रेडियो धर्मिता द्वारा कार्बनिक अवशेषों (वनस्पति ,जीवाश्म आदि )का काल निर्धारण एक ऐसी पद्धति है जिसके अर्न्तगत कार्बन -१४ (रेदिओएक्तिव आई -सो -टॉप ऑफ़ कार्बन )और कार्बन -१२(स्तेबिल ,नॉन रेडियो एक्टिव आइसो -टॉप ऑफ़ कार्बन ) की मात्रा का अनुपात किसी भी पुरातात्विक महत्व के कार्बनिक अवशेष में नाप कर उसकी अनुमानित आयु का पता लगाया जाता है ।
कोई भी ओर्गेनिस्म यथा पादप वनस्पति ,जैविक सामिग्री जब तक जिंदा रहती है उसमे कार्बन के इन दोनों सम-स्थानिकों का अनुपात नियत (कोंस्तेंत )बना रहता है .लेकिन ओर्गेनिस्म की मृत्यु के बाद यह अनुपात छीजने लगता है ,क्योंकि कार्बन -१४ जो एक रेडियो धर्मी पदार्थ है इसकी मात्रा एक ख़ास अवधि के बाद (५७३० बरस बाद )पहले की बनिस्पत आधी रह जाती है ।इसका अवशोषण ओर्गेनिस्म वायुमंडल से जब तक जीवित है तभी तक कर सकती है ,मरने के बाद नहीं .
ऐसे में कार्बनिक अवशेष की १०० ग्रेम मात्रा लेकर यदि उसमे मौजूदा अनुपात उस वक्त दोनों समस्थानिकों का माप लिया जाए .तब इस अनुपात को ५७३० की जरब देने ,यानी ५७३० से मल्टीप्लाई करने के बाद संदर्भित साम्पिल की अनुमानित आयु का आकलन किया जा सकता है ।
यह एक परिशुद्ध प्राविधि नहीं है .परिशुद्ध मापन के लिए अब हमारे पास फिशन ट्रेक डेटिंग है ।
जो हो बाबरी मस्जिद हो या ट्यूरिन में रखा ईसा का कफ़न या कोई अन्य विवादित पूरा अवशेष उसका काल निर्धारण करने के लिए कारबन डेटिंग है ,फिशन ट्रेक डेटिंग है ,हेलियम क्लोक है ।
कार्बन डेटिंग का श्रेय १९४९ में विल्लर्ड लिब्बी को दिया गया ,१९६० में इन्हें इसके विकास के लिए नोबेल पुरूस्कार से नवाजा गया ।
युरेनिंऍम से भारी तत्व न्युत्रों न प्रोटोन अनुपात एक क्रांतिक सीमा से ज्यादा हो जाने की वजह से अपने आप एक मिनी -एटमी विस्फोट से टूटने लगते हैं ,इनसे विकिरण का रिसाव होने लगता है .इसी घटना को रेडियो -धर्मिता यानी स्वताया स्फूर्त विकिरण रिसाव कहा जाता है .
रविवार, 8 नवंबर 2009
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