गरीब दूसरे की भावना को बेहतर समझ लेतें हैं .समानु -भूति ,दूसरे की भावना को समझ कर उसके दुःख को अनुभव करना अमीरों के बसकी बात नहीं .उच्च सामाजिक पद -प्रतिष्ठा वाले लोग दूसरे की भावना को बूझ ही नहीं पाते .पैसे से खुशियाँ भी नहीं खरीद सकते .दूसरों की भावना सुख दुःख को समझने की इनमे कूवत ही नहीं होती ।इन्हें नहीं मालूम क्या होती है 'तदानु -भूति ',एमपेथी .
केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने बहु -विध प्रयोगों से पता लगाया है समाज के ऊपरले पायेदान पर खड़े लोग दूसरों के ज़ज्बातों को समझने का माद्दा ही नहीं रखतें हैं .जबकि सामाजिक हाशिये पर खड़े लोग बा -खूबी दूसरे की संवेदनाओं और आवेगों को समझ लेतें हैं .जीवन निर्वाह के लिए भी ऐसा करना उनकी मजबूरी हो जाती है वरना उनकी तो ज़िन्दगी ही ठहर जाये .गुज़ारे के लाले पड़ जाएँ .अध्ययन के अगुवा मिचेल क्रॉस इसकी तस्दीक करतें हैं .सही बतलाते है इसे ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'पूअर आर बेटर एट एमपेथी देन दी रिच (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १८ ,२०१० ).
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