यदि छल -कपट करना सीधा -सपाट इतना आसान नहीं होता तो क्या तब भी लोग कपट -पूर्ण व्यवहार ,धोखा -धडी धड़ल्ले से बिना सोचे बिचारे करते करते ?
वी चीट ,बिकओज़ इट इज दी ईज़ियेस्ट थिंग टू डू .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
आखिर लोग अनैतिक आचरण करते ही क्यों है ?वैसे भारत के सन्दर्भ में यह सवाल उठाना एक दम से बे -मानी है .यहाँ अनेइतिक व्यवहार नियम है अपवाद नहीं .तो भी आइये देखते हैं क्या कहतें हैं इस बारे में साइंसदान ?
कितने ही लोग यह कहते नजर आ जातें हैं .वह काम ढूंढते वक्त ,काम के लिए आवेदन करते वक्त बे -ईमानी नहीं करेंगे .ज़रूरतमंद की मदद से इनकार नहीं करेगे .टेस्ट में हेरा -फेरी भी नहीं करंगे .लेकिन मौक़ा मिलते ही ,अनुकूल परिस्थिति रास्ते में आते ही वह ऐसा करने में तनिक भी वक्त जाया नहीं करते .जैसे बे -ईमानी करना ,बुरा व्यवहार करना व्यक्ति का बुनियादी स्वभाव ही हो .बुरा आप से आप ही हो जाता हो ।
टोरोंटो -विश्व -विद्यालय के रिसर्च -दानों ने यही नतीजे निकाले हैं अब तक के अध्ययनों से ।
रिसर्चरों ने प्रतियोगियों की हेरा -फेरी करने की मर्ज़ी का पता लगाने के लिए एक साथ दो प्रयोग किये .पता चला यदि छल कपट करने के लिए विशेष कुछ नहीं करना पड़े तो लोग अदबदाकर कपट पूर्ण आचरण करेंगे ।
सुव्यक्त ,एक दम से साफ़ -साफ़ सीधा सपाट मामला न हो तो लोग क़ानून तोड़ने में देर नहीं लगातें हैं .लेकिन मामला यदि बोरिंग हो ,मुश्किल भी हो म्हणत माँगता हो तो लोग अनेतिक
व्यवहार नहीं करंगे ।
इफ दे कैन लाइ बाई ओमिशन ,चीट विदाउट डूइंग मच लेगवर्क ऑर बाई -पास ए पर्सन्स रिक्युवेस्ट फॉर हेल्प विदाउट एक्स्प्रेसली दिनाइंग देम ,दे आर मच मोर लाइकली टू डू सो .
लेकिन यदि मामला सही या गलत जो भी करना हो सक्रियता से करने की गुंजाइश रखता हो तब लोग तब कई किस्म के ज़ज्बातों ,अपराध बोध और शर्मो -हया से भी रु -ब-रु होने लगतें हैं .ऐसे में कुछ भी करना उतना आसान भी नहीं रह जाता है .लेकिन जब मामला दबा ढका हो ,नियम तोड़ना पेसिव हो तब नैतिक दवाब आवेग संवेग कमतर ही व्यक्ति का घेराव करतें हैं .और बस व्यक्ति बी -ईमान हो जाता है .
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