सोमवार, 9 नवंबर 2009
जाना प्रभाष जी का ....
पिछले दो दिनों के अखबारों -खासकर रास्ट्रीय सहारा ,हिदुस्तान ,दैनिक ट्रिब्यून ,दैनिक भास्कर ,नै दुनिया ,एन बी टी को बाचने गुनने के बाद यह मान ना लेने का कोई कारण नहीं है -प्रभाषजी की चेतना आकाश को छोड़ महा -आकाश में विलीन हो चुकी है .घडे में कैद आकाश मुक्त हो चुका है ।कबीर की पंक्तियाँ याद आती हैं -मन फूला फूला फिरे जगत में झूंठा नाता रे /जब तक जीवे माता रोवे बहन रोये दस मासा रे /और तेरह दिन तक तिरिया रोवे /फेर करे घर वासा रे ।फ़िर भी एक सम्मोहन पीछे पडा है -व्ही बोलता हुआ -सबकी ख़बर लेता /सबको ख़बर देता /खबरची /यहीं कहीं है ,आस पास ।हमारे जैसे गैर -नाम -वरों को नाम चीन बनाने ,पत्रकारिता समझाने का काम प्रभाष जी कर गए .वगरना रोहतक क्या पूरा हरयाणा एक सम्पूर्ण हिन्दी पत्र नहीं निकाल सका .ले देकर व्ही "दैनिक ट्रिब्यून "और जुम्मा जुम्मा आठ रोज़ से "हरी भूमि "।हमें प्रभाष जी ने १९८० के दसक में निखारा -लीड लेख "फिरंगी संस्कृति का रोग है यह -एच आई वी एड्स "ना केवल छाप कर ,ख़ुद उसमे भाषागत सम्पूर्णता भर ".उसके बाद पूरा पृष्ठ दिया _सागरों के वक्ष पर तैरते चेर्नोबिल को .वगरना कौन जानता था -वीरेंद्र शर्मा को (और आज भी कौन जानता है ,भले ही हरयाणा शिक्षा सेवा क्लास -वन भुगता कर आज हम राजधानी में हैं .लेकिन अंतर्मुखी स्वभाव बन गया तो बन गया ।ऐसे थे प्रभाष जोशी जिन्होंने -कसबे को राष्ट्रीय परिपेक्ष मुहैया करवाया .हम से ले देकर "विज्ञान पत्रकार "होने की शर्त पूरी करवाई ।अब कौन मानेगा -क्या वह लोग जिन्होंने "साप्ताहिक हिन्दुस्तान "द्वारा हमारे लिखे लेख "क्या धूम केतु ही डायाना -सौर के विनाश का कारण बने ?"शीला झुनझुनवाला काल के स्वीकृति के बाद इस टिपण्णी के साथ लौटाए -बन्धु अब यह बातें पुरानी हो गईं हैं ।लेकिन प्रभाष जी जिसे संवार गए वह आदिनांक रुका नहीं है .यही मेरी श्रृद्धांजलि है प्रभाष जी को .ऐसे थे हमारे प्रभाष जोशी -हमें पत्रकारिता कर्म और मर्म समझाने वाले ।वीरेंद्र शर्मा ,पूर्व -व्याख्याता भौतिकी ,राजकीय महा -विद्यालय ,रोहतक ,हरयाणा -१२४ -००१डी -२ फ्लेट्स ,फ्लेट नंबर १३ ,वेस्ट किदवाई नगर ,न्यू -दिल्ली -११० -०२३दूरध्वनी :०९३५०९८६६८५
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