ग़ज़ल
सच है सारे साथ नहीं हैं ,अपनी भी तो कर पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से मतना ठान ।
नादानी और बचपन छोड़ ,मत इतना बन तू अनजान ,
बेमतलब के हँसी ठहाके ,छोड़ तू बेअदबी के काम ।
बहुत लतीफे सुना चुका है ,होठों पर नकली मुस्कान ,
सभी जानते चुप हैं फ़िर भी ,कुछ को तो समझ अरे नादान ।
करनी अन-करनी पहचान ,कहनी अन कहनी ले जान ,
बहुत हो चुका गोल गपाडा ,अपनी हदबंदी पहचान ।
सहभाव :डॉक्टर नन्द लाल मेहता वागीश ,१२१८ ,सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -१२२ -००१ .
शनिवार, 7 नवंबर 2009
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1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
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