसा पानी वैसी वाणी .(ज़ारी ...)
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
जैसा अन्न वैसा मन ,वैसी काया ,वैसा स्वभाव .जैसा पानी वैसी वाणी .
अगली कडी में इसे स्पष्टता से जानना रसप्रद रहेगा।
आभार इस जानकारी के लिये।
Shukriyaa !zanab sugya saahib .
veerubhai .
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