कार्य स्थल पर होने वाली ज्यादतियों को चुपचाप सह जाना व्यक्ति की सेहत की नव्ज़से जुडा है .एकस्वीडन में किए गए अध्धय्यन के मुताबिक़ जो लोग कार्यस्थल पर होने वाली ज्यादतियों पर मन मसोस कर रह जातें हैं अन्दर अन्दर घुट ते रहतें हैं उनके लिए दिल का दौरा पड़ने और किसी एक दौरे में मर जाने का ख़तरा पाँच गुना बढ़ जाता है .,बरक्स उनके जो हिसाब किताब बराबर कर लेतें हैं बॉस और अन्यों के साथ ।
स्टोकहोम यूनिवर्सिटी केस्ट्रेस रिसर्च इंस्टिट्यूट के शोध छात्रों ने २७५५ मुलाज़िमों का जिन्हें१९९२ -२००३ तक
तक दिल का दौरा नहीं पडा था ब्योरा जुटायाथा ।
अध्धय्यन के आख़िर तक ४७ भागीदार या तो मर चुके थे या फ़िर इन्हेंदिल का दौरा पडा था .यह सभी वहीथे जिन्हें कार्य स्थल की घुटन खाए जा रही थी .बुझदिली में यह किसी तरह काम चला रहे थे । इन सभी की उम्र आर्थिक सामाजिक पहलू ,जोखिम पूर्ण व्यवहार ,काम का तनाव और और जैविक खतरों पर गौर करने के बाद साफ़ साफ़ एक अन्तर सम्बन्ध बुझदिली से किए गए समझोते (कवर्ट कोपिंग )और दिल के बड़े दौरे (मायो -कार्डिएक इन्फार्क्सन )और कार्डिएक डेथ (दिल के दौरे से हुई मौत )के बीच देखा गया ।
यह भी देखा गया जो लोग अक्सर अपनी भावनाओं को दबाये सब कुछ सहते रहते थे उनके लिए दिल के दौरे का ख़तरा २- ३ गुना ज्यादा बढ़ गया था बरक्स उनके जो अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर गुस्सा निकाल देते थे ।
अलबत्ता शोध छात्र यह बतलाने में असमर्थ हैं ,कार्य स्थल पर ताल मेल और बेहतर और कामयाब ताल मेल बिठाने की हेल्दी कोपिंग स्ट्रेटेजी किसे कहा समझा जाए .ज्यादतियों का सीधे सीधे और तभी विरोध किया जाए ,बाद में स्तिथि के गुजर जाने के बाद हिसाब किताब किया जाए या फ़िर ताल मेल बिठाए रखा जाए लेदेकर .या फ़िर चीखा चिल्लाया जाए पलट कर ?
अध्धय्यन के नतीजे "एपिदेमियोलोजी और कम्युनिटी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २५ ,२००९ पृष्ठ २३ (स्पीक अप :स्तिफ्लिंग एंगर अत वर्क कैन किल ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
रविवार, 29 नवंबर 2009
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