ग़ज़ल
करनी अन -करनी पहचान ,कहनी अन -कहनी पहचान ,
बहुत हो चुका गोल गपाडा ,अपनी हदबंदी ,पहचान ।
मन तेरा हो फूल सरीखा ,खुश्बू हो तेरी पहचान ,
अपनों के तो सब होतें हैं ,गैरों पे हो जा कुर्बान ।
एकल गान सुनाया खूब ,अपना तुम्बा ,अपनी तान ,
लय में ,सुर में ,बजे साज़ तो ,तेरा स्वर हो ,वृन्द- गान ।
कौन किसी के होता संग ,ख़ुद अपनी बन तू पहचान ,
कुछ को तो ले अपने साथ ,रार सभी से ,मतना ठान ।
सहभाव :डॉक्टर नन्द लाल मेहता "वागीश "
१२१८ ,सेक्टर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -१२२ -००१
दूरध्वनी :-०१२४४ ०७७ २१८ /०९९१०४३१६९९
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )डी-२ फ्लेट्स ,फ्लेट नम्बर १३ ,पश्चिमी किदवई नगर ,न्यू -डेल्ही -११० -०२३ ,दूर -ध्वनी :-०९३५०९८६६८५
शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
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