शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

व्यंग्य -विडंबन :अब हंगर की खैर नहीं .

राजधानी दिल्ली में देश के नौनिहालों ने 'फाईट हंगर 'अभियान की शुरुआत की .यानी की हंगर के खिलाफ भारत के होनहार सड़कों पर उतर आये हैं .'फाईट हंगर 'अभियान में हिस्सा ले रहे एक होनहार से मैंने पूछा -बेटा ,यह हंगर क्या है ?कहने लगा -अंकल आप इतना भी नहीं जानते !आप से तो मेरी मम्मी अच्छी है .वह हंगर के बारे में सब कुछ जानती है .मम्मा कह रही थी कि हंगर बहुत घटिया चीज़ है .देखते नहीं कि हमने 'फाइट हंगर 'के बैनर ले रखे हैं .टोपियाँ भी 'फाईट हंगर' वाली पहनी हैं .फिर हम नारे भी तो लगा रहे हैं .'फाईट हंगर ',अब हम हंगर से फाईट करेंगे .इसे हरा कर ही दमलेंगे ।
मैंने पूछा -बेटा ,यह बैनर तुम्हें किसने दिए हैं तो उसने बताया कि पता नहीं कोई अंकल आये थे .किसी विश्व -संस्था का ज़िक्र कर मम्मा से कह रहे थे कि अपने बिट्टू को ज़रूर भेजना है .फोटो भी खिंचेगा और अख़बार में भी छपेगा .सो मम्मा ने मुझे अमूल मक्खन और विटामिन ब्रेड खिला कर भेजा है .मम्मा ने कहा कि मक्खन खाओगे तभी तो फाईट करोगे .मम्मा ने यह भी समझाया था कि जोर -जोर से बोलना है और सबसे आगे रहना है .जहाँ तक अखबार वाले फोटो न ले लें ,बढ़ -चढ़ कर नारे लगाने हैं ।
सो नौनिहाल नारे लगा रहे हैं .यह देश धन्य हो रहा है.एक बार पहले भी यह देश धन्य हुआ था .जब एक नामचीन राजनीतिक हस्ती ने गरीबी को भगाया था .अब होनहार मक्खन खाकर हंगर को भगा रहें हैं .बहरहाल हम बेफिक्र हैं .विश्व संस्था तय करेगी कि आज 'फादर डे 'है .यह तो भला हो इस संस्था का इसने हमें बता दिया है .अगर न बताये तो हमें तो यह भी पता न चले कि हमारा फादर कौन है ,फादर -डे कि बात तो बहुत दूर की है .यह तो अच्छा हुआ कि विश्व संस्था ने फादर -डे घोषित कर दिया वरना हम तो बिना फादर -डे के रह जाते .तब क्या होता ?हम कितने शर्म -शार होते .शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ .यह फादर -डे का ही कमाल है कि पडोसी का होनहार सुबह -सुबह अंग्रेजी में चहक रहा था -डैड डैड ,हैपी फादर डे .हैलो डैड ,हाउ आर यू.पर डैड ठहरे देसी संस्कारों के .समझ नहीं पा रहे थे कि बेटे को क्या कहें ?वे अपने -आप में सिमटे जा रहे थे और बेटे के विशेष ज्ञान पर मन -ही -मन गर्वित भी हो रहे थे .उन्होंने होनहार से पूछा -बेटे ,तुम्हें किसने बताया है कि आज फादर -डे है ?बेटा तपाक से बोला कि आज के अंग्रेजी अख़बार में छपा है .आपको तो अंग्रेजी भी नहीं आती डैड !हाउ इट इज शेमफुल डैड !
सचमुच इस देश की एक पूरी पीढ़ी शर्म में डूबी हुई है .अलबत्ता नौनिहाल गर्व से भरे हैं कि विश्व संस्था के आदेश से जुड़े हैं .विश्व संस्था एक दिन घोषित करती है कि भारत ने भुखमरी पर काबू पा लिया है तो सारा देश तन कर खडा हो जाता है .फिर दूसरे ही दिन रिपोर्ट आती है कि भुखमरी कि भयावह स्थिति बनने जा रही है तो देश की रीढ़ झुकने लगती है .हम शर्मिन्दा होने लगते हैं .फिर सब कुछ दरकिनार कर हम प्रतीक्षा करते हैं कि हमें किस अभियान में हिस्सा लेना है ,नारे लगाने हैं .खुदा न खास्ता यदि विश्व -संस्था कहीं यह घोषित कर दे कि सभी भारतवासी बीमार हैं तो फिर देखिये कि चा -रों तरफ सभी बीमार चेहरा लिए हस्पतालों में कैसे कोहराम मचा रहें हैं .आखिर ऐसा करें भी क्यों न !तय तो दूसरे करते हैं हम तो निमित्त मात्र हैं न !गीता में भगवान् कृष्ण ने भी तो कहा है -निमित्त मात्र भव अर्जुन !
सो देश का अर्जुन निमित्त मात्र बना हुआ है .मैंने उस नौनिहाल से फिर पूछा -बेटा तुम्हारी मम्मा ने हंगर के बारे तुम्हें क्या बताया था .नौनिहाल मूड में था .दरअसल उसने मुझे पत्रकार समझ लिया था ,वह कहने लगा -अंकल ,मम्मा कहती थी कि हंगर सब से बड़ी बुराई है .पता नहीं इस देश के लोग हंगर से क्यों चिपके हुए हैं ?हमें हंगर से फाईट करना है और इसे मार भागना है .इतना कहते कहते उसका स्वर ऊंचा होने लगा था .उसकी मुठ्ठियाँ तननेलगीं थीं .वह सचमुच का फाइटर नजर आ रहा था ।
मुझे लगा कि जिस देश के नौनिहाल और उनकी मम -माएं इतनी समझदार हों तो देश में हंगर रह ही नहीं सकती .आखिर बच के कहाँ जायेगी हंगर .अब हंगर की खैर नहीं ।
व्यंग्यकार :डॉ ,नन्द लाल मेहता 'वागीश '
१२१८ ,शब्दालोक ,सेकटर -४ ,एर्बन एस्टेट ,गुडगाँव
१२२-००१ ,
दूर -ध्वनी :०१२४४०७७२१८
प्रस्तुती एवं सहभाव :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

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