गुरुवार, 4 नवंबर 2010

व्यंग्य -विडंबन :सरकार और आम आदमी .

सरकार को आम आदमी का सहारा है और आम आदमी को सरकार का .एक -दूसरे के बिना दोनों बे -सहारा हैं .दोनों मुसीबतजदाहैं .सरकार अपनी चिंता में और आम आदमी देश की चिंता में दुबला गये हैं .पर ,सरकार तो सरकार है .हुकुम सरकार का .आदेश देना सरकार का अधिकार है .सरकार की सलाह में भी आदेश छिपा होता है.एक बार सरकार की आदेशात्मक सलाह थी -गरीबी हठाओ .आम आदमी और खासकर गरीब लोग सकते में थे कि कैसे हठाएं .गरीबी कोई रेत -बजरी क़ी तरह तो है नहीं कि जिसे तसले में भर कर दूर हठा दें .सभी पशोपेश में थे .गरीब को लगता है कि वह शायद कम -अक्ल है और सरकार समझदार है .अगर सरकार ने कहा है कि गरीबी हठाओ तो कोई दूर की बात होगी .इसलिए बिना सोचे -समझे गरीब लोगों ने अपने खर्चे कम करके भी कस्सी और तसले खरीद लिए .उन्हें इससे मानसिक तसल्ली हुई थी कि केवल वे ही गरीब नहीं हैं ,ऊंचे और अमीर घरों में भी गरीबी किसी -न -किसी कोने में छिपी है .चलो कुछ तो काम निकलेगा .उन दिनों मनरेगा तो था नहीं ,इसलिए कस्सी -तसला लिए गरीब आदमी गली -गली घुमते हुए आवाज़ लगाते थे -गरीबी हठवा लो गरीबी !यह सच है कि कभी -कभी तमाशा भी चल निकलता है .जो चल निकले वही असल हो जाता है और बाकी सब कुछ नकली ।
दरअसल फसल बौने वालों से ज्यादा समझदार वे होतें हैं जो फसल काट लेतें हैं .राजनीति में यही दूर कि बात है .अब फिर फसल काटी जा रही है .काटने वाले वही लोग हैं जो पहले थे .बस थोड़ा सा भेष बदला हुआ है .सभी संयुक्त आवरण में है .फांकें अलग -अलग हैं ,पर खाल एक है . भानुमती का कुनबा तो प्रगतिशील भी नहीं था ,पर उस कुनबे में कहीं तो तालमेल रहा होगा .यहाँ तो सभी मीर हैं .सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि लीपापोती से बड़ा समन्वयवाद नहीं .सब पर चादर डालो .नंगईकोई अच्छी बात है !शर्म उठानी पडती है .चादर के नीचे सब ठीकठाक है .सर्वे भवन्तु सुखिन :!
सेक्युलर मथानी से राजनीति समुन्द्रमंथन ज़ारी है .जनता के हिस्से में हलाहल और सरकार के हिस्से में अमृतपान का वोट -तंत्रीय विधान है .लोकतंत्र को बचाना तो आम आदमी को हलाहल पीना होगा .इसीलिए सरकार कह रही है कि आतंकवाद के विरुद्ध लोगएकजुट हों .यानी जहाँ आतंकवादी वारदात हो ,वहीँ सभी इकठ्ठे हो जाएँ .सामूहिक शहादत से देश का सिर ऊंचा होता है .इस से आतंकवादियों का मनोबल टूटता है .आतंकवादी भी सोचने को मजबूर होतें हैं कि 'इंडिया देत इज भारत 'में कैसी अद्भुत एकता है .जो लोग इकठ्ठे जी नहीं सकते ,वे इकठ्ठे मर रहें हैं .सरकार उलझनमें है पर नीयत साफ़ है कि लोग अपना काम करें ,सरकार अपना काम करेगी .आतंक के शिकार लोगों को मुआवजा देगी .फ़ोकट में मर जाते तो मुआवजा भी न मिलता .सरकार मुआवज़े के साथ इन्क्वायरी भी बैठाएगी .परिणाम का कापी राईट सरकार का होगा .वोट -हित में होगा तो सरकार रिपोर्ट के अंश जारी करेगी .सारी रिपोर्ट जारी हो ,ऐसा संविधान में कहीं भी नहीं लिखा .जनहित में कुछ चीज़ें देश से भी बड़ी होतीं हैं .इन बड़ी चीज़ों में वोट अव्वल नंबर पर है ।
सरकार ने भी हिदायत की है कि आतंकवाद के विरुद्ध लोग अपनी ऑंखें और कान खोल कर रखें .सरकार कि बात और है ,वह आँख और कान बंद करके सो सकती है .आम आदमी को फर्ज़ निभाना है और वह निभा भी रहा है .मेरी राय है कि यदि लोगों की आँखें खराब हैं तो डॉक्टर को दिखाएँ ,कान बहरे हैं तो उनका इलाज़ करवाएं .सारा खर्चा सरकार उठायेगी .बस आप तो आंख और कान खुले रखें .इस में आम आदमी का क्या जाता है ?खुली आँखों से तो चोर भी डरता है ,फिर आतंकवादी की तो औकात ही क्या है ?
व्यंग्यकार :डॉ नन्द लाल मेहता "वागीश "।
शब्दालोक -१२१८ ,सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव
दूरभाष -०१२४ -४०७७२१८
प्रस्तुती एवं सहभाव :वीरेंद्र शर्मा .(वीरुभाई )

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