टर्निंग टू क्राइम इज इन दी जींस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २७ ,२०१० )।
क्राइम इज इन योर जींस ?कहते तो यही आये हैं नर्चर और नेचर दोनों ही मिलकर व्यक्तित्व गढ़तें हैं .आप केवल अपने जींस (जीवन इकाइयों ,जीवन खण्डों ,क्वांटम ऑफ़ लाइफ )का जमा जोड़ नहीं हैं .आप अपना परिवेश और परवरिश भी होतें हैं ।
बेशक संग का रंग भी चढ़ता है .अपराधी पैदा भी होतें हैं .पैदा किये भी जातें हैं .लेकिन एक फ्लोरिडा विश्व -विद्यालय में संपन्न अध्ययन आपके मुजरिम होने का सेहरा आपके खानदान के सिर बाँध रहा है .आनुवंशिक वजहें रहतीं हैं अपराध में लिप्त होने की ,फिर भले आपकी परवरिश में कोई खोट हो न हो ।
गोद लिए गए युवा लोगों पर संपन्न हुआ है यह अध्ययन .जिसमे युवा औरत -मर्द शामिल रहें हैं .पता चला ,इन युवा लोगों की पोलिस से भीडंत की संभावना ४.५ गुना बढ़ी रही उन युवाओं में जिनकेनेच्युरल पेरेंट्स ,असली माँ -बाप में से किसी एक का भी आपराधिक रिकार्ड रहा आया था .भले इनकी परवरिश में कहीं कोई खोट न था .इसका मतलब यह हुआ अपराधी पैदा भी होतें हैं .खानदानी वजहें भी रहतीं हैं अपराध की .
शनिवार, 27 नवंबर 2010
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