सोमवार, 9 नवंबर 2009

और वक्ष के कुसुम कुञ्ज सुरभित विश्राम भवन ये ....

वक्ष स्थल सदैव ही आदमी के आकर्षण और सम्मोहन का केन्द्र बिन्दु रहा है .संस्स्कृत साहित्य में बारहा -पीनास्तनी लफ्ज़ आया है .नारी जंघा की तुलना केले के चिकने मृसन तने से तथा वक्ष की घडे से की गई है .इधर विज्ञानी अपने तरीके से वक्ष की गोलाइयों और कर्विईअर्नेस को बनाए रखने के अभिनव तरीके इजाद करते रहें हैं .पहले सिलिकोन जेल और अब ब्रेस्ट -तोक्क्स (बोटोक्स की सुइयां ).आधा घंटा चाहिए वक्ष स्थल की ढलाई के लिए बस ।लेंग्थी बूब जोब्स से मुक्ति .अलबत्ता ५०० पांड्स चाहिए वक्ष -प्रदेश को दर्शनीय बनाए रखने के लिए ,कार्वीयर बनाए रखने के लिए .तो ज़नाब सौन्दर्य भी अब पैसे का खेल है .पैसा फेंक ,तमाशा देख ।(दी प्रोसीज़र ऑफर्ड बाई "कोस्मेटिक सर्जरी ग्रुप ट्रांसफोर्म क्लिनिक "स्टार्ट्स विद पेशेंट्स हेविंग एनेस्थेटिक क्रीम रब्ब्द इनटू दे -आर ब्रेस्ट्स.दे देन रिसीव १२ इंजेक्शंस ऑफ़ बोटोक्स इन दे -आर पेक्तोरेलिस माई -नर चेस्ट मासिल । )एक सौन्दर्य प्रशाधन शल्य संस्था "ट्रांसफोर्म क्लिनिक "ने यह तरीका इजाद किया है जिसके तहत एक लोकल एनस थे -टिक सुंयाँ लगाने से पहले वक्ष स्थल पर लगाया जाता है .इसके बाद एक पेशी पेक्तोरेलिस माई नर चेस्ट मसल में बोटोक्स की १२ सुइयां लगाई जाती है ।गोलाइयों और कार्विनेस को बनाए रखने के लिए हर ६ माह के बाद सुइयां बूस्टर डोज़ के बतौर लगाई जाती हैं ।कविवर दिनकर की उर्वशी सहज ही याद आ जाती है -और वक्ष के कुसुम कुञ्ज सुरभित विश्राम भवन यह /जहाँ मृत्यु के पथिक ठहर कर श्रान्ति दूर करतें हैं .और यह भी पंक्तियाँ उर्वशी से ही हैं -सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान तुम ,कविता ,कुसुम या कामिनी हो .सन्दर्भ सामिग्री :-एन्हान्सिंग ब्रेस्ट्स नाओ जास्त ऐ ३० मिनिट जॉब (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर ९ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

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