एक सर्वे के अनुसार जिसे इंटरनेट मेल प्रोव्हाईदर 'हॉट मेल 'ने संपन्न किया है ,३३ की उम्र अत्यधिक व्यस्तता बोध लिए होती है .व्यक्ति प्रथिमिक्ताएं ही तय करने की उधेड़ बुन में लगा रहता है .यही वह वक्फा है उम्र का एक सौपान है जब सारी जद्दोजहदऔर वक्त घर -बाहर के कामों में खटते,वर्क ,फेमिली ,सोसल एक्टिविटी में संतुलन कायम करते रहने में ही चुकने लगता है .उम्र के और किसी सौपान में ऐसी भाग -दौड़ नहीं होती ।
सर्वे के अनुसार इस उम्र के एक तिहाई लोग बामुश्किल पाँचघंटा ही सो पातें हैं .दो -तिहाई को हफ्तें में कमसे कम ३८ घंटा दफ्तर का काम करना पड़ता है .
६० %लोगों के मुताबिक़ एक वक्त में दो -दो असाइन्मेंट ,बुक -वर्क ,कई सामजिक तकाजे भुगताने पडतें हैं .काम और पारिवारिक दायित्वों को पूरा करने के बाद ले देकर खुद की रूचि के कामों के लिए घंटा भर ही निकल पाता है .
५६ % को दफ्तर का शेष काम घर लाकर निपटाना पड़ता है .
सर्वे में शरीक ३३साला औरतों में से ९० %ऐसा मानतीं समझतीं हैं ,उन्हें मर्दों से कहीं ज्यादा काम करना पड़ता है .काम से ज्यादा इन्हें काम का बोध मारता है ।
और यह मारक व्यस्तता बोध हो भी क्यों नहीं .आखिर महिलाओं को अपने आपको अपेक्षाकृत ज्यादा व्यवस्थित करना पड़ता है ताकि वह सीनियर लेविल करियर ,विवाह और परिवार के बीच प्राथमिकताओं को तय कर सकें .
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
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