डंठल से चारों तरफ़ लटकी रहतीं हैं -मिमोसा पुदिका की पंखुडी .जब कोई लोकस्ट (टिड्डा या फ़िर अन्य कीट )इन पर आ बैठता है एक सुरक्षा उपाय के बतौर ऊपर को सिमट कर बंद हो जातीं हैं तमाम पंखुडी ।
यदि कीट तब भी नहीं भाग खड़े होते तब पंखुडी नीचे की और कुछ इस प्रकार झुकतीं हैं -ताकि इनका कंटीला भाग कीट को विकर्षित कर सके ।
पादप शरीर में मौजूद अभिग्राही स्पर्श के प्रति अनुकिर्या करतें हैं .,जिसके होने पर इनके आकार में बदलाव या फ़िर एक विकृति पैदा हो जाती है ।
रीढ़ -धारी जीवों में दो प्रकार के अभिग्राही ( टेक्टाइल - रिसेप्टर्स )होतें हैं .एक प्रेशर दर्ज करतें हैं ,दाब का जायजा लेतें हैं ,दूसरे स्पर्श के प्रति एक अनुकिर्या दर्शाते हैं ।
ऐसे में न्युत्रोनों की एक झडी निकलने लगती है -दे ट्रिगर फास्ट फायरिंग आफ न्युत्रोंस ।
लेकिन मिमोसा पुदिका की तो बात ही निराली है ।
इसकी प्रत्येक और यौगिक (कम्पाउंड लीव्स )पंखुडीके आधार में एक थैली नुमा सरंचना होती है ,जिसमे एक तरल भरा होता है .यही पंखुडी यों का खुलना बंद होना संचालित करता है .डंठल का फूला हुआ आधार (स्वोलिन बेस ऑफ़ दी लीफ स्ताल्क )पुल्विनुस (पल्विनस )कहलाता है ।
इस अति संवेदी पादप (छुई -मुई )को स्पर्श करने पर पादप कोशिकाएं विद्युत स्पंद दीप्त करतीं हैं (सहसा प्रकाशित होतीं हैं ,चमक पैदा करतीं हैं )।
पल्विनस में मौजूद कोशिकाएं इन संकेतों (इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स )के प्रति अनुकिर्या स्वरूप पोतेसियम और वाटर फ्लश करतीं हैं .इस प्रकार एक भारी (विशाल मात्रा में )तरल ह्रास होने से ही पल्विनस झुक जाता है .और पंखुडी -या फ़िर बंद हो जातीं हैं .यही राज है -छुई -मुई के कुम्लाहने का ,लाज -वनती बन जाने का .
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