शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

क्या है लिक्विड बायोप्सी ?

लिक्विड बायोप्सी :ब्लड टेस्ट टू डिटेक्ट कैंसर (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ११ ,२०१० )।
विज्ञानी जानते हैं ,कैंसर कोशायें ट्यूमर से छिटक कर मरीज़ के रक्त संचरण में शामिल हो सकती हैं .लेकिन यह इतनी विरल (रेयर ) ओर फ्रेजाइल होती हैं ,आसानी से पकड़ में नहीं आती .ऐसे में इनका सारगर्भित अध्ययन हो भी तो कैसे ?
साइंसदानों ने एक ऐसी संवेदी प्राविधि विकसित कर ली है जो इन कैंसर कोशाओं की शिनाख्त करके रोग निदान को आरंभिक स्टेज में पुख्ता कर सकती है ,इलाज़ को आसान .बस यही है "लिक्विड बायोप्सी "।
बेशक अमरीकी बाज़ार में जोहन्सन एंड जोह्न्संस टेस्ट मौजूद है लेकिन इसकी उपयोगिता बहुत सीमित है क्योंकि यह लेदेकर कुछेक कैंसर ग्रस्त कोशाओं की ही शिनाख्त कर सकती है .इसीलिए अब इस दिशा में नए सिरे से पहल की जा रही है ताकि इन परीक्षणों की उपयोगिता बढ़ाई जा सके .सवाल इनके कामयाब होने का है ताकि कैंसर का निदान और इलाज़ व्यक्ति विशेष के खून की जांच के बाद पुख्ता किया जा सके ।
बस टेस्ट ट्यूब से ही यह चिकित्सा आरंभऔर निर्देशित की जा सकेगी .खून की जांच के लिए एक परखनली ही तो चाहिए .२५ से ज्यादा छोटी बड़ी कम्पनियां" लिक्विड बायोप्सी "को भरोसेमंद बना लेने की दिशा में काम कर रहीं हैं .ज्यादातर परीक्षण एपिथेलियल सेल्स की शिनाख्त करेंगे .यही किसी अंग की बाहरी परत बनाती हैं .इन्हीं से उन कैंसर कोशाओं की शिनाख्त होगी जो ट्यूमर से छिटक -कर ब्लड में चली आती हैं .८५-९० फीसद कैंसरों में यही पकड़ में आती हैं हालाकि रक्त में यह होती नहीं है .दे डू नाट बिलोंग टू दा ब्लड .माना यह जा रहा है खून में दस्तक देती यही कोशायें मार करती हैं .मेसाच्युसेट्स जनरल अस्पताल तथा हारवर्ड मेडिकल स्कूल के माहिर यही मानते हैं .अगर इनकी शिनाख्त ख़ून में समय रहते पुख्ता कर ली जाए तो इनके हमले से शरीर के किसी भी दूसरे अंग को बचाया जा सकता है .मेटा -स्टेसिस को मुल्तवी रखा जा सकता है .ऐसे में माहिर रोग के फैलाव को रोक कर लंग कैंसर जैसे घातक कैंसर को ला -इलाज़ होने से रोक सकते हैं .अर्ली डायग-नोसिस इज दा की .



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