साइंटिस्ट ट्रेप एंटी -मैटर .इट वाज़ वंस यूस्ड टू प्रोपेल केप्टन क्रिक एक्रोस दी स्टार्स .नाव बोफ्फिंस से दे हेव केप्चार्ड ए सेम्पिल ऑफ़ रीयल -लाइफ एंटी मैटर फॉर दी फस्ट टाइम ,व्हाइल इट इज अन -लाइक -ली टू लीड टू वार्प एन्जिंस,इट कुड शेड लाईट ऑन दी नेचर एंड ओरिजिंस ऑफ़ दी यूनिवर्स .(एससीआई -टीईसीएच /मुंबई मिरर ,नवम्बर १९ ,२०१० ,पृष्ठ २९ )।
अमरीकी धारावाहिक स्टार ट्रेक में "वार्प ड्राइव "का ज़िक्र है जिसका मतलब है अन्तरिक्ष यानों को प्रकाश के अपने निर्वातीय वेग से तेज़ दौडाया जा सकता है .और वह भी एंटी -मैटर के हाथों ।
योरोपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर के साइंसदानों ने एंटी -एटम्स (सर्न,जिनेवा के निकट महा -मशीन ,लार्ज -हैद्रान कोलाईदार,योरोपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर सर्न का विस्तार है ) चंद लम्हों के लिए लेब में बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है ।
एटम और एंटी -एटम का मिलन ही वार्प ड्राइव को स्टार ट्रेक में पावर करता है .प्रयोग शाला की परिश्थितियों में एंटी -एटम्स अल्पकाल तक ही हमारे प्रेक्षण का हिस्सा बन सकतें हैं ।
यूनिवर्स में जहां तक हमारी जानकारी है इनकी तंगी है .दुर्लभ है इन्हें पकड़ पाना .विरल है इनकी मौजूदगी .अन्तरिक्ष में इनका कोई सुराग नहीं मिला है ।
अलबत्ता पार्टिकिल एक्सलारेटर (कणों को वेगवान बनाने वाले कण त्वरकों )में इन्हें अल्पकाल के लिए ही सही पैदा किया जा सकता है .लेकिन हमारे प्रेक्षण अध्ययन के दायरे में आने से पहले ही यह ओझल हो जातें हैं .क्योंकि परम्परा गत बोतल में इन्हें नहीं रखा जा सकता .नियमित एटम्स के संपर्क में आते ही ये पारस्परिक तौर पर नष्ट हो जाते हैं .अलबत्ता अल्पकाल के लिए ही सही इन्हें बनाए रखने की तरकीब ढूंढ ली गई है ।
आखिर एंटी मैटर लेब में पैदा ही क्यों किया जाए ?
आखिर यह एक गुत्थी चली आई है हमारे चारों तरफ पदार्थ ही पदार्थ का बसेरा है ,प्रति -पदार्थ यदि है भी तो अल्पांश में ही है .ऐसा क्यों है ?इसी गुत्थी को सुलझाने के लिए लेब में एंटी -मैटर चाहिए ।
सरलतम परमाणु हमारे गिर्द हाइड्रोजन परमाणु है .विश्व में इसकी बहुतायत है .सभी सितारों की एटमी भट्टी का यही ईंधन है .हमारे शरीर में यह पाचन की क्रिया में भागेदारी करता है ,गैसोलीन के दहन में इसका ही हाथ होता है ।
एक प्रोटोन और एक इलेक्त्रोंन का गठबंधन है हाइड्रोजन एटम ।
सिद्धांत -तय एंटी -हाई -द्रोजन एक एंटी -प्रोटोन (प्रोटोन विद ए पोजिटिव चार्ज ) और एक पोजिटिव इलेक्त्रोंन (पोज़ित्रोंन ) का गठबंधन है .हरेक कण के लिए सृष्टि में एक प्रति -कण भी है .लेकिन प्रति -पदार्थ की प्राप्ति आसान नहीं है .इक्का दुक्का बना भी लो लेकिन बड़ी तादाद में एंटी -प्रोटोन प्राप्त करना मुश्किल काम है .इसके लिए पहले रेग्युलर प्रोटानों को वेगवान बनाना पड़ेगा पार्टिकिल एक्स्लारेतर्स में फिर इन्हें मेटल टारगेट्स पर दागना पड़ेगा .इन्हीं टक्करों के फलस्वरूप यदा कदा "प्रोटोन -एंटी -प्रोटोन युग्म ,प्रोटोन -एंटी -प्रोटोन पे -यर"पैदा होतें हैं ।
एंटी -प्रोटानों को एक अलग पुंज के रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हें अदबदाकर मंदा (रिटार्ड )करना पड़ता है .सर्न -योरोपियन ओर्गेनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लीयर रिसर्च ,जिनेवा के निकट जिसके तत्वावधान में लार्ज हेड्रोंन -कोलाईदर काम कर रहा है यही काम करता है .हेयर एक्सलरेशन इज दी थीम ।
लेकिन एंटी -प्रोटोन बाने के लिए सर्न को समर्साल्ट करना पड़ता है पलटी खानी पडती है एक्सलरेशन नहीं ,दी -सलेरेशन देना पड़ता है एंटी -प्रोटानों को .अरबों इलेक्त्रोंन वोल्ट ऊर्जा से चंद इलेकत्रोंन वोल्ट तक ले आना पड़ता है वेगवान एंटी -प्रोटोनों को .दूसरे शब्दों में इसे यूं समझें कणों का तापमान १० ट्रिलियन डिग्री से घटाकर ०.५ केल्विन (परम -शून्य से आधा डिग्री ऊपर )लाया जा रहा है .कणों का तापमान उनकी औसत ऊर्जा का द्योतक ही तो होता है ।
अगला कदम इन एंटी -प्रोटानों का गठबंधन पोज़ित्रानों के साथ करवाना है .ज़ाहिर है ऐसा करने के लिए इन्हें न्यूनतम संभव तापमानों तक लाना पड़ता है .ताकि ये एक दूसरे से आबद्ध हो सकें ।
हाव टू ट्रेप एंटी -मैटर ?
एंटी -एटम्स को एक स्थान पर बनाए रखना बहुत दुष्कर सिद्ध होता है क्योंकि इन्हें परम्परागत पात्रों में नहीं रखा जा सकता .रेग्युलर एटम्स के साथ संपर्क होते ही दोनों विस्फोट के साथ नष्ट हो जातें हैं .इन्हें स्पेस में लोकेलाइज़ करने के लिए शक्ति -शाली चुम्बकीय क्षेत्रों का स्तेमाल किया जाता है ।
इस एवज़ विशेष चुम्बकों का स्तेमाल किया जाता है .कणों को ठंडा करने के लिए बेहद सुधरी हुई प्रणाली अपनाई जाती है .और बेहद के संवेदी सेन्सर्स का स्तेमाल किया जाता है जो आखिरकार एंटी -एटम्स का विनष्ट होना तब दर्ज़ करतें हैं जब यह अपने अल्पकालिक ट्रेप से ओझल होने लगतें हैं ।
सर्न का एल्फा ग्रुप इस पर काम कर रहा है .इसने ३८ एंटी -हाई-द्रोजन एटमों को स्पेस में लोकेलाइज़ करके दिखलाया है .दूसरे चरण में इन्हें बड़ी तादाद में जुटाया जाएगा .देखना यह भी बाकी है क्या इनकी आंतरिक ऊर्जा का स्तर रेग्युलर हाई -द्रोजन एटम्स जैसा ही होता है .यदि दोनों जुदा है तब एक नै भौतिकी कार्य -रत होगी .
शनिवार, 20 नवंबर 2010
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