चन्द्र कलाओं -ईद का चाँद ,दूज का चाँद ,पूर्णिमा का पूर्ण चन्द्र ,अर्द्ध चन्द्रऔर चन्द्र हीन अमावस्या का ज़िक्र साहित्य और कलाओं तक ही महदूद नहीं हैं -पूर्णिमा की रात का आत्म ह्त्या के उद्दीपक के तौर पर भी ज़िक्र किया जाता रहा है ।
अब विज्यानी एक अन्तर सम्बन्ध एपिलेप्टिक फिट्स की बारंबारता (फ़्रीक्युएन्सि )और फेज़िज़ ऑफ़ दा मून में भी तलाश रहें हैं ।
अपस्मार (एपिलेप्सी या आम जुबान में मिर्गी )के दौरों की आवृत्ति (फ़्रीक्युएन्सि ,बारंबारता )एक दम से घट जाती है "पूर्णिमा "को ,फुल मून नाइट्स में ,जबकि घुप्प अँधेरी रातों में (कृष्ण पक्ष )के दौरान आवृत्ति बढ़ जाती है ।
चिकित्सा कर्मियों के मुताबिक़ ऐसा होने के पीछे शायद मेलेटोनिन का हाथ है जिसका स्राव अँधेरी रातों (आम तौर पर घुप्प अंधेरे में अपेक्षा कृत ज्या दा होता है ,इसीलियें लोग बेड रूम में अन्धेरा पसंद करते हैं सोने के वक्त .)में ज्यादा होता है ।
यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के चिकित्सा छात्रों ने एक पूर्णतया समर्पित (देदिकेतिद )एपिलेप्टिक यूनिट से जहाँ २४ घंटा फिट्स का हिसाब किताब लोग -इन किया जाता है ना सिर्फ़ आंकड़े जुटाए शुक्ल पक्ष (चांदनी रातों के दरमियान पड़ने वाले दौरों )फिट्स का मिलान क्रष्ण पक्ष के करेस्पोंडिंग फिट्स से किया ।
यानी शुक्ल पक्ष की पहली रात को आने वाले फिट्स का मिलान कृष्ण पक्ष की पहली रात को पड़ने वाले सीज़र्स से किया गया ।इसीतरह बाकी रातों को पड़ने वाले सीज़र्स का जायजा लिया गया .
अध्धय्यन से उक्त निष्कर्ष निकाले गए -आलोकित रातों को दौरों की आवृत्ति कम हो जाती है जबकि अँधेरी रातों में अपेक्षा कृत बढ़ जाती है ।
हम जानतें हैं -अपस्मार या मिर्गी के साथ जो लोग रह रहें हैं उनके दिमाग के एक हिस्से में अचानक न्यूरोन डिस्चार्ज (बिजली का स्राव )होने लगता है ,हाथ पाँव एंठने लगतें हैं ,मुख से झाग उबलने लगता है ,जीभ के दांतों के बीच आ जाने का ख़तरा पैदा हो जाता है .२-३ मिनिट के लिए मरीज मूर्छा में चला जाता है या फ़िर एक दम से भाव शून्य और निष्क्रिय हो जाता है .लेकिन इस स्तिथि का बाकायदा इलाज़ है ,शल्य भी उपलब्ध है .
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