शनिवार, 6 नवंबर 2010

समेकित बाल विकास कार्यक्रम ,नौ दिन चले अढाई कोस ...

यूं भारत के हर गाँव में बाल विकास केंद्र हैं ,आगनवाडी हैं .लेकिन उनपर लटके बोर्ड उनके अन्दर की दास्तान कह देतें हैं .जीर्ण -शीर्ण इमारतों की बात न भी करें (सारा रोना वैसे भारत में बुनियादी ढांचों का ही तो है ),इनमे काम करने वाले सदस्यों को आप देतें क्या हैं ?
१८०० रुपल्ली देते हैं अप एक आंगनवाडी कर्मी को .इसके सहायक को और भी कम .भारत सरकार के एक दफ्तरी की न्यूनतम पगार १०,००० रुपया मासिक है ।
आंकड़ों का आम आदमी को सेवन करवाने वाली सरकार कह सकती है -जल्दी ही आंगनवाडी केन्द्रों की तादाद बढके १० से १४ लाख हो जाएगी .तब हर बसावट (ह्यूमेन सेटिलमेंट )में एक आगनवाडी केंद्र होगा .कैसा होगा यह आप छोडिये .वैसा ही होगा जैसा हिंदुस्तान में होता है ।
और इसी खाना -पूर्ती के चलते भारत में दुनिया भर से ज्यादा अंडरवेट नौनिहाल हैं .उपसहारवीअफ्रिका से दोगुना ज्यादा बैठेगी यह संख्या .जैसे भारत के गांवों -शहरों में बिजली के खम्बे तो हैं ,बिजली नहीं है ,वैसे ही यहाँ पर आँगन वाडियां तो हैं लेकिन गुणवत्ता नहीं है .तरह तरह के अभाव यहाँ मौजूद हैं .मुआयना कर लीजिये .अलबत्ता दक्षिण भारत में स्थिति बेहतर है .राज्य सरकारों की सक्रियभागेदारी इसके मूल में हैं ।
मसलन पगार को ही ले लीजिये .तमिलनाडु में एक आंगनवाडी कर्ता को ४६०० मासिक पगार के अलावा आवास भत्ता ,बोनस और वेतन वृद्धि भी मिलती है .ज़ाहिर है नौकरी पक्की है .घास नहीं खुदवाई जाती है इनसे उत्तर भारत की तरह ।
बालकों के खाने में यहाँ पौष्टिक तत्व भी संतोषजनक हैं .प्री -स्कूल शिक्षा यहाँ चंद rhymes कंठस्थ कराने तक महदूद नहीं है ,बोध और ज़िन्दगी में काम आने वाली सामजिक सीख भी दी जा रही है .आर्थिक वृद्धि का ढोल पीटने से कुछ होने हवाने वाला नहीं है .आंकड़ों की डुगडुगी बजाने से भी कुछ नहीं होगा .बेशक समेकित बाल विकास कार्यक्रम के लिए आबंटित राशि२००९-१० ,६७०५ करोड़ रूपये से बढाकर २०१०-११ में ८७०० करोड़ रूपये कर दी गई लेकिन फिर भी ,एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ४०%केन्द्रों के पास अपने भवन नहीं है ,न ही किराए के आवास हैं ,४५%में किसी भी प्रकार की जन सुविधाएं (शौचालय और पेशाब घर )नहीं हैं .४० फीसद के पास ले देकर पेशाब घर हैं .राज्य सरकारें वित्त पोषण का रोना रोने में माहिर हैं .यहाँ नौनिहालों के लिए पैसा नहीं हैं ,भाषण में यह भारत का भविष्य हैं .हमभी यही कहतें हैं भारत के लिए यह कैसा भविष्य है जिसके लिए सरकारों के पास पैसा नहीं है .सिर्फ कोमन वेल्थ गेम्स हैं .आने दीजिये वर्ष २०१५ जो मिलेनियम गोल का लक्षित वर्ष है सरकारें बगलें झांकती नजर आयेंगी .

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