बींग टू क्लीन कैन मेक यु सिक (मुंबईमिरर ,नवम्बर ३०,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
एक अध्ययन से पता चला है वे युवा जो ट्राई -क्लोसन युक्त एंटी -बेक्टीरियल सोप्स(जीवाणु रोधी साबुन और सोप सोल्यूशन) का बे -हिसाब स्तेमाल करतें हैं वे अपेक्षाकृत ज्यादा अंशों में एलर्जीज़ का शिकार हो जातें हैं .
किसी वस्तु के स्तेमाल से पैदा असाधारण (अतिरिक्त )संवेदन शीलता से पैदा बीमारी को प्र्त्युर्ज़ा ,एलर्जी या प्रत्युरजात्मक प्रति -क्रिया कहतें हैं । एलर्जी किसी चीज़ के छूने से भी हो सकती है यानी स्पर्श और गंध और खाने यानी स्वाद से भी .इलाज़ यही है उस विशेष पदार्थ से दूर ही रहा जाए ।
मिशिगन विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया है ,"बिस्फिनोल ए "के बेहद के एक्सपोज़र से बालिगों को भी नुकसानी उठानी पड़ सकती है .यह पदार्थ वयस्कों के रोग -रोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम )को कमज़ोर कर सकता है .रोगों से बचे रहने का माद्दा घटा
सकता है ।
ट्राई -क्लोसन का स्तेमाल आजकल जीवाणु रोधी साबुनों के अलावा ,डायपर- बैग्स ,पेंस ,कई मेडिकल दिवाईसिज़ में तथा "बिस्फीनोल ए "का धड़ल्ले से कई किस्म के प्लास्टिक्स में जिनमे फ़ूड केन्स की लाइनिंग (अस्तर )भी शामिल है हो रहा है ।
ट्राई -क्लोसन और बिस्फीनोल ए दोनों ही स्रावी -तंत्र को विच्छिन्न ,विघटित करने वाले रासायनिक यौगिक हैं .ये हमारे हारमोन तंत्र को असर ग्रस्त बनाते हैं .या फिर हारमोनों की नक़ल करके सेहत को चौपट करतें हैं ।
स्वास्थ्य विज्ञान से जुडी एक पुरानी अवधारणा है ,रोग -रोधी तंत्र के समुचित उद्भव और सम्पूर्ण विकास के लिए "लो" डोज़ ऑफ़ बेक्टीरिया से असर ग्रस्त होना भी ज़रूरी है .इसीलिए बेहद के क्लीन एन्वाय्रंमेंट्स में रहना भी इम्यून सिस्टम की बेहतरी के लिए ठीक नहीं है ।
एन्वाय्रंमेंतल हेल्थ पर्सपेक्टिव में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .अल्लिसों ऐएल्लो इसके प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर हैं .
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
बेहद महत्वपूर्ण जानकारी दी है।
shukriyaa umesh yaadav ji .
veeru bhaai .
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