मंगलवार, 30 नवंबर 2010

अमरत्व का नुश्खा हो सकती है यह जादुई दवा ....

मिरेकिल ड्रग अन -लोक्स सीक्रेट्स टू इटरनल यूथ .रिवर्स बाय -लोजिकल क्लोक ;तर्न्स ऑन एंजाइम टू हेल्प माइस ,रेंदर्द इन्फर्ताइल बाई एज ,सीरे(फादर ओफस्प्रिंग) लीटर अगेन .(डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर ३० ,२०१० ,पृष्ठ १९ )
साइंस एंड टेक्नोलोजी /मुंबई मिरर /नवम्बर ३० ,२०१० ,पृष्ठ २१ /कमिंग सून :एलिक्ज़र ऑफ़ इटरनल यूथ ? यु एस रिसर्चर्स हेव मेनेज्ड टू रिवर्स डी -जेनरेशन इन माइस ,इन्क्लुडिंग ब्रेन डेमेज एंड फर्टिलिटी ;न्यू -ब्रेक -थ्रू कुड बेनिफिट टू पीपल विद साइंस ऑफ़ प्री -मच्युर एजिंग ।
क्या आपको याद है "बेंजामिन बुत्टों "जिसमे ब्राड पीट एक ऐसे बूढ़े का किरदार निभातें हैं जो फिर से जवान होने लगता है ।
"पा" फिल्म में बिग बी एक ऐसे बालक का किरदार निभातें हैं जो उम्र से पहले बचपन में ही बूढा हो जाता है ।हमें नहीं पता क्यों विज्ञानी अमरत्व के नुश्खे तलाश रहें हैं ?क्या पृथ्वी पर जीवन इतना खूबसूरत है ,कोई मरना ही नहीं चाहता ?सवाल दार्शनिक है लेकिन आइये हम ताज़ा रिसर्च पर लौट्तें हैं .संदर्भित दोनों रिपोर्टों का सार संक्षेप प्रस्तुत करतें हैं ।
विज्ञानियों ने एक ऐसा तरीका एक ऐसी तरकीब एक ऐसी दवा तैयार कर लेने की दिशा में कदम बढा दिया है जो बुढाने की प्रक्रिया को जवानी की ओर मोड़ सकती है .लगता है ज़वानी से भरपूर बने रहने का कोई नुश्खा हाथ आ गया है ।
ऐसा हो गया तो जीवन अल्जाइ -मर्स ओर हृद रोगों की गिरिफ्त से बाहर निकलकर दीर्घजीवी ओर स्वास्थाय्कर हो सकता है .जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है .स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च घट सकता है .अशक्त बुढ़ाते लोगों की देखभाल अच्छे तरीके से हो सकती है ।
चूहों पर की गई आजमाइशों में यह करिश्मा हारवर्ड विश्विद्यालय के साइंसदानों ने कर दिखाया है .इलाज़ शुरू करने से पहले इन चूहों की गट्स (आंतें ),चमड़ी ओर दिमाग एक अस्सी साला बूढ़े की तरह हो चुके थे .एजिंग हो चुई थी भरपूर इन चूहों की ।
इन्हें एक दवा दी गई जो एक प्रमुख एंजाइम को सक्रीय करके इन्हें दोबारा जवान बनाने लगी .नै कोशिकाएं इनमे पनपने लगीं .न्युरोंस पैदा होने लगें .दिमाग का बुढाना ,थम गया .चमड़ी जवान दिखने लगी .मेल चूहे फिर से संतान पैदा करने लगें ।
दरसल बुढाने की प्रक्रिया में कोशाओं के सिरे छीजने लगतें हैं .ये सिरे जिन्हें किसी भी जैविक प्रणाली की जैव घडी समझा जाता है "टेलो -मीयर्स ' कहलातें हैं .ये गुणसूत्रों (क्रोमोज़ोम्स )के सिरों को ढके रहतें हैं .दवा एक एंजाइम को स्विच ऑन करके इन सिरों को फिर से जीवन प्रदान करने लगती है .न सिर्फ टेलो -मीयर्स का छीजना रुक गया ,जैव घडी चूहों की बुढापे से जवानी की ओर चल पड़ी .कोशिका की मृत्यु टल गई .कोशिका अमर हो गई ।
दिक्कत बस यही है कैंसर में भी कोशिका अमर हो जाती है .ओर कैंसर इस दौर का सबसे बड़ा सिर दर्द है ।
बस मनुष्यों के काम आने वाली ऐसी ही दवा बनाने में यही एक सबसे बड़ी बाधा है ।
हाई लेविल्स ऑफ़ टेलो -मीयर्स कैन फ्युएल दी ग्रोथ ऑफ़ कैंसर इन ह्युमैंस अन -लाइक माइस .एक दवा से मनुष्यों में एजिंग को कुछ नहीं होने वाला है .बहु विध कारक हैं बुढाने केरहतें हैं .एंटी -एजिंग दवा अभी दूर की कौड़ी ही है .कमसे कम एक दशक ओर इंतज़ार कीजिये .

बेहद का साफ़ सुथरा रहना भी ठीक नहीं ?

बींग टू क्लीन कैन मेक यु सिक (मुंबईमिरर ,नवम्बर ३०,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
एक अध्ययन से पता चला है वे युवा जो ट्राई -क्लोसन युक्त एंटी -बेक्टीरियल सोप्स(जीवाणु रोधी साबुन और सोप सोल्यूशन) का बे -हिसाब स्तेमाल करतें हैं वे अपेक्षाकृत ज्यादा अंशों में एलर्जीज़ का शिकार हो जातें हैं .
किसी वस्तु के स्तेमाल से पैदा असाधारण (अतिरिक्त )संवेदन शीलता से पैदा बीमारी को प्र्त्युर्ज़ा ,एलर्जी या प्रत्युरजात्मक प्रति -क्रिया कहतें हैं । एलर्जी किसी चीज़ के छूने से भी हो सकती है यानी स्पर्श और गंध और खाने यानी स्वाद से भी .इलाज़ यही है उस विशेष पदार्थ से दूर ही रहा जाए ।
मिशिगन विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया है ,"बिस्फिनोल ए "के बेहद के एक्सपोज़र से बालिगों को भी नुकसानी उठानी पड़ सकती है .यह पदार्थ वयस्कों के रोग -रोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम )को कमज़ोर कर सकता है .रोगों से बचे रहने का माद्दा घटा
सकता है ।
ट्राई -क्लोसन का स्तेमाल आजकल जीवाणु रोधी साबुनों के अलावा ,डायपर- बैग्स ,पेंस ,कई मेडिकल दिवाईसिज़ में तथा "बिस्फीनोल ए "का धड़ल्ले से कई किस्म के प्लास्टिक्स में जिनमे फ़ूड केन्स की लाइनिंग (अस्तर )भी शामिल है हो रहा है ।
ट्राई -क्लोसन और बिस्फीनोल ए दोनों ही स्रावी -तंत्र को विच्छिन्न ,विघटित करने वाले रासायनिक यौगिक हैं .ये हमारे हारमोन तंत्र को असर ग्रस्त बनाते हैं .या फिर हारमोनों की नक़ल करके सेहत को चौपट करतें हैं ।
स्वास्थ्य विज्ञान से जुडी एक पुरानी अवधारणा है ,रोग -रोधी तंत्र के समुचित उद्भव और सम्पूर्ण विकास के लिए "लो" डोज़ ऑफ़ बेक्टीरिया से असर ग्रस्त होना भी ज़रूरी है .इसीलिए बेहद के क्लीन एन्वाय्रंमेंट्स में रहना भी इम्यून सिस्टम की बेहतरी के लिए ठीक नहीं है ।
एन्वाय्रंमेंतल हेल्थ पर्सपेक्टिव में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .अल्लिसों ऐएल्लो इसके प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर हैं .

बचपन में पैरा -सिटामोल का ज्यादा स्तेमाल आगे चलकर दमा और अन्य एलेर्जीज़ की वजह भी बन सकता है .

पैरा -सिटामोल इन चाइल्ड -हुड मे काज एस्मा ,एलर्जीज़ लेटर (di taaims of india ,mumbai ,navambar ३० ,२०१० ,prishthh १९ )।
" klinikal end eksperimental elarjee "में ek adhayayn praksshit huaa है .isme batlaayaa gyaa है bachapan में पैरा -सिटामोल का gaahe bagaahe स्तेमाल आगे चलकर दमा (एस्मा )EVM अन्य एलर्जीज़ की वजह भी बन सकता है .christchurch ,Newzealand में is adhayayan में ५०६ shishu(infants ) evm ९१४ baalkon(children ) ko shareek kiyaa gyaa ।
beshak is silsile में abhi aur shodh kaaray honaa chaahiye kyonki filvakt(filaal ) पैरा -सिटामोल का jvr niyantarn(fever control ) में स्तेमाल is se hone vaali bhavishay में kisi sambhaavit , elarji की tulnaa में ज्यादा nzr aa rhaa है .faayde ज्यादा dhikh rahen hain ।
yahi kahnaa है otago university wellington में kaarayrat profesar julian crane का .bakaul aapke dikkat पैरा स्तेमाल ke be -dhadak ,aur liberal स्तेमाल se judi है ।
is baat ke saakahsy hain isi str par kuchh galat ho rhaa है .kyaa ?iskaa sateek rekhaankan filaal mumkin nahin ho paa rhaa है .lekin kahin kuchh galat zaroor ho rhaa है .zaroorat iski jd tak jaane की है .

आगामी पचास सालों में विश्व -व्यापी तापमानों में ४ सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है .

ग्लोबल टेम्प्रेचर्स मे राइज़ बाई ४ सेल्सियस इन ५० ईयर्स (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर ३० ,२०१० )।
जलवायु परिवर्तन के बदतर रुख इख्तियार करने पर २०६० आदि दशकों में विश्वव्यापी तापमानों में ४ सेल्सियस की वृद्ध हो सकती है .ऐसा होने पर समुन्दरों के बढ़ते जल स्टारों से पार पाने के लिए ही एक अनुमान के अनुसार २७० अरब डॉलर खर्च करने पड़ेंगे ।
कोपेनहेगेन में संपन्न गत बरस की संयुक्त राष्ट्र जलवायु -बैठक में १४० देशों की सरकारों ने ग्लोबल -तापमानों में वृद्ध की ऊपरी सीमा २सेल्सियस ही तय की थी .वर्तमान प्रक्षेपण (प्रोजेक्शन )ठीक उसका दोगुना है .यदि ऐसा होने से नहीं रोका जा सका तो आज की युवा भीड़ के जीवन काल में ही दुनिया के कई इलाकों में खाने -पीने के लाले पद जायेंगे .फ़ूड एंड वाटर सप्लाईज तहस -नहस हो जायेंगी .खाद्य और जलापूर्ति का विच्छिन्न और विघटित होना जलवायु परिवर्तन के बड़े खतरनाक नतीजे होंगे ।
चालूदशक में जिस रफ़्तार से ग्रीन हाउस गैसों के एमिशन (उत्सर्जन )में वृद्धि हो रही है उसे देखते हुए तर्क के स्तर पर २सेल्सियस ऊपरी सीमा (२सेल्सियस वार्मिंग ) की गोलबंदी का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल लगता है .विश्व्यापी तापन इस सीमा का अतिक्रमण कर सकता है .

हलका फुलका व्यायाम आर्थ -राइटिस में आराम .

एक नए शोधकार्य के अनुसार रोजमर्रा का हलका -फुलका व्यायाम आर्थ -राइटिस से बचाव और रोग को मुल्तवी रखने में मददगार सिद्ध हो सकता है ।
भारी भरकम वेट लिफ्टिंग जीना ज्यादा चढ़ना -उतरना रोग के अपेक्षतय जल्दी pair पसारने को हवा दे सकता है .लाईट एक्सर -साइज़ ही भली ।
apne adhayayan में risarcharon ki एक teem ne keliforniyaa vishvvidyaaalay में kaam karte hue un logon का nirikshan और parikshan kiyaa jinhen आर्थ -राइटिस का khatraa ज्यादा thaa .sabhi से unke एक्सर -साइज़ paitran के baare में bhi poochhaa gyaa .ptaa chlaa लाईट एक्सर -साइज़ karte rahne vaalon के liye रोग का khatraa utnaa nahin thaa ,रोग ki shuraat bhi der से hone के bhi aasaar rhe.

अल्ज़ाइमर्स से बचाव के लिए रोजाना कमसे कम आठ किलोमीटर पैदल चलिए ....

वाकिंग मे वार्ड ऑफ़ अल्ज़ाइमर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर ३० ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
एक नए अध्ययन के अनुसार रोजाना कमसेकम आठ किलोमीटर पैदल चलना अल्जामर्स से बचाव तथा रोग के एक दशा (चरण से )दूसरी
दशा में पहुँचने की रफ्तार को कम कर सकता है .अमरीका के पेन्सिल्वेनिया राज्य की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी की एक टीम ने पता लगाया है रोजाना की गई कमसे कम आठ किलोमीटर की वाक् अल्ज़ाइमर्स में क्षय होने वाली मेमोरी स्किल्स के क्षय को कमतर करती है ।
अलावा इसके रोग के शुरूआती चरण में होने वाले ब्रेन श्रीन्केज़ को भी कम करती है सैर ।
आप जानतें हैं अल्ज़ाऐमर्स एक दिजेंरेतिव न्युरोलोजिकल डिस -ऑर्डर है .बोध सम्बन्धी यह अप्विकासी रोग न सिर्फ याददाशत बल्कि हामारे सोचने समझने की क्षमता ,व्यवहार आदि को भी असरग्रस्त करता है ।
दिमाग रोग के उत्तरोत्तर बढ़ते चरणों में सिकुड़ता चला जाता है .यह आयु बढ़ने के साथ सिर्फ सठियाना भर नहीं है चिंतन शक्ति भी असरग्रस्त होती है इस बोध सम्बन्धी (संज्ञानात्मक विकार में ,अप्विकास में ,दिजेंरेतिव रोग में )।
चलना फिरना सोचना समझना ,पहचानना याद रखना (खासकर शोर्टटर्म मेमोरी लोस )सब कुछ दुश्वार हो जाता है बुढापे के खासतौर पर दिमाग को असरग्रस्त करने वाले इस रोग में .जो डिमेंशिया की एक किस्म ही है ,वजह भी .
एल्ज़ाइमर्स इज ए दिजेंरेतिव डिस -ऑर्डर देट अफेक्ट्स दी ब्रेन एंड काज़िज़ डिमेंशिया स्पेशियली लेट इन लाइफ .

सोमवार, 29 नवंबर 2010

कोफी और सुगर का मेल याददाश्त और एकाग्रता दोनों को बढाता है .

सुबह का आगाज़ यदि एक कप कोफी (शक्कर युक्त .कोफी विद सुगर )के साथ किया जाए तो न सिर्फ दिन की शुरुआत चौकन्नापन लिए रहती है दिमागी कामकाज के लिए भी दिन असरकारी सिद्ध होता है ।
बार्सिलोना विश्विद्यालय ,स्पेन के साइंसदानों ने पता लगाया है केफीन और सुगर का संग साथ ,दोनों का एक साथ सेवन दिमागी कामकाजी क्षमता को बढाता है .यदि प्लेन कोफी (बिना शक्कर )के ली जाए और शक्कर अलग से कभी ली जाए तब वही असर नहीं पड़ता है दिमागी परफोर्मेंस पर ।
जहां तक दिमागी एकाग्रता के वक्फे और कामकाजी याददाश्त का सवाल है ये दोनों पदार्थ केफीन और सुगर एक दूसरे के संपूरक हैं ।
प्रस्तुत शोध कार्य (रिसर्च )उन चालीस लोगों के दिमागी स्केन्स का अध्ययन -विश्लेसन करने से ताल्लुक रखता है जिनका दिमागी स्केन एक बार तब लिया गया जब इन्होने बिना शक्कर के कोफी ली दूसरी बार तब जब सभी ने कोफी के साथ शक्कर भी ली .

अल्ज़ाइमर्स के इलाज़ में सहायक हो सकती है 'जीन थिरेपी '?

अमरीकी शोध कर्ताओं के अनुसार एक ऐसी जीन थिरेपी जो चूहों में याददाश्त सम्बन्धी दिक्कतें दूर कर सकती है मनुष्यों पर भी कारगर हो सकती है ।
पता चला है माइस (चूहों ) और अल्ज़ाइमर्स से ग्रस्त मनुष्यों दोनों के हीदिमाग में एक एंजाइम ईपीएच बी २ का स्तर कम रहता है . यदि मष्तिष्क में इस किण्वक का स्तर जीन थिरेपी के द्वारा बढ़ा दिया जाए तो अल्ज़ाइमर्स से छुटकारा दोनों को ही मिल सकता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-जीन थिरेपी मे हेल्प क्युओर अल्ज़ाइमर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २९ ,२०१० ).

कार्बो -हाई -ड्रेट्स रिच "मोजार्ट बनानाज़ "

मोजार्ट संगीत न सिर्फ मन बहलाव का ही अनेकों के लिए साधन रहा है इसने कितने ही संगीत प्रेमियों को अपनी लोकलुभावन सुर ताल से मंत्रमुग्ध भी किया है ।
अब बड़े वाद्य -वृन्द के लिए रची गई इसकी लम्बी संगीत रचना (सिम्फनी ) को कुछ साइंसदानों ने फलों की मिठासबढाने के लिए आजमाया है ।
जापानी फल -निगम "तोयोका छुओ सिका "ने जुलाई में पहली मर्तबा "मोजार्ट्स बनानाज़ "को सुपर -बाज़ारों " में उतारा है ।
इन्हें स्ट्रिंग क्वाट्रेट १७ तथा पियानो कन्सर्तो ५ इन "डी मेजर "से एक हफ्ते तक एक्सपोज़ किया गया .असर ग्रस्त किया इस स्वर लहरी ने ,फलतयकेलों की मिठास बढ़ गई .यहीं हैं "मोजार्ट बनानाज़ ".

बंद आर्ट -रीज को खोलने के लिए अब लेज़र ब्लास्ट .........

ब्रितानी साइंसदानों ने एक ऐसा उच्च शक्ति -लेज़र पुंज तैयार कर लिया है (एक्सीमर लेजर )जिसे एक केथीतर जैसी ट्यूब से ही सम्बद्ध किया जा सकता है .एक्सिमर लेज़र पुंज ऊतकों को अदृशय सूक्ष्म कणों में खंडित कर देता है .बेशक इन्हें किसी उच्च शक्ति माइक्रो -स्कोप से देखा जा सकता है ।
लन्दन के यूनिवर्सिटी कोलिज अस्पताल में इसकी कामयाब आज़माइश बंद धमनियों को चंद मिनिटों में ही खोल कर की जा चुकी है ।
जुलाई माह में दो मरीजों को यह इलाज़ मुहैया करवाया गया .अगले दिन ही इन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दीगई .कम समय में सम्पान होने वाली इस सर्जरी से इन्हें स्वास्थ्य लाभ भी जल्दी ही मिला है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-नाव ए लेज़र ब्लास्ट टू क्लीयर क्लोग्ड आर्ट -रीज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २९ ,२०१० ,पृष्ठ १९ ).

चौतीस मिनिट बाद ही सताने लगतें हैं ऊंची एडी के ट्रेंडी सेंडिल .

ब्रिटेन में हाल ही में संपन्न एक सर्वे में ट्रेंडी -शूज़ (स्पाइक हील्स /स्तिलेत्तो शूज़ /ऊंची एडी की सेंडिल )पहनने वाली ४००० औरतों से पूछताछ की गई है .पता चला ये तमाम महिलायें जिनकी उम्र १८ -६५ साल तक थी टेक्सी से उतरने के आधा घंटा बाद ही किसी पब ,क्लब या शोपिंग माल में पैरों की पीड़ा से आजिज़ दिखीं .दर्द चेहरे से छलकता नजर आया ।
दस औरतों ने बतलाया आदतन वे एक जोड़ा फ़ालतू जोड़ी लेकर निकलतीं हैं .ये स्पेयर पेयर ऑफ़ पम्पस पीड़ा से छटपटाने के बाद इन्हें पहनने ही पडतें हैं ।
शू इन्सर्ट फर्म इन्सोलिया द्वारा संपन्न इस सर्वे से पता चला इनमे से आधी औरतें जो अदबदाकर ,ट्रेंडी शूज़ पहनतीं हैं आखिर में नंगे पैर घर लौटने को विवश हो जातीं हैं .दस में से एक जूतों से छिटक कर अलग हो जातीं हैं या फिर उधारी जूता किसी और का भी ले लेतीं हैं ।
सर्वे में शामिल कुल औरतों का पांचवां हिस्सा दर्द से बे -परवाह इन्हें फेशन और ट्रेंड के नाम पर पहने रहा ।
किरापदिस्ट (चरण -रोगों का माहिर ,पोडिया -ट्रिस्ट)एरिका गिब्बिंस कहतीं हैं कितनी ही औरतें सर्वे के अन्वेषणों से सहमत होते हुए भी फेशन के नाम पर हास्यास्पद रूप से सब कुछ सहने भुगतने को फिर भी तैयार हैं .इसी तिरिया हट के चलते गत एक बरस में एक औसत ब्रितानी महिला को कमसे कम६ मर्तबा पैरों की पीड़ा से दो चार होना पड़ा है .

रविवार, 28 नवंबर 2010

वक्त ज्यादा महत्त्व -पूर्ण होता है स्थान से मिस्टर शाहरुख खान.

मंदिर में जाकर आप शैम्पेन नहीं खोल सकते .किसी का बाप मर गया है वहां उसी दिन जाकर आप शादी का निमंत्रण नहीं दे सकते .कला या और कुछ के नाम पर आपको ऐसा करने की आज़ादी भारत देश में भी नहीं दी जा सकती .बुरा लगे या भला ।
परसों २६ /११ ,मुंबई हमले पर शहीद हुए देश के चुनिन्दा जाँ- बाजों की बरसी थी और कल यानी २९/११ /२०१० के दिन अपने शाह रुख खान साहिब लन्दन में एक कार्यक्रम करने जा रहें हैं जिस से प्राप्त राशि पाकिस्तान के बाढ़ पीड़ितों को भेजी जायेगी ।
वो लौंडिया (बुरा लग रहा है तो युवती पढ़ लें )न्यूज़ -२४ पर गाल बजा रही थी .अपने शब्द हमारे मुंह में भरने की हास्यास्पद कोशिश कर रही थी ।
आग्रह मूलक बेहूदा परिचर्चा का विषय था "पाकिस्तान ,शाह -रुख खान और शिव सेना ''हालाकि परिचर्चा में और राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदे भी थे .कुलदीप नैयर साहिब भी थे जिन्होंने यह बताना ज़रूरी समझा उनके आर्तिकिल्स पाकिस्तान में भी रोज़ पढ़े जातें हैं ।
शाह रुख खान साहिब की फ़िल्में भी पाकिस्तान में देखी ही जाती होंगी .अच्छी बात है ।
परिचर्चा का सन्दर्भ था "पाकिस्तान और शाह रुख खान "।लेकिन शीर्षक था "पाकिस्तान ,शाह रुख खान और शिवसेना ".
खान साहिब आपने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए गलत वक्त चुना .समय और काल ,स्थान का बोध हर` व्यक्ति को होना चाहिए .आप कैसे चूक गए ।
रही बात कुलदीप नैयर साहिब ,एन एन वोहरा और सच्चर जैसे हम -विचारों की जीजा साले हैं .आपस में ।
अरुंधती रॉय भी इसी खेमे की हैं जो नेहरूजी की अस्थियाँ बटोर रहीं हैं .इनके बारे में क्या कहें .

यात्री विमान में बाएं से ही चढ़ते -उतारते हैं .क्यों ?

व्हाई डू पेसिंजर्स बोर्ड ,एलाईट एन एयर -क्राफ्ट ओनली फ्रॉम दी लेफ्ट(ओपन स्पेस ,सन्डे -टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २८ ,२०१० ,पृष्ठ २६ )।
विमान में होल्ड डोर्स दायें हिस्से में ही रहतें हैं .सामान भी यही से चढ़ाया उतारा जाता है अलावा इसके ईंधन की आपूर्ति भी विमान में इसी हिस्से से होती है .ऐसे में यदि यात्रियों को भी इसी हिस्से से चढ़ाया उतारा जाए तो एक तरफ भीड़ दूसरी तरफ अफरा -तफरी का आलम बरपा हो जाएगा ।
आल्सो ऑन ओल्डर एयर -क्राफ्ट ,दी फोरवर्ड राईट हेंड डोर्स वर एक्च्युँली देज़िग्नेतिद सर्विस डोर्स एंड इमरजेंसी एग्ज़िट्स ओनली .यानी ये आपातकालीन सेवाओं के लिए भी थे ,सर्विस डोर्स भी थे .दोनों ही राईट हेंड डोर्स थे ।
अलावा इसके विमान के बाएं हिस्से में ही मुख्य पायलट बैठता है .को -पायलट की सीट मुख्य पायलट के दायें को रखीजाती है ।
बड़े और अधुनातन विमानों में पायलट को दाई ओरकुछ भी दिखलाई नहीं देता है .दी पायलट हेज़ नो विजिबिलिटी ऑन दी राईट ।
टेक्सिंग टू ए गेटवे वाया दी राईट साइड एलाउज़ दी पायलट टू सी विद मोर एक्यूरेसी एग्ज़ेक्त्ली व्हेयर टू स्टॉप .,दो दी गेंग -वेज़ कैन बी मूव्ड ।
व्हाट इज टेक्सिंग ऑफ़ ए प्लेन ?
टू
मूव दी प्लेन स्लोली एलोंग दी ग्राउंड बिफोर टेकिंग ऑफ़ ऑर आफ्टर लेंडिंग .सोफ्ट टेक ऑफ़ ऑर लेंडिंग के लिए यह ज़रूरी भी है .

मूंगा (प्रवाल या कोरल )अपनी विशेष रंगत क्यों खोने लगता है ?

व्हाट इज कोरल रीफिंग ?
इसे समझने से पहले यह समझें मूंगा ,प्रवाल या कोरल क्या है ?
एक छोटा सा समुंदरी जीव होता है जिसकी अस्थियों (हड्डियों ) से एक कठोर लाल ,गुलाबी या स्वेत कल्केरिय्स पदार्थ बनता रहता है .यही मूंगा /प्रवाल /कोरल है .मूंगा चट्टाने मूंगा से ही निर्मित होतीं हैं ।मूंगा वैसे लाल -नारंगी आभा भी लिए हो सकता है .जेवरात की रंगत बढाता है मूंगा .
ए कोरल रीफ इज ए लाइन ऑफ़ रोक़ इन दी सी फोर्म्द बाई कोरल ।
कोरल रीफ इज ए मेरीन रीफ कंपोज्ड ऑफ़ दी स्केलीतंस ऑफ़ लिविंग कोरल टुगेदर विद मिनरल्स एंड ओरगेनिक मैटर ।
अब आतें हैं इसके विरंजिकरण /रंग -विहीन होने पर .क्या खो देता है मूँगा rअन्गीनी ?
दरअसल यह कोरल द्वारा (कोरल खुद एक जैविक प्रणाली है )
उस एक कोशीय प्राणी का बहिष्करण हैं ,निर्वासन है जिसके साथ यह अभी तक सहजीवन (लिविंग टुगेदर रिलेशनशिप कायम किये हुए था )सह -वर्धन में था ,सिम्बियोतिक लिविंग
में था ।
पूरी तरह रंगहीन होकर स्वेत हो जाने पर इसकी खुद की भी मौत हो जाती है .ज़ाहिर है इस सबकी वजह बाहरी दवाब (स्ट्रेस )बनता है .स्ट्रेस के हठने पर सहजीवन फिर से शुरू हो सकता है.बहिष्कृत ओरेग्निज्म लौट आती है ।
१९९० आदि के दशक में कोरल ब्लीचिंग का सिलसिला शुरू हुआ .पता चला कोरल पर स्ट्रेस बढ़ रहा है .दुनिया भर में कोरल पारितंत्र दवाब में हैं ।
कोरल जैव -विविधता को नए आयाम जैविक प्रणालियों को पनाह देता है बा शर्ते उसे अनुकूल पर्यावरण -पारी तंत्र खुद भी रास आयें .विपरीत परिश्थिति में कोरल के संग साथ इसके गिर्द बने रहने वाले जीव (जैविक -प्रणालियाँ )भी चल बसतीं हैं .जैव -विविधता का परचम फैरा(फेहरा ) सकता है कोरल .बा -शर्ते हम इसका विरंजिकरण (ब्लीचिंग ) न होने दें .

कैसे बनती है पानी में भंवर (जलावर्त )वलपूल ?

वर्ल -पूल नदी या समुन्दर के पानी में बनती भंवर क्या है ?उस तैराक को अच्छी तरह मालूम है जो कभी इस भंवर जाल में फंस गया हो ।
ए वलपूल इज ए लार्ज ,स्वर्लिंग बॉडी ऑफ़ वाटर प्रो-द्युस्द बाई ओशन ताईड्स.हर किसी ने कभी कभार नदी खासकर जब उसमे बाढ़ आई हुई हो उफान पर हो या समुन्दर में पानी को लट्टू की तरह चक्कर खाते साथ ही किसी बेले नर्तकी की तरह थिरकते बल खाते आगे बढ़ते ज़रूर देखा होगा ।
ज़रूरी बात है भंवर बनने के लिए बहते पानी के रास्ते में किसी अवरोध ,रेजिस्टेंस ,किसी भी किस्म के बेरियर (पानी के भाव -बहाव में रुकावट पैदा करने वाली कोई भी चीज़ .बस ऐसा होने पर जल एक आघूर्ण गति (स्पिन मोशन )में आ जाता है चक्कर खाता हुआ नर्तन करता ,कुंडली बनाता आगे बढ़ने लगता है .बेहद का बल लिए होता है यह आघूर्ण .बस जल की एंठन और मरोड़ की वजह यही बाधा बन जाती है जो बहते हुए जल का रास्ता रोकने लगती है ।यही तो है भंवरी गति ।
वल्पूल्स कैन अकर इन ए स्माल एरिया व्हेयर ए पीस ऑफ़ लैंड जुट्स
आउट इनटू ए रिवर .यानी स्थल का जल से बाहर की ओर आना ,बहिर्विष्ट होना ,प्रोजेक्ट करना पानी से बाहर आना भी जलावर्त की वजह एक छोटे से घेरे में बनता देखा जा सकता है ।
वर्ल्पूल्स कैन आल्सो अकर इन दी मिडिल ऑफ़ दी ओशन व्हेन वन करेंट मीट्स एन अपोज़िंग करेंट ,एज व्हेन एन इनकमिंग टाइड हिट्स दी एब्ब करेंट ऑफ़ दी लास्ट टाइड .
yaani khule samundar ke beech me jab do vipreet jal dhaaraayen aakar miltin hain .jvaariy jal dhaaraa bhaatiy dhaaraa se gale milne lagti hai .
kabhi kabhaar toofaani havaaye ,vegvati pavnen bhi jalaavart banaane lagtin hain .
strong winds canalso whip up the water into whirlpoools .

"मोंतेजुमा'ज रिवेंज "क्या है ?

मोंटे -ज़ुमाज़ रिवेंज क्या है ?
मोंटे -जुमा केन्द्रीय मेक्सिको का अजतेक सम्राट था जिसका प्रभुत्व १४ वीं तथा १५ वीं शती में केन्द्रीय मेक्सिको पर कायम रहा ।
अजतेक इज ए मेंबर ऑफ़ ए नेटिव मिडिल अमेरिकन पीपुल हूज एम्पायर दोमिनेतिद सेन्ट्रल मेक्सिको ड्यूरिंग दी फोर्तींथ एंड फीफ -तींथ सेंच्युरीज़ .दी लेंग्वेज वाज़ "नहाती " ऑर एज्टेकन.इन्हीं के(मोंटे -जुमा ) शासन के दौरान स्पेन के एजटेक साम्राज्य का भू -क्षेत्र जीत लिया गया था ।
इस इतिहासिक जीत के बाद से ही जो इस दौर की एक एहम घटना थी इस इलाके जिसमे मेक्सिको के अलावा कई दक्षिणी अमरीकी देश भी शामिल थे के जल पीने से योरोप से आने वाले यात्रियों को पैदा होने वाली बीमारी को 'मोंटे -ज़ुमाज़ रिवेंज 'कहा जाने लगा ।
ई -कोली से पैदा होने वाली इस बीमारी को बाद के बरसों में ट्रेवलर्स डायरिया कहा जाने लगा .भारत में इसे देल्ही -बेली ,मिश्र में मम्मीज -ट्मी,इंडोनेशिया में बाली बेली के नाम से भी जाना जाता है ।
मोंटे -ज़ुमाज़ रिवेंज इज एन ओफेंसिव टर्म फॉर डायरिया एंड सिकनेस एक्स -पीरियेंस्द व्हेन विजिटिंग एनादर कंट्री ,ओरिजिनली मेक्सिको ,एंड ईटिंग अन -फेमिलियर फ़ूड आफ्टर मोंतेजुमा सेकिंड ।
सन्दर्भ -सामिग्री :एनकार्टा कन्सा -इस इंग्लिश डिक्श -नरी(ब्लूम्सबरी पब्लिशिंग पी एल सी ,२००१ ,पृष्ठ ९३७ ,० ९५ /ओपन स्पेस ,सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,नवम्बर २८ ,२०१० ,पृष्ठ २६ ,मुंबई संस्करण ).

शनिवार, 27 नवंबर 2010

क्लास रूम्स में छात्रों को एलर्ट रखने के लिए स्कूल विज़न लाइटिंग सिस्टम ....

ब्ल्यू लाईट टू वेक अप ड्रा -ऊजी प्युपिल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
एक ब्रितानी स्कूल ने एक अभिनव स्कूल विज़न लाइटिंग सिस्टम डिजाइन किया है जो चार अलग अलग तरह से सेट किया जा सकता है ।
नोर्मल सेटिंग रोजमर्रा की कक्षा गति -विधियों के लिए ,एनर्जी सेटिंग एक ब्ल्यू -टिंज प्रदान करेगी प्रकाश को जो छात्रों को जीवंतऔर ऊर्जस्वी बनाए रहेगी ।
फोकस सेटिंग में वाईट लाईट होगी जो कक्षा में ध्यान से पढने में मदद करेगी ।
काम सेटिंग में एक वार्मर रंग लिए होगा प्रकाश जो कमरे के माहौल को रिलेक्स्ड (आराम -दायक )रखेगा .कुल मिलाकर किस्सा गो ये है छात्र कक्षा में ऊंघेगे नहीं ,चौकन्ने रहेंगे ,उनींदे नहीं .स्मार्ट रहेंगे स्लीपि नहीं .

स्किन कैंसर से बचाव के लिए आई -फोन एप्लाइयेन्स ...

ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों ने आई -फोन का एक अभिनव एप्लीकेशन ईजाद किया है इसे 'सन -स्मार्ट 'कहा जा रहा है .इसमें एक अलर्ट फंक्शन शामिल किया गया है जो ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम की मदद से न सिर्फ आपको आपकी लोकेशन के अनुरूप उस समय सौर विकिरण में मौजूद खतरनाक अल्ट्रा -वायलेट अंश के नुक्सानात के प्रति खबरदार कर देता है .विकिरण की सुरक्षित सीमा किस पल -पहर कितनी रहने वाली है यह भी इत्तला देता रहता है ताकि आप अनुकूल समय पर धूप सेंक सके ,धूप -में नहा सकें ।
आपको बत- लादें चमड़ी कैंसर के सबसे ज्यादा मामले दुनिया भर में ऑस्ट्रेलिया में ही न सिर्फ दर्ज़ होतें हैं हर साल १,८५० लोगों की जान ले लेता है चमड़ी का कैंसर .कुसूरवार होता है सौर -विकिरण में मौजूद परा -बैंगनी विकिरण का खतरनाक अंश ।
२४/७ हर पल मौसम का हाल बतलाएगी यह प्राविधि .परा -बैंगनी विकिरण के अधिकतम और सुरक्षित समझे जाने वाले न्यून -तम मान की खबर भी देगी यह प्रणाली .मजेदार बात यह है आई -फोन के साथ इस अप्लाइयेन्स को मुफ्त में दिया जा रहा है .विकिरण के प्रति ला -परवाह युवा भीड़ भी इसका फायदा उठा सकेगी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-न्यू -आई -फोन एप्लाइयेन्स टू फाईट स्किन कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवंबर २७ ,२०१० ).

मुजरिम होने की खानदानी वजहें भी मौजूद रहतीं हैं .

टर्निंग टू क्राइम इज इन दी जींस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २७ ,२०१० )।
क्राइम इज इन योर जींस ?कहते तो यही आये हैं नर्चर और नेचर दोनों ही मिलकर व्यक्तित्व गढ़तें हैं .आप केवल अपने जींस (जीवन इकाइयों ,जीवन खण्डों ,क्वांटम ऑफ़ लाइफ )का जमा जोड़ नहीं हैं .आप अपना परिवेश और परवरिश भी होतें हैं ।
बेशक संग का रंग भी चढ़ता है .अपराधी पैदा भी होतें हैं .पैदा किये भी जातें हैं .लेकिन एक फ्लोरिडा विश्व -विद्यालय में संपन्न अध्ययन आपके मुजरिम होने का सेहरा आपके खानदान के सिर बाँध रहा है .आनुवंशिक वजहें रहतीं हैं अपराध में लिप्त होने की ,फिर भले आपकी परवरिश में कोई खोट हो न हो ।
गोद लिए गए युवा लोगों पर संपन्न हुआ है यह अध्ययन .जिसमे युवा औरत -मर्द शामिल रहें हैं .पता चला ,इन युवा लोगों की पोलिस से भीडंत की संभावना ४.५ गुना बढ़ी रही उन युवाओं में जिनकेनेच्युरल पेरेंट्स ,असली माँ -बाप में से किसी एक का भी आपराधिक रिकार्ड रहा आया था .भले इनकी परवरिश में कहीं कोई खोट न था .इसका मतलब यह हुआ अपराधी पैदा भी होतें हैं .खानदानी वजहें भी रहतीं हैं अपराध की .

स्किन कैंसर से बचाव के लिए अब आई -फ़ोन .

सौर -आई फोन अप्लायेंस टू फाईट स्किन कैंसर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।

आई -फोन की एक abhinav aplikeshan आई hai 'san -smaart '.yah aapko कैंसर paidaa karne vaali paraa -baignee kirnon से bachaayegi ,chetaavni dekar aapko khabardaar karegi ।

चमड़ी kainsar के maamle me ऑस्ट्रेलिया अव्वल बना रहा है .यहाँ स्किंकैंसर हर साल १८५० लोगों की जान ले लेताh है "में -परा "बैंगनी विकिरण का के लिए अंश ही -कीअंश की ज़रिया बन विकिरण सिस्टम ।

यह पल प्रति पल है बतलाएगी saur vikiran me paraa -baingnee vikiran kaa ansh .साथ hi विकिरण ki -ज़रूरी चेतावनी प्रसारित -करेगी .(सौर विकिरण )में उस समय (मौजूद )परा बैंगनीansh ki .ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम से जुडी इसमें एक अलर्ट sistam को भी शामिल किया गया hai जो यूजर की लोकेशन के anuroop zaroori chetaavni prasaarit karegi saur vikiran me us samay mauzood paraa -baingnee vikiran का मान batlaayegi .pal -prati -pal .

नौ साल की उम्र में ही जो बच्चे ओवरवेट हो जातें हैं ...

किड्स ओबेसी बाई ९ रिस्क गेटिंग हार्ट डीज़ीज़ बाई एज १५ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २७ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
एक नवीन अध्ययन के अनुसार जो बच्चे ९ साल की उम्र में ही ओवरवेट हो जातें हैं और १५ साल की उम्र तक भी ओवरवेट ही बने रहतें हैं उनके हृद रोगों की चपेट में आने का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है ।
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के रिसर्च दानों ने पहली मर्तबा बॉडी मॉस इंडेक्स ,वेस्ट साइज़ और फैट मॉस के बीच एक अन्तर -सम्बन्ध की पड़ताल ९-१५ साला (पूर्व -किशोरावस्था ) बच्चों में की है .साथ ही किशोरावस्था के बाद के वर्षों (उत्तर -किशोरावस्था ,लेट- टीन्स ) ऐसा होने पर दिल के लिए पैदा होने वाले खतरों के वजन की भी पड़ताल की है ।
पता चला जिन बच्चों का ९ साल की उम्र से ही बॉडी मॉस इंडेक्स ज्यादा हो जाता है और ये बच्चे फैट(मोटे )ही बने रहतें हैं इनमे न सिर्फ हाई -ब्लड प्रेशर रहने की संभावना बढ़ जाती है .इनमे कोलेस्ट्रोल और ब्लड इंसुलिन लेविल्स भी ज्यादा बने रहने की गुंजाइश पैदा हो जाती है .१५ साल की उम्र तक आते -आते इनके लिए हृद रोगों का ख़तरा इन्हीं रिस्क फेक्टर्स के चलते बढ़ जाता है .जो बच्चे १५ की उम्र तक हेल्दी वेट हासिल कर लेतें हैं उनके लिए ये जोखिम भी कम हो जाता है ।
यह अध्ययन जो ५२३५ बच्चों पर संपन्न किया गया है उस बड़े रिसर्च प्रोजेक्ट का एक हिस्सा भर है जिसके तहत पैदा होने के बाद से ही १४,००० बच्चों का स्वास्थ्य सम्बन्ध हिसाब किताब रखा गया है .रिसर्चरों ने अपने इस अध्ययन में९-१२ साला बच्चों के बॉडी मॉस इंडेक्स (बी एम् आई जो भार (किलोग्रेम )/(हाईट ),मीटर स्क्वायार्ड ,का अनुपात होता है ),कटि -प्रदेश का माप यानी सर्काम्फ्रेंस ऑफ़ वेस्ट ,तथा सभी बच्चों के फैट -मॉस का भी हिसाब रखा है ।
बेशक लड़कों में कुदरती फैट की मात्रा लड़कियों से कम रहती है ,बी एम् आई का आकलन करते वक्त लिंग का भी ध्यान रखना पड़ता है .लेकिन बी एम् आई ,भार (किओलोग्रेम )और हाईट इन मीटर स्क्वायार्ड का ही अनुपात रहता है ।
पता चला ९-१२ साल के दरमियान जिन बच्चों का बी एम् आई ज्यादा (उच्चतर )बना रहा उनके लिए १५-१६ साल की उम्र में ही दिल की तकलीफों के आसार पैदा हो गए .दूसरे फेक्टर्स पर गौर करने ,एडजस्ट करने के बाद भी यही जोखिम बना रहा ।
ब्रितानी हार्ट फाउन्देशन के कैथी रोस के अनुसार सिल्वर लाइन यही है जो बच्चे किशोरावस्था तक आते आते अपना वजन कद काठी के अनुरूप कर लेतें हैं ,कम कर लेतें हैं उनके लिए हृद रोगों के खतरे भी कम हो जातें हैं .

जैट लेग से हो सकता है लॉन्ग टर्म मेमोरी लोस .

जिनका एक पैर अकसर हवाईजहाज में रहता है ,सात समुन्दर पार की हवाई यात्रा जो अकसर करते रहतें हैं वे विमान यात्री एक माह बाद तक भी अपनी दैनिकी में लौटने पर थके मांदेऔर भुलक्कड़ बने रह सकतें हैं .एक अमरीकी अध्ययन के मुताबिक़ जैट लेग इनके मष्तिष्क में लॉन्ग टर्म (दीर्घावधि बदलाव )चेंज़िज़ पैदा कर सकता है .यही हाल उनका होता है जो हर दूसरे दिन बदलती दिन -रात की पालियों में काम करने को मजबूर होतें हैं .यह अपने किस्म का पहला अध्ययन है जो जीवन शैलीबदलावों के दिमाग की एनाटोमी पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करता प्रतीत होता है ।
केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ,बर्कली कैम्पसके मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर लंके क्रिएग्स्फ़ेल्द इसे हमारे बोध सम्बन्धी व्यवहार ,सीखने की क्षमता आदि पर (कोगनिटिव बिहेवियर ) दीर्घावधि प्रभाव डालने वाला बतलातें हैं फिर वह चाहें रात की पाली में काम करने वाले मेडिकल रेज़ीडेंट हों या फ्लाईट अटेंडेंट हमारी जैव घडी का (सर्कादियाँ रिदम )का गाहे -बगाहे डिस -रप्त होना अपने दीर्घावधि असर छोड़ता है ।
अपने प्रयोगों में रिसर्च्दानों ने फिमेल हेम्स्तर्स के शिड्यूल में हफ्ते में दो बार चार सप्ताह तक ६ घंटों का बदलाव किया .(समझ लीजिये इन्हें न्यू -योर्क से पेरिस की उड़ान में सप्ताह में दो बार सवारी कराई ।).
खंडित सर्कादियंन रिदम से दुखी हैरान परेशान ये हेम्स्तर्स
मामूली पाठ भी रोजमर्रा के इन चार हफ्तों की अवधि में सीखने में खासी दिक्कत महसूस करते दिखे .सामान्य दैनिकी में आने के एक माह बाद तक भी इन्हें सीधी -साधी चीज़ें सीखने में दिक्कतें आती रहीं ।
वास्तव में इनके दिमाग के एक हिस्से हिप्पाकैम्पस में जेट लेग के दीर्घावधि असर की वजह से नए न्युरोंस आधे ही संख्या में पैदा हुए .याददाश्त से ताल्लुक रखता है हिप्पाकैम्पस .जेट -लेगेद हेम्स्तर्स कंट्रोल ग्रुप के हेम्स्तर्स के बनिस्पत आधे ही न्युरोंस दर्ज़ कर पाए ।
जर्नल "पलोस वन /पीएलओएस वन "में इस अध्ययन के नतीजे प्रकाशित हुए हैं ।
पूछा जा सकता है हेम्स्तर्स का चयन ही इस अध्ययन के लिए क्यों किया गया .वास्तव में इनकी जैव घडी एकदम से सटीक होती है २४/७ काम करती है .हमारी अपनी सर्कादियंन रिदम सी ।
गौर तलब यह भी है शिफ्ट वर्कर्स हों या सात समुन्दर पार की बारहा हवाई यात्रा करते रहने वाले यात्री इन सभी में 'दिक्रीज्द रिएक्शन टाइम्स ,डायबिटीज़ की ऊंची दर ,हृद रोग तथा हाई -पर -टेंशन ,कैंसर तथा रिद्युस्द फर्टिलिटी देखी गई है ।
इस से बचाव का तरीक़ा भी क्रिग्स्फेल्ड सुझातें हैं .एक दिन का रिकवरी टाइम चाहिए वन आवर टाइम ज़ोन शिफ्ट के बाद .नाईट -शिफ्ट वर्कर्स को घुप्प अँधेरे कमरों में सोना चाहिए .शोर शराबे से दूर ताकि उनका शरीर तंत्र बदले हुए शैड्यूल से ताल मेल रख सके ।
हेम्स्टर एक पालतू जीव है .यह पालतू जानवर चूहों जैसा ही होता है .ये अपने दोनों मोटे मोटे गालों में भोजन ज़मा करके रखतें हैं .कुछ मोटे और बिना पूंछ के जानवर हैं हेम्स्तर्स .

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

गत पोस्ट से आगे ....

भूल सुधार :-
ए पिल ए डेकैन कीप एच आई वी अवे (मुंबई मिरर ,नवम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
गलती से इस रिपोर्ट में "सन्दर्भ सामिग्री " में टाइम्स ऑफ़ इंडिया छाप गया है .गलती के लिए मुआफी ।
वीरुभाई ।
४ सी ,अनुराधा ,नोफ्रा ,कोलाबा ,मुंबई -४००-००५
०९३५०९८६६८५ .

एच आई वी -एड्स से बचाव और इलाज़ दोनों -केवल एक टिकिया त्रुवादा रोजाना ..

ए पिल ए डे कैन कीप एच आई वी अवे (दीटाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर ,२६ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
ए न्यू स्टडी शोज़ फॉर दी फस्ट टाइम देट ए वन -ए डे टेबलेट काल्ड "त्रुवादा "कैन प्रिवेंट ,एज वेळ एज ट्रीट एच आई वी इन गे एंड बा -सेक्स्युअल मेन।
" गिलेअड
साइंसिज़ एड्स "ने दो दवाओं का एक मिश्र तैयार किया है .यह कोम्बो ड्रग हाई -रिस्क -गे तथा बाइसेक्स्युअल मर्दों में एच आई वी संक्रमण दर को ४४%घटाने में कामयाब रही है .दोसाल तक लगातार संगत रीति से जिन मर्दों ने यह दवा रोजाना ली है उनके संक्रमण का जोखिम -भी ७० फीसद कम रह गया .अमरीकी सरकार द्वारा पेरू ,थाईलैंड ,दक्षिणी कोरिया के अलावा कई और जगहों पर किये गए अध्ययनों से यह पुष्ट हुआ है ।
यह पहली मर्तबा पता चला है यह दवा एक बचावी चिकित्सा का काम भी कर सकती है यानी संक्रमण से पहले इसका स्तेमाल इसके मेन -टू -मेन ट्रांसमिशन को रोकता है .ह्यूमेन -इम्यूनो -दिफिशियेंसी वायरस के खिलाफ जेहाद में यह दवा एक रण -नीतिक अश्त्र सिद्ध हो सकती है ।
यु एस सेंटर्स फॉर दीजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के माहिरों द्वारा इन नतीजों को एहम बतलाया जा रहा है ।
दीज़ मे नोट अप्लाई टू पीपुल एक्सपोज्ड टू मेल -फिमेल सेक्स ,ड्रग यूज़ ऑर अदर वेज़ .हालाकि ऐसे लोगों के समूह पर भी अध्ययन ज़ारी हैं ।
रिसर्चरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने कुल मिलाकर अब तक २४९९ गेज़ ,बाई -सेक्स्युँल्स और ट्रांस -जेंडर मर्दों का अध्ययन किया है .जिन्हें एच आई वी इन्फेक्शन का खतरा बढा हुआ बना रहता है .इनमे से आधों को दवा "ट्रू -वडा"(दवा टेनो -फोविर और एम्ट्री-सिटाबिने का मिश्र दी गई बाकी को प्लेसिबो (डमी पिल )।
२.५ साल के बाद इनमे से १०० एच आई वी एड्स विषाणु से संक्रमित हो गए .इनमे से ३६ वह थे जिन्होंने त्रुवादा ली थी ६४ प्लेसिबो ग्रुप में से थे .इसका मतलब यह हुआ ट्रू -वडा के नियमित डेली स्तेमाल ने संक्रमण का जोखिम ४३ %से भी ज्यादा कम कर दिया ।
लोग अकसर गोली खाना भूल भी जातें हैं .रिसर्चरों ने नियमित इनके खून की जांच की .जिन लोगों के खून में दवा ९० %अवसरों तक पर मौजूद थी उनमे संक्रमण का ख़तरा ७३ %कम हो गया था प्लेसिबो लेने वालों के बरक्स ।
जिन्हें दवा लेने के बाद भी संक्रमण लग गया उनके उनके खून में या तो दवा का स्तर बहुत कम था या बिलकुल भी नहीं था इसका मतलब यह हुआ लोग दवा ले ही नहीं रहे थे .यही कहना है इस सिलसिले में रोबेर्ट ग्रांट का जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया ,सा से सम्बद्ध है तथा अध्ययन के अगुवा रहें हैं ।
दवा के मामूली से अवांच्छित प्रभाव रहें हैं .सुरक्षित समझा गया है इसे .दवा के प्रति किसी भी प्रकार का प्रयोग -कर्ताओं में प्रति -रोध भी दर्ज़ नहीं हुआ है .यदि उन तीन लोगों को छोड़ दिया जाए जो दवा शुरू करने से पहले से ही संक्रमित चले आ रहे थे तो यह माना जा सकता है दवा वायरस (एच आई वी )के खिलाफ असरकारी रही है ।
बेशक अमरीका में इस दवा पर एक महीने में १००० डॉलर खर्च करना पड़ता है लेकिन भारत और अफ्रिका के लोगों के लिए इसका जान्रिक संस्करण तैयार किया गया है .एक गोली की कीमत है १८ रुपया ।
हर साल २७ लाख लोग एच आई वी एड्स संक्रमण की चपेट में आ जातें हैं .यह दवा ऐसे मामलों को कम कर सकती है .ज़रुरत इसके प्रचार और प्रसार ,उपलब्धता की है .

आघातकारी घटनाएं हमारी जीवन इकाइयों को भी असरग्रस्त कर सकतीं हैं.

ट्रोमेटिक इवेंट्स कैन इम्पेक्ट जींस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
सदमे का असर दूर तक पीढ़ी -दर -पीढ़ी जा सकता है .मनोवैज्ञानिक और जैविक असर के अलावा आघातकारी घटनाएं हमारे जींस को भी प्रभावित कर सकतीं हैं .सदमे के असर एक से दूसरी पीढ़ी तक जा सकतें हैं ।
सितम्बर ११ और इस से भी पूर्व हिरोशिमा और नागा साकी पर बमबारी में जो बच गए उनकी सन्ततियां बहु- विधरेडियो -धर्मी विकिरण ही नहीं सदमे का खामियाजा भी उठाती आईं हैं ।
ज़ाहिर है अजन्मे बच्चे भी आघातकारी घटनाओं के उत्तर प्रभाव झेलतें -भोगतें हैं .साइंसदानों के मुताबिक़ सदमा उस रासायनिक तरीके (मिकेनिज्म )को ही तब्दील करके रख देता है जो जींस को अभिव्यक्त करता है .मेल लाइन में ये बदलाव हमेशा -हमेशा के लिए चले आतें हैं .संततियों तक जाता है जीन एक्सप्रेशन में होने वाला यह बदलाव .इस से विकास -वादी -सिद्धांत की एक बुनियादी अवधारणा पर सवालिया निशान लग गया है .

चरस (कैनबिस ) सिगरेट में भरकर पीने से कैंसर का ख़तराऔर भी बढ़ जाता है ...

स्मोकिंग कैनबिस अप्स कैंसर रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
कुछ लोग भांग के पौधे से एक पदार्थ प्राप्त करते हैं जिसे चरस कहा जाता है .(यह भांग के पौधे की पत्तियों को जलाकर प्राप्त किया जाता है .).अवैध रूप से इस प्रतिबंधित पदार्थ को लोग सिगरेट्स में भरकर पीते हैं .अलग से पता चलता है जब इसकी ख़ास गंध नथुनों में चढ़ जाती है कोई चरस पी रहा है सिगरेट में भरकर ।
साइंसदानों ने पता लगाया है यह पदार्थ "चरस "/कैनबिस हमारे रोग प्रति -रक्षा कवच का शमन करता है .इट
अप्रेसिज़ अवर इम्यून सिस्टम .इसका रोग प्रति -रोधी तंत्र के प्रति यही शमनकारी रवैया कैंसर को हवा देता है .चरस ऐसी कोशिकाएं के शरीर तंत्र द्वारा उत्पादन को प्रेरित करता है जो कैंसर के प्रति हमारे कुदरती प्रति -रोध के पंख कुतर देता है . इस शोध कार्य को संपन्न किया है स्कोट -लैंड के साइंसदानों ने .शुक्रिया ज़नाब .

इरेक्टाइल डिस -फंक्शन के समाधान के लिए नुश्खा ...

लिंगोथ्थान अभाव (इरेक्टाइल डिस -फंक्शन )के समाधान के लिए एक संपूरक इतालवी डॉ .एरमान्नो गरेको ने तैयार किया है .आज़माइश के बाद इस नुश्खे को ८५ %मामलों में कामयाब पाया गया है ।
गरेको एक नाम चीन साइंसदान हैं .आप योरोपीय अस्पताल ,रोम ,में प्रजनन जैविकी एवं चिकित्सा के निदेशक हैं .७५ मरीज़ शामिल थे इनके एक परीक्षण समूह में जिनमे से ८५ %को फायदा पहुंचा ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-
ए रेमेडी फॉर इरेक्टाइल डिस -फंक्शन :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ).

छरहरी काया बनाए रखने के लिए प्रोटीन ज्यादा परिष्कृत शक्कर कम खाइए ...

योरोपीय रिसर्चदानोंकी एक टीम ने इस बात की पुष्टि की है ,छरहरी काया बनाए रखने ,वजन को काबू में रखने के लिए खुराक में प्रोटीन ज्यादा परिष्कृत कार्बो -हाई -ड्रेट्स कमतर रहने चाहिए ।
एक लो केलोरी डाईट पर रहने वाले उन औरत -मर्दों को जिन्होंने अपना वजन ८%कम कर लिया था अगले ६ माह के लिए एक मेंटेनेंस डाईट पर रखा गया .यह कायम रह सकने लायक खुराक प्रोटीन बहुल लेकिन परिष्कृत कार्बो -हाई -ड्रेट्स नामभर के लिएही लिए हुए थी .ये तमाम लोग न तो अध्ययन से खिसके न ही इस दरमियान इनके वजन में इजाफा होने की संभावना ही पैदा हुई ।
प्रति -भागियों के अलग -अलग समूह बनाए गए जिन्हें प्रोटीन की अलग -अलग मात्रा ,किसी को कम किसी को ज्यादा ,थोड़ा फैट(चिकनाई )तथा परिष्कृत शक्कर युक्त पदार्थों की अलग अलग मात्रा मुहैया करवाई गई ।
प्रोटीन बहुल तथा कमतर परिष्कृत शक्कर युक्त खाद्यों का सेवन करने वाला समूह छरहरा बना रहा .अध्ययन में आखिर तक शरीक रहा .

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

छल करना आसान होता है क्या इसीलिए लोग कपट -पूर्ण व्यवहार करतें हैं ?

यदि छल -कपट करना सीधा -सपाट इतना आसान नहीं होता तो क्या तब भी लोग कपट -पूर्ण व्यवहार ,धोखा -धडी धड़ल्ले से बिना सोचे बिचारे करते करते ?

वी चीट ,बिकओज़ इट इज दी ईज़ियेस्ट थिंग टू डू .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।

आखिर लोग अनैतिक आचरण करते ही क्यों है ?वैसे भारत के सन्दर्भ में यह सवाल उठाना एक दम से बे -मानी है .यहाँ अनेइतिक व्यवहार नियम है अपवाद नहीं .तो भी आइये देखते हैं क्या कहतें हैं इस बारे में साइंसदान ?

कितने ही लोग यह कहते नजर आ जातें हैं .वह काम ढूंढते वक्त ,काम के लिए आवेदन करते वक्त बे -ईमानी नहीं करेंगे .ज़रूरतमंद की मदद से इनकार नहीं करेगे .टेस्ट में हेरा -फेरी भी नहीं करंगे .लेकिन मौक़ा मिलते ही ,अनुकूल परिस्थिति रास्ते में आते ही वह ऐसा करने में तनिक भी वक्त जाया नहीं करते .जैसे बे -ईमानी करना ,बुरा व्यवहार करना व्यक्ति का बुनियादी स्वभाव ही हो .बुरा आप से आप ही हो जाता हो ।

टोरोंटो -विश्व -विद्यालय के रिसर्च -दानों ने यही नतीजे निकाले हैं अब तक के अध्ययनों से ।

रिसर्चरों ने प्रतियोगियों की हेरा -फेरी करने की मर्ज़ी का पता लगाने के लिए एक साथ दो प्रयोग किये .पता चला यदि छल कपट करने के लिए विशेष कुछ नहीं करना पड़े तो लोग अदबदाकर कपट पूर्ण आचरण करेंगे ।

सुव्यक्त ,एक दम से साफ़ -साफ़ सीधा सपाट मामला न हो तो लोग क़ानून तोड़ने में देर नहीं लगातें हैं .लेकिन मामला यदि बोरिंग हो ,मुश्किल भी हो म्हणत माँगता हो तो लोग अनेतिक

व्यवहार नहीं करंगे ।

इफ दे कैन लाइ बाई ओमिशन ,चीट विदाउट डूइंग मच लेगवर्क ऑर बाई -पास ए पर्सन्स रिक्युवेस्ट फॉर हेल्प विदाउट एक्स्प्रेसली दिनाइंग देम ,दे आर मच मोर लाइकली टू डू सो .
लेकिन यदि मामला सही या गलत जो भी करना हो सक्रियता से करने की गुंजाइश रखता हो तब लोग तब कई किस्म के ज़ज्बातों ,अपराध बोध और शर्मो -हया से भी रु -ब-रु होने लगतें हैं .ऐसे में कुछ भी करना उतना आसान भी नहीं रह जाता है .लेकिन जब मामला दबा ढका हो ,नियम तोड़ना पेसिव हो तब नैतिक दवाब आवेग संवेग कमतर ही व्यक्ति का घेराव करतें हैं .और बस व्यक्ति बी -ईमान हो जाता है .

मिलनसार बना रहीं हैं लोगों को सोसल मीडिया वेब -साइट्स ..

फेसबुक मेक्स पीपुल मोर सोसल :स्टडी (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० )।
एक अध्ययन के अनुसार रिश्तों की डोर को कमज़ोर नहीं अलग अलग आयु समूह के लोगों में संबंधों को मजबूती प्रदान कर रहीं हैं "फेसबुक "जैसी सोसल मीडिया वेब -साइटें ।
आज दुनिया भर में फेसबुक के ५० करोड़ से भी ज्यादा यूज़र्स हैं .इसके बढ़ते स्तेमाल को लेकर नाहक एक नकारात्मक असर को लेकर कई क्वाटर्स से चिंता भी ज़ाहिर की गई लेकिन रिसर्चर्स कुछ अलग ही कथा बांच रहें हैं ।
फेस बुक रु -बा -रु मिलनसारी को कम नहीं कर रही है .न ही यह सामाजिक उठ बैठ का स्थानापन्न है .पुष्ट यह हुआ है ऐसी मिल -बैठ के नए अवसर नए तरीके ,नै अभिव्यक्तियाँ ,नै नजदीकियां ,नए समुदाय नित रच रहीं है सामाजिक मीडिया वेब -साइटें .रिसर्च टीम के अगुवा एस .क्रैग वाटकिंस का यही कहना है .आप सहायक प्रोफ़ेसर हैं ,रेडियो ,टीवी फिल्म्स से सम्बद्ध हैं .

बुढ़ाने की प्रक्रिया को हवा दे सकतें हैं "तोअस्ट्स और क्रोइस्सन्त्स ".

टोअस्ट्स एंड क्रोइस्सन्स्त कैन स्पीड अप एजिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुम्बई ,नवम्बर २५ ,२०१० )।
क्या आप नाश्ते में टोअस्ट्स लेतें हैं ?आपको बतलादें साइंसदानों ने चेताया है ,"दीज़ क्रिस्पी टोअस्ट्स कुड बी फास्ट ट्रेकिंग एजिंग एंड क्रोनिक दीजीज़ .".बुढापे को, कुछ ला -इलाज़ मर्जों (रोगों )को न्योंत सकतें है आप नाश्ते में टोअस्ट्स और "ए स्माल स्वीट रोल विद ए कर्व्द शेप "यानी क्रोइस्सन्त्स को शामिल करके ।
बकर आईडीआई हार्ट एंड डायबिटीज़ इंस्टिट्यूट के जोसेफिने फोर्ब्स ने एक अध्ययन में ऐसे ही तमाम खाद्यों (फूड्स )का पता लगाया है जो ऐसे रसायन पैदा करतें हैं जो आखिरकार बुढ़ाने की प्रक्रिया और क्रोनिक दीजीज़ को हवा दे सकतें हैं ।
इन तमाम रसयानों को एडवांस्ड ग्लाईकेसन एंड प्रो -द्क्ट्स (एजीइज़ )कहा जा रहा है ।
हाश ब्राउन्स (चोप्ड पोटेतोज़ तथा ओनिअन्स को तब तक फ्राई किया जाता है जब तक ये ब्राउन न हो जाए ,बस हाश ब्राउन तैयार ),कोला ड्रिंक्स ,कोफी ,शक्कर और वसा से सने तमाम तरह के संशाधित खाद्य जिन्हें ग्रिल बेक या उच्च तापमान पर फ्राई किया जाता है "ए जीईज बनातें हैं । ए जी इज़ यानी एडवांस्ड ग्लाईकेसन एंड प्रो -द्क्ट्स .
फोर्ब्स और अन्य रिसर्च्दानों का भी यही कहना मानना है ,शरीर में बहुत ज्यादा मात्रा में "एडवांस्ड ग्लाईकेसन एंड प्रोडक्ट्स का गिनाये गए खाद्यों के सेवन से ज़मा हो जाना ,हृद -रोगों और शक्कर की बीमारी (जीवन शैली रोग डायबिटीज़ )की वजह बन सकता है .दीज़ आल्सो इनक्रीज डी रिन्क्लिंग एंड पिगमेंटेशन देट गोज़ विद एजिंग स्किन .

अधेड़ उम्र के लोगों के लिए बचावी चिकित्सा के लिए एस्पिरिन की जादुई गोली ..

माहिरों ने आवंच्छित पार्श्व -प्रभावों का कुल आकलन करने के बाद राय ज़ाहिर की है ७५ मिलिग्रेम एस्पिरिन का अधेड़ उम्र के लोगों के लिए रोजाना सेवन हृद -रोगों और कैंसरसे ऐसे तमाम मिडिल एज्ड लोगों को बचाए रह सकता है जिन्हें इन दोनों रोगों के होने का ख़तरा ज्यादा बना हुआ है .ज़ाहिर है ४५ से ऊपर के तमाम लोग इस पर विचार कर सकतें हैं .अकादमिक लाइन के लोगों की माने तो इस जादुई गोली के प्रिवेंटिव मेडिसन के बतौर फायदे ज्यादा है नुक्सान कम .विज्ञान पत्रिका 'लांसेट 'में इस अध्ययन के नतीजे प्रकाशित हुए हैं ।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संपन्न एक रिपोर्ट से पता चला था ७५ मिलिग्रेम की एस्पिरिन की टिकिया का लगातार पांच बरसों तक सेवन "बोवेल कैंसर "के खतरे के वजन को घटाकर एक चौथाई और इस से होने वाली मौतों को एक तिहाई कर सकता है ।
इस अन्वेषण के ठीक एक माह बाद ही माहिरों ने "रोयल सोसायटी ऑफ़ मेडिसन 'को संबोधित करते हुए उक्त सिफारिश की है .एस्पिरिन की बिना पर्चे के मिलने वाली ओवर डी काउंटर टिकिया ३०० मिलिग्रेम की होती है .७५ मिलिग्रेम की टिकिया उसकी एक चौथाई डोज़ भर है ।
पूर्व के अध्ययनों से भी लो डोज़ की कारगरता हृद रोगों से बचाए रखने में ,हृद रोगों को कम करने में असरकारी पाई गई है ।
संदर्भित अन्वेषण के अपने मायने हैं जो बेहद महत्वपूर्ण हैं .अनुसंधान इस दिशा में भी चल रहें हैं ,क्या एस्पिरिन बोवेल कैंसर के अलावा अन्य किस्म के कैंसरों में भी बचावी और प्रभावी चिकित्सा बन सकती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'फॉर ओवर -४५ज़ ,एन एस्पिरिन ए डे कट्स कैंसर रिस्क '(डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ १९ .)

अब तक का सबसे चमकदार स्टार -बर्स्ट प्रेक्षण में आया ...

ब्राइटेस्ट एवर स्टार -बर्स्ट स्पोटिद :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
खगोल विज्ञान के माहिरों ने अब तक का सबसे ज्यादा चमक लिए एक स्टार -बर्स्ट देखा है (प्रेक्षण में लिया है जिस से बेशुमार अवरक्त प्रकाश निकल रहा है .एक सम्पूर्ण नीहारिका से निसृतअवरक्त - प्रकाश(इन्फ्रा -रेड लाईट )को यह फीका कर रहा है । ).
समझा जाता है दो स्पायरल -गेलेक्सीज़ में भिडंत का नतीज़ा है यह तारकीय -स्फुटन जिन्हें फिलवक्त धूल ने आच्छादित किया हुआ है .इसीलिए अन्य वेवलेंग्थ में भी इनके सितारों को देख पाना मुमकिन नहीं हो रहा है ।
यह अब तक की गांगेय विस्फोट (गेलेक्तिक एक्स्प्लोज़न ) से भी दस गुना ज्यादा चमक लिए हुए है ।
"अन्तेंनाए गेलेक्सी "में हुआ था यह "ऑफ़ न्यूक्लीयर स्टार -बर्स्ट "जिसके कोमल प्रकाश की चमक आज भी बाकी है .

भूमंडलीय गर्माहट से ज्यादा गरमा रहीं हैं दुनिया भर की झीलें ..

हॉट फेक्ट :लेक्स वार्मिंग अप फास्टर देन लैंड ,एयर."नासा "युज़िज़ सेटेलाईट इमेज़िज़ टू स्टडी १०४ वाटर बॉडीज .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० )।

हवा के बरक्स ज्यादा गरमा रहा है दुनिया भर की ठंडी झीलों का जल .मौसम विज्ञान के माहिरों के अनुसार यह विश्व -व्यापी तापन का एक और प्रमाण है ।

इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए अमरीकी अन्तरिक्ष संस्था "नासा "के साइंसदानों ने समुद्र तटों से दूर दुनिया भर की १०४ इनलैंड -लेक्स (अंतर -देशीय ,देश के भीतरी भागों में बहने वाली बड़ी बड़ीठन्डे पानी की झीलों ) के बाबत उपग्रहों से प्राप्त तमाम आंकड़ों का अध्ययन विश्लेसन किया है .पता चला १९८५ के बाद से अब तक इनका औसतन तापमान १.१ सेल्सियस बढ़ गया है .यह वृद्धि विश्व -व्यापी तापमानों में इसी अवधि में होने वाली बढ़ोतरी से ढाई गुना ज्यादा है ।

रूस की लादोगा और अमरीका की ताहो लेक्स २.२ तथा १.७ सेल्सियस गरमा उठी हैं इस अवधि में .इस एवज गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसमों में जुटाई गई इन झीलों की इन्फ्रा -रेड इमेज़िज़ की पड़ताल की गई है ।

बोयेंसी डाटा से भी इनका मिलान किया गया ।हवा के विश्वव्यापी तापमानों पर भी यह आंकडें सटीक उतरे हैं .

कुछ जगहों पर झीलें हवा से ज्यादा गरमा रहीं हैं .सवाल यह है झीलें हवा से ज्यादा क्यों गरमा रहीं हैं .ज़वाब सीधा -साधा है .पानी की विशिष्ठ ऊष्मा ज्ञात खनिजों में सबसे ज्यादा होती है इसलिए पानी देर से ही गरम तथा देर से ही ठंडा होता है .झीलें देर से गर्मातीं हैं देर से ही ठंडाती हैं .

संतरे का ज्यूस अच्छा है आपके दिल की सेहत के लिए ...

ओरेंज ज्युज़ इज गुड फॉर योर हार्ट सेज स्टडी (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
एक नए अध्ययन ने ऐसा दवा किया है संतरे के ज्यूस का रोजाना दो ग्लास सेवन दिल के रोगों के जोखिम को कम करता है रक्त चाप को घटाता है ।
फ्रांस के औवेर्गने विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने अपने एक अध्ययन में पता लगाया है ,प्रोढा -वस्था (मिडिल एज़िद)वे मर्द जिन्होंने रोजाना एक माह तक तकरीबन आधा लीटर संतरे का ज्यूस लिया (तकरीबन दो ग्लास ज्यूस डेली )उनकी ब्लड प्रेशर रीडिंग्स कम रहीं .(ऊपरी और नीचे का पाठ ,सिस्टोलिक एंड डाय- सिस्टोलिक रीडिंग्स दोनों )।
पूर्व के अध्ययनों से भी यही संकेत मिला था ,संतरे का ज्यूस दिल की सेहत के लिए अच्छा हो सकता है .लेकिन क्यों ?
इस क्यों का खुलासा फ्रांस के अन्वेषकों ने किया है ,रिसर्च्दानों के मुताबिक़ संतरे के ज्यूस में पादपों में पाया जाने वाला एक कुदरती रसायन है "हेस्पेरिदीन"जो संतरे के फल को एक बचावी चिकित्सा बना देता है .प्रो -टेक्तिव पावर्स थमा देता है .

बुधवार, 24 नवंबर 2010

वृक्षवासी सर्प उड़ कैसे लेतें हैं ?

दक्षिण -पूर्व और दक्षिण एशिया में परस्पर सम्बंधित सर्पों की ऐसी प्रजातियाँ पाई जातीं हैं जो वृक्षों पर रहतीं हैं .एक वृक्ष से उड़ दूसरे तक यह हवा में उड़ के पहुँच जाती हैं ।
कुछ लोग सर्पों से बेहद डरतें हैं .यदि इन्हें उडन सर्पों के बारे में बतलाया जाए जो एक पेड़ से उड़कर दूसरे तक पहुँच जातें हैं तो डर से इनका बुरा हाल हो जाए .ऐसे लोगों को "ओफीडो -फोब्स "कहा जाता है .तथा सर्प -भीती को "ओफीडो -फोबिया "।
आइये देखतें हैं कैसे कुछ वृक्षवासी सर्प उड़ने का करिश्मा कर दिखातें हैं ?
कैसे जिस शाख पर यह मौजूद होतें हैं वहां से पलक झपकते ही उछाला भरके हवा में तरंगों से तैरते ये दूसरे पेड़ की सुदूर शाख तक पहुँच जातें हैं ?
कैसे यह शरीर को फ्लेट करतें हैं ?यकीन मानिए हवा में यह ७९ फीट तक की दूरी तय कर लेतें हैं .रिसर्च्दान इनकी उड़ान की नक़ल उतार कर ऐसे मानव रहित सूक्ष्म उड़ाके (माइक्रो -एयर -व्हिकिल्स )तैयार कर सकतें हैं जो एक स्वायत्त उडन मशीन की तरह काम करेंगे ।
जैव -यांत्रिक चमत्कार हैं ये सर्प ।
विर्जिनिया टेक के जैव -विदों ने इन सर्पों की "च्र्य्सोपेलेअ परदिस स्नेक्स "प्रजाति का विस्तार से अध्ययन किया है .इनकी उड़ान को चार कैमरों में उस समय कैद किया गया जब इन्होने एक १५ मीटर टाल टावर से झटके से अपने शरीर को हवा में उछाल कर उड़ान भरी .क्या हुआ इस दरमियान ?
इनकी पूरी काया का उड़ान के दौरान त्रि -आयामीय खाका(री -क्नस्त्रक्सन ) तैयार किया गया .हर हिस्से का स्नेप शोट लिया गया ।
दी री -कन्स्त्रक्त वर कपल्ड विद एन एनेलेतिकल मॉडल ऑफ़ ग्लाइडिंग डायनेमिक्स एंड दी फोर्सिज़ एक्टिंग ऑन स्नेक्स बॉडीज .पता चला लौंच प्लेटफोर्म से २४ मीटर ग्लाइड करने के बाद भी रेप -टाइल्स 'इक्युलिब्रियम ग्लाइडिंग स्टेट में नहीं पहुंचे .तरंगों की तरह आगे बढ़ते इनकी काया पर पड़ने वाले परिणामी बल कभी भी नीचे की और पड़ने वाले इनके भार के बराबर नहीं हुए .नतीज़न ये सर्प एक समान वेग से क्षितिज के साथ एक नियत कौड़बनाते हुए उड़ते रहे .ज़मीन पर नहीं गिरे ।
कमाल ! यह ऊपर उठते रहे .दी स्नेक्स वर pushd upwards ,even though moving downwards because the upward component ऑफ़ the एरो -डायनेमिक फ़ोर्स इज ग्रेटर देन दी स्नेक्स वेट . बेशक यह प्रभाव अस्थाई था उड़ान के अंत में सर्प को ज़मीन पर गिरना ही था ।
It इज really remarkable that an animal that at first glance ,possess a बॉडी plan that seems so ill -suited to gliding can only support its बॉडी weight with एरोद्य्नामिक forces ,but actually create a surplus ऑफ़ दीज़ फोर्सेस .

चतुर सुजान होता है स्वान (आपका लाडला केनाइन ,पालतू टौमी ..

मिथ बस्तिड: डॉग्स स्मार्टर देन केट्स(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २४ ,२०१० )।
स्वान बिल्लियों से ज्यादा चतुर ,विवेकशील और बुद्धिमान होता है .अब यह मिथ नहीं यथार्थ है .स्वान का मित्रवत व्यवहार उसके बौद्धिक उद्भव एवं विकास में सहज सहायक रहा है .केटी अकसर अकेले रहना पसंद करती है .उसे अपने अकेले -पन से प्यार रहा है .अकेलापन उसे रास आया है ।
बेशक बिल्ली उतना ध्यान अपनी ओर नहीं खींचती है ,सोशियेबिल भी कहाँ होती है बिल्ली .कैट परिवार अपनी ही दुनिया में रचा बसा रहता है यह तमाम अन्वेषण ऑक्सफोर्ड विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने हाल ही में संपन्न किये हैं .इसीलिए इनके(फेलाइंस,बिल्ली परिवार ) मस्तिष्क का आकार अपेक्षाकृत छोटा रह गया है ।
लाखों साल के विकास क्रम में आदमी का परखा हुआ दोस्तकेनाइन (स्वान यानी कुत्ता ) दिमाग के विकास के मामले में फेलाइन (बिल्ली -परिवार )से अग्रणी रहा है ।
६ करोड़ सालों के विकास क्रम में स्तन पाइ-यों के दिमागी विकास की पड़ताल के बाद उक्त नतीजे निकाले गएँ हैं .खासे ज्यादा बदलाव देखने को मिले हैं विकास क्रम में स्तन -पाइयों के बीच मेही ।
पशु की सामाजिकता शरीर के बाकी आकार के सापेक्ष मस्तिष्क के आकार में एक अन्तर -सम्बन्ध की पुष्टि हुई है .स्वान सामाजिकता के ऊपरले पायेदान पर बने रहें हैं .जबकि बिल्लियों का संसार जुदा है .अंतर्मुखता उनका स्वभाव है ।
इन्तेरेक्सन दिमागी विकास के लिए टोनिक है यही वजह है मनुष्य शेष सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है ।
मंकीज़ ओर एप्स से हम सामाजिकता ,सामाजिक लेन देन उठ बैठ में सदैव ही आगे रहें हैं .सभी स्तन -पाइयों का दिमागी विकास इसी के चलते यकसां नहीं हुआ है । विकास की दौड़ में बन्दर चिम्पान्जीज़ ,वन -मानुष ,ओरांगुटान हमसे काफी पीछे छूट गए हैं .
इन्फेक्ट ग्रुप्स ऑफ़ हाई -ली सोसल स्पीसीज हेव अंडर -गोन मच मोर रेपिड इन्क्रीजीज़ देन मोर सोलिटरी स्पीसीज (कैट्स).

प्लास्टिक बोतिल्स से बिल्डिंग -मेटीरियल ...

सीमेंट फ्रॉम प्लास्टिक बोटिल्स टू हेल्प बिल्ड ए ग्रीन वर्ल्ड (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
ग्रीन इमारतों के लिए ग्रीन -मेटीरियल बना लेने की दिशा में एक कदम रख दिया गया है .बेकार पड़ी सारे जहां का सिरदर्द रहीं प्लास्टिक बोतलों को मृदा (सोइल या मिट्टी)से संयुक्त करके रिसर्च्दानों ने एक ऐसा छिद्रिल (सरंध्र ,जिससे तरल और वायु रिस सके यानी पोरस )सीमेंट जैसा ही पदार्थ बनाने की पहल की है जो भविष्य का बिल्डिंग मेटीरियल हो सकता है .ग्रीन इमारतों की नींव रख सकता है ।
आम के आम गुठलियों के दाम .हमारे पारि -तंत्रों ,पर्यावरण के लिए लगातार सिर दर्द बने रहे प्लास्टिक कचरे से राहत मिलेगी सो अलग ।
इसे प्लास्टी -सोइल कहा जा रहा है .३०,००० अच्छे दर्जे की प्लास्टिक बोतलों से जिनका दोबारा स्तेमाल हो सकता हो एक मीटरी टन पौरस प्लास्टी -सोइल "मिल सकता है .जुदा किस्म के प्लास्टिक से भी इसे भविष्य में तैयार किया जा सकेगा बा -शर्ते प्लास्टिक दोबारा स्तेमाल योग्य हो ।
अलावा इसके एनर्जी इकोनोमिक्स भी इसके पक्ष में है .एक टन प्लास्टी -सोइल तैयार करने में एक टन परम्परा गत सीमेंट या एस्फाल्ट(डामर ,एक काला गाढा पदार्थ जिसे सड़कों की सतह बनाने में प्रयुक्त किया जाता है ,तार- कून ) तैयार करने में खर्च ऊर्जा से कम ऊर्जा खर्च होती है ।
अमरीका के टेम्पले यूनिवर्सिटी के नागर और पर्यावरण इंजीनीयरिंग विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य -रत नाजी खौरी ने इसका ट्रेड -मार्क प्राप्त किया है ।
प्लास्टी -सोइल का स्तेमाल साइड वाल्क्स ,बाईक और जोगिंग पाथ्स,ड्राइव वेज़ तथा पार्किंग बनाने में किया जा सकेगा .सड़कों पर बिखरे रिश्ते मोटर आयल को अपनी छिद्रिल बनावट के चलते प्लास्टी -सोइल अलग कर सकती है या नहीं इसकी आज़माइश की जा रहीं हैं ।
उम्मीद यह भी है इसकी छिद्रिल संरचना स्टोर्म वाटर रन -ऑफ्स से भी राहत दिलवाएगी .ज़मीन में रिस सकता है यह स्टोर्म -वाटर ,ज़मीन जिसकी ऊपरी सतह प्लास्टी -सोइल होगी .इस प्रकार यह पदार्थ कई तरह की पर्यावरण समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने की संभावना लिए हुए है .

कील -मुहासे ज्यादा होने का मतलब मजबूत हड्डियां ,कमतर झुर्रियां ........

मोर मोल्स मीन बेटर हेल्थ ,डि -लैड एजिंग (दीटाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
साइंसदानों के मुताबिक़ बेशक कील -मुहासों का ज्यादा होना अपने लुक्स को लेकर कईयों को आकुल -व्याकुल कर देता है लेकिन यह अस्थियों के पुष्ट (मजबूत )होने और झुर्रियों के कमतर रहने की एक अच्छी वजह बन जाता है ।
अस्थि -क्षय (बोन मॉस लोस )से बचाव करतीं हैं मजबूत अस्थियाँ (बोन्स या हड्डियां ),वरना एक उम्र के बाद कुछ लोगों की हड्डियां भुर्भुराकर उठ - ते-बैठ -ते ही टूटने लगतीं हैं ।ओस्टियो -पोरोसिस इन्हें जकड़ लेती है .
सौ से भी ज्यादा शरीर पर ब्यूटी -स्पोट्स हैं तो क्या हुआ .ऐसा होने पर कमतर झुर्रियां चेहरे पर आपको अपनी असली उम्र से सात साल छोटा दिखलाएंगी ।
किंग्स कोलिज लन्दन के रिसर्चदानों की एक टीम आशान्वित है उनके अन्वेषण एक ऐसी फेस क्रीम का रास्ता साफ़ कर देंगे जो झुर्रियों का चेहरे से नामो -निशाँ मिटादेगी.न फिर कोलाजन इंजेक्शनों की ज़रुरत पड़ेगी न प्लास्टिक सर्जरी की ।
रिसर्च -दानों की टोली ने १२०० जुड़वां (हम शक्ल नहीं ,नॉन -आई -देंटी -कल लड़कियों )फिमेल नॉन -आई -देंटी -कल ट्वीन्स का अध्ययन करने पर पता लगाया ,इनकी उम्र १८ -७९ साल तक थी ,जिनके शरीर पर १०० से भी ज्यादा मुहासे थे उनके अस्थि -क्षय (ओस्टियो -पोरोसिस ,लोस ऑफ़ बोन मॉस )की गिरिफ्त में आने की संभावना घटकर आधी रह गई थी बरक्स उन जुड़वां महिलाओं के जिनके शरीर पर २५ से भी कम मुहासे थे ।
पीपुल विद लोट्स ऑफ़ ऑफ़ मोल्स प्रो -डयूस व्हाईट ब्लड सेल्स विद अन -युज्युअली लॉन्ग टेलोमीयर्स,ए पार्ट ऑफ़ डी एन ए व्हिच एलाऊज़ इट टू रिप्लीकेट ,प्री -वेंटिंग दीतिरियोरेशन .यही है मुहासों की सोहबत में जवान दिखने का राज .

बच्चे -दानी के मुख कैंसर (कैंसर ऑफ़ दी सर्विक्स/सर्विकल कैंसर )की फौरी शिनाख्त के लिए ...

सिम्पिल कैंसर टेस्ट देट कैन शील्ड वोमेन .दी सर्विकल कैंसर टेस्ट ,कोस्टिंग जस्ट १५ पोंड्स ,डि -ली -वर्स ओवर -नाईट रिज़ल्ट्स एंड इज हाई -ली एक्यूरेट देन दी "पैप स्मीयर टेस्ट"व्हिच इज करेंट -ली यूज्ड तू स्पोट अर्ली साइन ऑफ़ दी डीज़ीज़ ,सेज एक्सपर्ट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २४ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
जहां परम्परा गत पैप्स स्मीयर टेस्ट एब्नोर्मल सेल्स का पता लगाता है वहीँ यह नवीनतर टेस्ट "दी कोबस टेस्ट "ह्यूमैन पैपीलोमा वायरस "का ही सीधे -सीधे पता लगा लेता है जो एब्नोर्मल सेल ग्रोथ की वजह बनता है .इसे दवा कम्पनी रोशे ने तैयार किया है .बेशक ब्रिटेन भर में साल भर में ३००० से भी कम मामले सर्विकल कैंसर के नए दर्ज़ होतें हैं लेकिन शिनाख्त देरी से होने से सर्वाइवल रेट कमतर बनी रहती है औरतों को होने वाले दूसरे कैंसरों की बनिस्पत ।
दी कोबस टेस्ट के नतीजे ओवर नाईट मिल जातें हैं .हज़ारों ब्रितानी और अमरीकी महिलाओं पर इसके कामयाब ट्रायल्स संपन्न हो चुके हैं .आइन्दा आने वाले एक साल भर में ही यह अस्पतालों में सुलभ हो सकेगा .एक दम से सटीक है यह परीक्षण जिसकी कीमत भी कुल १५ पोंड भर है ।
पांच साल में एक मर्तबा इस परीक्षण को दोहराना पड़ेगा जबकि स्मीयर टेस्ट हर तीन साल के बाद करवाना पड़ता है ।
अलावा इसके स्मीयर टेस्ट की नजर से एक तिहाई मामले बचके निकल जाते हैं .दी कोबस टेस्ट की नजर से एक मामला भी नहीं बच पाता है ।
४७ ,००० आरंभिक ट्रायल्स में जो३० साल से ऊपर उम्र की ब्रितानी और अमरीकी महिलाओं पर किये गए दस में से एक ऐसी महिला में सर्विकल कैंसर डायग्नोज़ हुआ जिन्हें स्मीयर टेस्ट ने आल क्लीयर दे दिया था .अति -परिष्कृत और सटीक है यह परीक्षण ।
विशेष :भारत के सन्दर्भ में कम उम्र में विवाह ,जल्दी -जल्दी कम अंतर से संतानों का पैदा होते चले जाना ,औरत और मर्दों का हाई -जीन(प्रजनन अंगों की साफ़ सफाई ) के मामले में ला -परवाह बने रहना गर्भाशय गर्दन कैंसर की एक बड़ी वजह बनता रहा है .

जख्मों की जल्दी भरपाई के लिए अल्ट्रा -साउंड डिवाइस .

साउंड टू स्पीड अप वुंड हीलिंग :(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २४ ,२०१० )।
अब लाइलाज पड़ते जख्मों यथा लेग अल्सर्स की भरपाई के लिए एक ऐसी" अल्ट्रा साउंड डिवाइस" का स्तेमाल किया जा सकेगा जो जख्म पर साउंड वेव्ज़ डालती है .पता चला है हाई -इंटेंसिटी अल्ट्रा -साउंड (तीव्र अल्ट्रा साउंड ,मोर वेव्स ओंन टू यूनिट एरिया ईच सेकिंड ) जख्म की सफाई करके डेब्रीज़(डेड पोर्शन ऑफ़ सेल्स ) को अलग कर देता है .नतीज़तन जख्म तेज़ी से भरने लगता है ।
अल्ट्रा -साउंड क्या है ?
२० किलो -हर्ट्ज़ से ऊपर आवृत्ति की ध्वनी तरंगे जो हमारे कर्ण (कान )की श्रव्य सीमा से ऊपर होतीं हैं (इन -आडिबिल बनी रहतीं हैं मानवीय श्रवण के लिए )अल्ट्रा -साउंड वेव्स (अति -स्वर -तरंगें )कहलाती हैं ।
२-२० मेगा -हर्ट्ज़ फ्रीक्युवेंसीज़ की तरंगे हमारे शरीर के भीतरी अंगों की पड़ताल (इमेज़िज़ )के लिए स्तेमाल में ली जा सकतीं हैं .यह लक्षित आंगिक संरचनाओं से टकरा कर लौट आतीं हैं आपस अन्वेषी यंत्र तक ।
एक्स -रेज़ की तुलना में इन्हें अपेक्षाकृत निरापद समझा जाता है .एक्स -रेज़ काज़िज़ आयो -नाइ -जेशन (फोरमेशन ऑफ़ आयंस ).रोग निदान के लिए एक ख़ास ऊर्जा स्तर पर इनका स्तेमाल किया जाता है ।
दी वाइब्रेटिंग इफेक्ट ऑफ़ अल्ट्रा -साउंड कैन आल्सो बी यूज्ड टू ब्रेक अप स्टोंस इन दी बॉडी (लीथो -ट्रिप -सी ) ,एंड इन दी ट्रीटमेंट ऑफ़ र्हयूमटिक(रयुमेतिक ) कंडीशंस एंड केटेरेक्ट(फेको -एमल्सीफिकेशन).अल्ट्रा -साउंड इन्स्त्रुएमेन्त्स आर यूज्ड इन देन्तिस्ट्री टू रिमूव केलक्युलस फ्रॉम दी सर्फेसिज़ ऑफ़ टीथ एंड टू रिमूव डेब्रीज़ फ्रॉम दी रूट केनाल ऑफ़ टीथ इन "रूट केनाल ट्रीटमेंट ".हाई -इंटेंसिटी फोकस्ड अल्ट्रा -साउंड आर यूज्ड टू देस्त्रॉय टिश्यु सच एज ट्यूमर्स .

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

तलाक शुदा माँ -बाप के बच्चों को ब्रेन -अटेक ज्यादा ...

'चिल्ड्रन ऑफ़ डि -वोर्स्ड पेरेंट्स प्रोन टू स्ट्रोक एज एडल्ट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २३ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
एक अध्ययन के मुताबिक़ बड़े होने पर वह बच्चे जो बचपन में अपने माँ -बाप को तलाक की वजह से अलग होते देखने की पीड़ा से खुद भी गुज़रतें हैं ब्रेन -अटेक के खतरे से दो गुना ज्यादा घिरे रहतें हैं .टोरोंटो विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने कनाडा में रहने वाले १३,००० लोगों के रिकार्ड को खंगालने के बाद पता लगाया है जिन बच्चों के माँ -बाप अलग हो गए थे उनमे से २%लोगों को उम्र के किसी न किसी मोड़ पर ब्रेन -अटेक (सेरिब्रल -वैस्क्युलर -एक्सीडेंट ) डायग्नोज़ हुआ था ।
पेरेंटल डायवोर्स और ब्रेन -अटेक का परस्पर एक दूसरे से जुड़ा होना तब भी देखने को मिला जब बा -कायदा रिस्क फेक्टर्स में स्मोकिंग ,एक्सरसाइज़ ,ओबेसिटी ,एल्कोहल के सेवन आदि को भी एडजस्ट किया गया ।
२००५ में एक कम्युनिटी हेल्थ सर्वे में १३,१३४ लोगों ने शिरकत की थी .आंकड़ों के गहन विश्लेसन के बाद ही उक्त निष्कर्ष निकाले गएँ हैं .कुल सर्वे में शरीक १०.४%लोगों ने माँ -बाप को रुसवा होते देखा था इनमे से १.९ फीसद को कभी न कभी ब्रेन -अटेक से दो -चार होना पड़ा .रोग -निदान और इलाज़ चला .एज रेस और जेंडर को एडजस्ट करने पर ओड्स ऑफ़ स्ट्रोक २.२ गुना बढ़ गये .ये नतीजे रिसर्चरों ने अमरीकी जरायु -विज्ञान संघ की वार्षिक विज्ञान बैठक में प्रस्तुत किये थे .

नेगिंग कैन मेक चिल्ड्रन फ़सी ईटर्स .

नेगिंग कैन मेक किड्स फ़सी ईटर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २३ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
हम भारतीयों की आदत रही है थाली में कुछ भी न छोड़ना (भले ही पेट भर जाए ) अन्न को देवता माना गया है .लेकिन यही नियम धर्म -निष्ठ होकर बच्चों पर लागू करना उन्हें फ़सी ईटर बना सकता है .ओवर ईटिंग की तरफ भी जा सकतें हैं बच्चे .खाने पीने के मामले में अपनी जिद और आदर्श बच्चों पर थोपने के नतीजे उन्हें हर चीज़ में तमाम तरह के खाद्यों से छिटकने की ओर ले जा सकतें हैं .हर चीज़ में मीन -मेघ निकालना उनकी आदत में शुमार हो सकता है .खाने पीने के मामले में टाईट कंट्रोल एक अध्ययन के मुताबिक़ किड्स को ओवर ईटिंग की ओर लेजा सकता है ।
हेल्दी -फ़ूड ,हेल्दी ईटिंग की आदत बच्चों में पैदा करें लेकिन जोर -ज़बरी नहीं प्यार से ,धीरे -धीरे,धैर्य-पूर्वक . बच्चों की शिक्षक बनिए एस एच ओ (कोतवाल,थाना -इंचार्ज )नहीं .

स्व -पोशी होता है "ट्यूमर "अपने पोषण के लिए स्वयं ब्लड वेसिल्स तैयार कर लेता है ..

ट्यूमर्स कैन मेक ओन ब्लड वेसिल्स (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २३ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
एक अभिनव अध्ययन से पता चला है "ट्यूमर्स "स्व -पोशी होतें हैं .अपनी ब्लड वेसिल्स खुद तैयार कर लेते हैं .होस्ट्स पर आश्रित नहीं रहतें हैं पोषण -पल्लवन -बढ़वार के लिए .अपने पोषण के लिए अपने होस्ट्स की ब्लड वेसिल्स पर गुज़ारा नहीं करतें हैं ।
अब जाकर इस तथ्य का खुलासा हुआ है , किसी समय ,समय की धारा को बदल कर रख देने वाली दवाएं ,क्यों कारगर सिद्ध नहीं हुईं .सोचा गया था नए किस्म की दवाएं कैंसर के खिलाफ संघर्ष में एक नै रन -नीति तैयार करेंगी लेकिन ऐसा कैंसर गांठ (मलिग्नेंसी ,मलिग्नेंत ट्यूमर )के खिलाफ कुछ भीतो नहीं हुआ .दवाएं उतना कारगर नहीं रहीं .

किशोरपन के अंधत्व से मुक्ति के लिए स्टेम सेल्स ?

एम्ब्रियोनिक स्टेम सेल्स टू ट्रीट ब्लाइंड -नेस?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २३ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
अंधत्व के समाधान के लिए एक ब्रितानी कम्पनी स्टेम सेल्स की आज़माइश करने जा रही है .यह इस प्रकार की सिर्फ दूसरी ही नैदानिक
आज़माइश होगी .इस क्लिनिकल ट्रायल के तहत मानवीय -भ्रूण -कोशिकाओं (ह्यूमेन एम्ब्रियोनिक स्टेम सेल्स )से रेटिनल कोशायें प्राप्त करने के बाद १२ बालिगों पर आजमाई जायेंगी .ये किशोरावस्था से ही "जुवेनाइल विज़न लोस "से ग्रस्त रहे आये हैं .ट्रायल का मकसद इसी प्रकार के बीनाई -ह्रास (विज़न लोस )के खिलाफ कलम -कोशिकाओं को परखना है .

कित्ते घंटे रोते -झींकतें हैं साल भर में ब्रितानी ?

इन ए ईयर ,ब्रिटंस स्पेंड ५३ आवर्स व्हाईनिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २३ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
सालभर में औसतन ५३ घंटा ब्रिटेन -वासी रोते -झींकते शिकायती मुद्रा बनाए रहतें हैं ।
ब्रितानी रोजाना ८मिनित४६ सेकिंड्स किसी न किसी बात पर रोष प्रकट करतें हैं .रिसर्चरों द्वारा संपन्न एक सर्वे के अनुसार औसतन एक अँगरेज़ दिन भर में चार बार शिकायती मुद्रा बनाता है और तकरीबन ९ मिनिट तक चिल्लाता है ,चीखता है .कुल मिलाकर शिकायतों का पुलिंदा साल भर में १३०० तक पहुँच जाता है .टी वी कार्यक्रमों ,जिंसों के दामों पर सप्ताह में कमसे कम एक बार ६५ %खीझते हैं लोग .मौसम का रोना खीझ का ६४ %ले जाता है .५०%खीझ लोगों की सरकार पर उतरती है .एक तिहाई लोगों के लिए सोमवार क्रंदन दिवस होता है (शिकायत दिवस भी इसे कह सकतें हैं ).४००० लोगों को इस सर्वे में शामिल किया गया था . अब आप खुद कयास लगाइए कितना रोते झींकतें हैं गोरे ?

सोमवार, 22 नवंबर 2010

तन्मय होकर प्रेम प्रदर्शित कर सकता है यह रोबोट .....

नाव ,ए रोबोट देट "फाल्स इन लव "विद ओनर (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर ,२२,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
लाखों लाख उन लोगों की तन्हाई को बांटने वाला अब एक ऐसा यंत्र -मानव साइंसदानों ने तैयार कर लिया है जो आपको तन्मय होकर प्यार कर सकता है .आपके गले में बाहें दाल सकता है .आपका आलिंगन कर सकता है .यह सारा कमाल उन ख़ास सेन्सर्स (संवेदकों ) का है जो मानवीय स्पर्श के प्रति संवेदन -शील है .पता चल जाता है कब यह बेहद खुश है और कब ग़मगीन बना हुआ है ।
बलोब -लाइक इस रोबोट का डिजाइन जर्मन माहिरों ने गढा है .हो सकता है यह एक दिन आपके बॉय फ्रेंड /गर्ल फ्रेंड को वेस्टि -जीयल ओर्गेंन की तरह सिद्ध करदे .

पर्यावरण -मित्र इमारतों की दरारों को भरने के लिए आनुवंशिक तौर पर संशोधित जीवाणु ....

"बसिलाफिला "नाम है उस जीवाणु का जो इमारतों में आई दरारों को देखते ही देखते भर देता है .(ग्ल्यू फ्रॉम बेक्टीरिया कैन "निट"क्रेक्स इन कोंक्रीट(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया नवम्बर २२ ,२०१० ,पृष्ठ १९ ). यह आनुवंशिक तौर पर संशोधित जीवाणु ब्रितानी साइंसदानों ने तैयार किया है यह दरार के स्थान पर तेज़ी से पहुंचकर एक गोंद जैसा पदार्थ छोड़ता है .वास्तव में यह केल्सियम कार्बोनेट और बेक्तीरियल ग्ल्यू का मिश्र है यह फिलामेंट -नुमा जीवाणु कोशिकाओं से संयुक्त होकर दराओं को पाट देता है ।
इसे न्यू -कासल विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने तैयार किया है .यह जीवाणु जिसे आनुवंशिक तौर पर संशोधित कियागया है तेज़ी से तैर कर इमारत में आई दरार के स्थान पर पहुँच जाता है ।
उन इमारतों के सालों साल रख रखाव में यह विधाई भूमिका निभाएगा जिन्हें पर्यावरण सम्मत बनाने के लिए ज्यादा पैसा खर्चना पड़ता है ।
हम जानतें हैं कोंक्रीट के निर्माण की प्रक्रिया में ५%कार्बन -डाय -आक -साइड उत्सर्जित होकर हमारी हवा में शरीक हो जाती है .ऐसे में इमारतों की उम्र में इजाफा करना पर्यावरण सम्मत कदम माना जाएगा .

लंग कैंसर से बचाव के लिए ताज़े फल और तरकारियाँ ....

एक नवीन अध्ययन के अनुसार तरह तरह के (खासकर गहरे रंग के )फल और तरकारियों का नियमित सेवन लंग कैंसर से २५ %तक बचाव कर सकता है ।
अकसर माहिर एक दिन में पांच मर्तबा(फाइव सर्विंग्स ,ए सर्विंग इज वन कप फुल) फल और तरकारियाँ खाने की सिफारिश करते आयें हैं .कैंसर से बचाव में इसे असरकारी माना गया है ।
नए अध्ययन में दस योरोपियन मुल्कों ने शिरकत की है .रिसर्चरों ने पता लगाया है रोजाना फल और तरकारियाँ खाते रहना लंग कैंसर के खतरे को २३%तक कम कर देता है .

रविवार, 21 नवंबर 2010

गर्भावस्था में मुक्तावली की देखभाल भी ज़रूरी है .

बेबी स्टेप्स टू ओरल केयर .बिजी विद अदर इश्यूज व्हाइल प्रग्नेंट ?ओवरलुक डेंटल हाइजीन एट योर ओन रिस्क ,सेज डॉ शांतनु जरदी (मुंबई मिरर ,नवम्बर २१ ,२०१० ,पृष्ठ २७ )।

आपका ही नहीं आपके नौनिहाल का स्वास्थ्य भी गर्भावस्था में दन्तावली की देख भाल आपके मुख स्वास्थ्य से जुड़ा है .इसलिए गर्भावस्था में खानपान तथा अन्य बातों के साथ ओरल हाइजीन पर पूरा ध्यान दीजिये ।

गर्भावस्था के दौरान दन्तावली और मसूड़ों की अनदेखी न सिर्फ आपके होने वाले बच्चे के दांतों और मसूड़ों को असर ग्रस्त बनाएगी जन्म के समय उसके वजन को भी प्रभावित कर सकती है .जेस्टेशन पीरियड (गर्भावस्था की अवधि भी असर ग्रस्त हो सकती है ,बच्चा समय से पहले भी पैदा हो सकता है ।

गर्भावस्था में जब तब महिलायें मिचली और वमन की शिकायत करती रहतीं हैं,मतली हो या उबकाई ,उलटी होने की अनुभूति दन्तावली में जीवाणुओं के बसेरे को उकसाती है .इसीलिए अकसर गर्भावस्था की पहली तिमाही (फस्ट ट्राई -मस्टर )मेंमहिलाए प्रेगनेंसी जिन्जी -वाइटिस की गिरिफ्त में चली आतीं हैं .आठवें महीने में इसकी उग्रता और भी बढ़ जाती है .इस दरमियान कुछ महिलाए मसूड़ों की सूजन

,पायरिया (मसूढ़ों से खून का रिसाव ),टेंडर -नेस इन दी गम टिस्यू का सामना भी करती हैं .मसूढ़ों के टेंडर ऊतक न सिर्फ दाहक और उत्तेजक पदार्थों (सर्टेन इर्रितेंट्स के प्रति )तीव्र प्रतिक्रया ही करने लगतेंहैं मसूढ़ों में गांठें भी पड़ सकती हैं .ये प्रेगनेंसी ट्यूमर्स कैंसर -कारी नहीं होतें हैं लेकिन यदि ये बने रहतें हैं तो किसी मसूढ़ों की बीमारी के माहिर से इन्हें निकलवा देना चाहिए .बेशक ये बिनाइन होतें हैं तथा इनमे किसी किस्म का दर्द भी नहीं होता है ।

प्रग्नेंसी -जिन्जिवाइतिस की वजह एक ओर मुख स्वास्थ्य की अनदेखी (पूअर ओरल हाइजीन )बनती है दूसरी तरफ हारमोनों का गर्भावस्था में बढा हुआ स्तर .इसीलिए मसूढ़े दाहक चीज़ों के साथ ज्यादा रिएक्ट करने लगतें हैं ।

व्हाट दी स्टडीज़ सेज ?

अमरीकी सर्जन जनरल की रिपोर्ट गर्भवती महिला के मुख स्वास्थ्य ओर उसके सम्पूरण स्वास्थ्य में एक अंतर -सम्बन्ध की पुष्टि करती है ।

पेरिओ -डोंतल दिसेअसेस (दीजीज़ ) से ग्रस्त गर्भवती महिला के समय से पूर्व प्रसव की (प्रीमीज़ पैदा करने की ),स्माल बेबीज़ पैदा करने की संभावना सात गुना ज्यादा हो जाती है .इसलिए प्री -नेटल केयर में पेरियो -डोंतल एवेल्युएशन को भी शामिल कीजिये तभी मातृत्व की तैयारी कीजिये ।

गर्भावस्था के दौरान दन्तावली का इलाज़ करवाने का सुरक्षित समय गर्भावस्था के १४ -२० हफ्ते की अवधि समझी जाती है .इस दरमियान ज़रूरी होने पर आप रूट केनाल थिरेपी भी करवा सकतीं हैं .इस से जच्चा बच्चा के स्वास्थ्य को कोई नुक्सान नहीं होने वाला है .एनेस्थीज़िया भी आपको बिना एड्रीनेलिन के दिया जा सकता है .अलबत्ता एक्स -रे करवाने से बचिए ।

कीपिंग योर टीथ क्लीन इस्पेशियाली नीयर दी गम लाइन विल हेल्प ड्रा -मेटिकाली रिड्यूस ऑर इविन प्रिवेंट जिन्जिवाइतिस ड्यूरिंग योर प्रेगनेंसी ।

इस दरमियान गर्भावस्था की अवधि में मिठाई की जगह चीज़ तथा ताज़े फलों का सेवन कीजिये .सैलाद खाइए गहरे रंगों की .

ओलम्पिक टावर २०१६ क्या है ?

व्हाट इज ओल्य्म्पिक टावर २०१६ ?
कोटों -डूबा आयलंड (पानी से घिरा एक द्वीप है )यहीं पर एक ऊर्ध्वाधर स्तंभ (वर्टिकल टावर )खड़ा किया जाएगा जिसे ओलम्पिक टावर २०१६ कहा जा रहा है .आपको बतलादें ओलम्पिक २०१६ रियो -दे -जनेर्रियो में ही संपन होने हैं .यह टावर हवाई एवं समुंद्री मार्ग से आने जाने वालों पर नजर भी रखेगा एक स्वागत पोस्ट का काम भी करेगा ।
दी प्रोजेक्ट इज फ्रॉम ज़ुरिकुए ,एंड युतिलाइज़िज़ सोलर एनर्जी ड्यूरिंग दी डे विद इट्स सोलर पावर पेनल्स टू पम्प सी वाटर .ज़ाहिर है यह क्लीन एनर्जी ग्रीन एनर्जी की एक मिसाल प्रस्तुत करेगा दुनिया भर को .

व्हाट इज ए मैप लेजेंड ?

व्हाट इज ए मैप लेजेंड ?
मैप लेजेंड एक प्रकार की निर्देशिका है जो किसी नक्शे में प्रयुक्त सभी सिम्बल्स (संकेत -चिन्हों -सूत्रों )का खुलासा करती है .किसी स्थान की पूरी स्थलाकृति (टोपो -ग्रेफ़ी ),हरियाली (ग्रीन कवर )आदि को कुछ आकृतियों और रंगों में दर्शाया जाता है मैप लेजेंड पर .मैप लेजेंड संक्षेप में कहें तो उस स्थान विशेष की एक डिक्सनरी है ,शब्द -कोष है .जो नक्शे को समझाती है खोल कर .इसमें सर्फेस फीचर्स ,टोपो -ग्रेफ़ी ,वेजिटेशन आदि के लिए मानक और विशिष्ठ (यूनीक सिम्बल्स )का स्तेमाल ही किया जाता है .

हू इज ए ट्वीट-हार्ट ?

हू इज ए ट्वीट -हार्ट ?
भाई -साहिब सीधा सा रूल है ,नियम है ट्वीटर पर बने रहो ,ट्वीट हार्ट बन जाओगे ।
बहर -सूरत ट्वीट -हार्ट एक ऐसी शख्शीयत को कहा जाता है जिसके बेशुमार चहेते उसे ट्वीटर पर फोलो करते हैं .इंतज़ार करते हैं उसकी त्वीट्स का ।
ट्वीट हार्ट आपके बिग -बी भी हो सकतें हैं शशि -थरूर भी .वह ब्लोगर रवीश कुमार भी हो सकतें हैं अरुंधती रॉय भी .कई नाम चीन हस्तियाँ अपना कच्चा चिठ्ठा ट्वीटर पर परोस रहीं हैं ,त्वीतार्स इसे हाथों हाथ ले रहें हैं ।
जिन्हें अपना जीवन साथी ट्वीटर की मार्फ़त मिल गया है वह भी एक तरह से ट्वीट- हार्ट कहातें हैं .सवाल नेट्वर्किंग का है .ट्वीटर पर बने रहिये ,दीखते रहिये ,अपनी प्रिज़ेंस बनाये रहिये .आप भी एक दिन ट्वीट -हार्ट बन सकतें हैं .सवाल बने रहने का है सार्थक तरीके से .

१० वाट के बल्ब को ही जीरो -वाट कह दिया जाता है .क्यों ?

व्हाई इज ए १० वाट बल्ब नॉन एज ए जीरो वाट बल्ब ?
बिजली के बल्ब को रोशन करने के लिए इनपुट तो चाहिए ही ,यह इनपुट पावर जीरो कैसे हो सकती है ?कुछ न कुछ वाटेज़ तो खर्च होगी ही .हाई -रेजिस्टेंस बल्ब होता है १० वाट का जो न्यूनतम करेंट लेता है .करेंट और वोल्टेज का प्रो -डक्ट(गुना )ही तो वाटेज़ है .जीरो वाटेज़ जीरो न होकर न्यूनतम वाटेज़ को ही कह दिया जाता है ।
वाट -आवर -मीटर जो अब तक चलन में थे उतने एक्यूरेट नहीं थे जो १० वाट को बत्लादें .इनकी रोटेटिंग डिस्क १० वाट की टोह ही नहीं ले पाती थी ।
अधुनातन मीटर एक दम से संवेदी और एक्यूरेट हैं इसलिए गेजेट्स की पावर भी ऑफ़ रखिये ,इंडी -केटर्स भी .इसलिए जीरो वाट एक मिस्नोमर है ,जीरो -केलोरी ड्रिंक और जीरो -साइज़ लोंडिया की तरह .(करीना कपूर से क्षमा याचना सहित ).

दोहरे स्तेमाल (ड्युअल यूज़ ) में काम आने वाली टेक्नोलोजी क्या है ?

व्हाट इज ड्युअल यूज़ टेक्नोलोजी ?
एक ऐसी प्रोद्योगिकी जिसका स्तेमाल नागर एवं सैन्य दोनों ही तरह की सेवाओं के लिए किया जा सके .दोहरे स्तेमाल में आने वाली प्रोद्योगिकी कहलाती है .राजनय और राजनीति में अकसर इस शब्दावली का स्तेमाल होता रहा है .एटमी भट्टी और रोकेट विद्या दोनों ही ड्युअल यूज़ टेक्नोलोजी के तहत आयेंगें .इनके स्तेमाल से चाहे रेडियो -आइसोटोप्स बना लो ,न्यूक्लीयर मेडिसन में इन्हें प्रयुक्त कर लो चाहे तो इनसे फिसाइल मेटीरियल बना लो .चाहे तो बिजली घर बना लो एटमी .रोकेट टेक्नोलोजी से चाहे तो चन्द्र नगरी बसालो ,मंगल को अपना उप -निवेश बना लो चाहे तो मिसाइल बनालो अंतर -महाद्वीपीय .जैव -प्रो -द्योगिकी से चाहे तो जैविक अस्त्र बना लो .चाहे रोग -विज्ञान की दिशा में आगे बढ़ जाओ .यही हैं ड्युअल यूज़ प्रोद्योगिकी के असर .

शनिवार, 20 नवंबर 2010

प्रसव देखा हो सकता है खगोल विज्ञान के माहिरों ने एक अंध कूप का ...

एस्ट्रोनो -मर्स मे हेव विट -नेस्ड दी बर्थ ऑफ़ ए ब्ल्रेक होल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर ,१८ ,२०१० ,पृष्ठ २२ )।
१९७९ में एक भारी सितारा जिसका द्रवय्मान सौर द्रव्य -मान का २० गुना रहा होगा एक भारी विस्फोट के साथ हमसे कोई ५० मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर फट गया था .गत तीस सालों से ही यह अपने आसपास छितराए गैसीय पदार्थ का भक्षण करता रहा है .हमारी पृथ्वी के द्रवय्मान के तुल्य यह आसपास का पदार्थ लील चुका है .ये सारे आसार इसका एक मेसिव स्टार होना ,आसपास से गैसीय पदार्थ हड़पना इसी बात का परिचायक हैं यह एक ब्लेक होल है .अन्तरिक्ष का एक ऐसा विकृत हिस्सा है जिसका अपार गुरुत्व आसपास का पदार्थ खींच रहा है .फिलवक्त यह ब्लेक होल हमारे सौर -द्रवय्मान से ५ गुना ज्यादाभारी है . है .कुछ सितारे (अपेक्षतया भारी सितारे अपने जीवन के अंतिम चरण में सारा ईंधन भुगताने के बाद ब्लेक होल में तब्दील हो जातें हैं .यह ब्लेक होल बन ने के लिए पूरी तरह सुपात्र प्रतीत होता है .जिस पदार्थ को यह निगल रहा है उस से एनर्जी बर्स्ट लगातार हो रहें हैं ।
यह अमरीकी धारावाहिक स्टार ट्रेक के प्लेनेट ईटर की याद ताज़ा कर रहा है .इसके अति -शक्ति -शाली गुरुत्व में दब खप कर पदार्थ अपना गुण -धर्म खो देता है .मैटर इज क्रश्ड बियोंड रिकग्नीशन .इलेक्त्रोंन ,प्रोटोन और न्युत्रोंन का दब खप कर अस्तित्व समाप्त हो जाता है .यह पहली मर्तबा है खगोल विज्ञान के माहिर एक अन्तरिक्ष की काल कोठरी (ब्लेक होल )का प्रसव देख रहें हैं एक भारी सितारे के बचे खुचे भाग से .इस प्रकार का माहौल और उसका अध्ययन और प्रेक्षण अन्तरिक्ष में ही हो सकता है .प्रयोग शाला में यह पर्यावरण नहीं गढ़ा जा सकता .हो सकता है यह एक "बाई -नरि स्टारसिस्टम " हो .आइन्दा आने वाले खगोल विद इसके अवशेषों का अधययन करेंगे .

महा -मारी बन रहा है "टेक्स्ट नेक ".

टेक्स्ट नेक :गेजेट्स ट्रिगर न्यू -टेक पैन .यंग्स -टार्स हू कोंस -टेंट -ली लुक डाउन एटहेंड हेल्डडिवाई -सीज गेट रेपितिटिव स्ट्रेस इंजरी (दीटाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर २० ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
प्रोद्योगिकी आपके जीवनको बहुविध
सुगम बना रही है लेकिन यह नेक पैन की भी वजह बन रही है . जैसे जैसे मोबाइल फोन्स और हेंड हेल्ड म्युज़िक प्लेयर्स का चलन बढ़ता जा रहा है वैसे ही वैसे "टेक्स्ट -नेक "के मामले भी बढ़ रहें हैं .यह ऐसी स्ट्रेस इंजरी है जो निरंतर हो रही है .हो भी क्यों नहीं युवा भीड़ मोबाइल्स पर ही झुकी रहती है .सड़क हो या घर ,बस हो या दफ्तर ।
बस रीढ़ की पेशियाँ और अस्थियाँ तमाम अनुकूलित हो जाती हैं इसी मुद्रा (पोस्चर )के अनुरूप.नतीजा होता है फंक्शनल चेंज़िज़ ।
समाचार पत्र न्यूज़ी -लैंड हेराल्ड में चेरो -प्रेक -टार्स असोशियेशन स्पोक्स्मेन हय्देंन तोमस ऐसे ही उदगार व्यक्त कर चुकें हैं .चाय -रो -प्रेक -टार्स :चाय -रो -प्रेक -टर इज ए पर्सन हूज जॉब इन्वोल्व्ज़ ट्रीट-इंग सम डीज़ीज़ एंड फिजिकल प्रोब्लम्स बाई प्रेसिंग एंड मूविंग दी बोन्स इन ए पर्सन्स स्पाइन ऑर जोइंट्स .रीढ़ की हड्डी और जोड़ों के ये माहिर बस इन्हीं को मैनीप्युलेट करते हैं कुछ ख़ास बीमारियों के प्रबंधन के लिए ।
बस स्नायु -अस्थि बंध ,
हमारे शरीर में अस्थियों को जोड़ने वाले ऊतकों और मांसपेशियों को हड्डियों से जोड़ने वाली नसों,मस्क्युलेचार तथा बोनी सेग्मेंट्स को टेका लगाने वाले कर्व्ज़ में बदलाव आ जाते हैं .बस यही से नसों ,पेशियों की ऐंठन ,मसल स्पाज्म और दर्द की शुरुआत हो जाती है ।
अलबत्ता इन गेजेट्स से शरीरऔर सेहत को होने वाली नुकसानी से थोड़ा बचाया ज़रूर जा सकता है .गेजेट्स तो हमारे साथ रहेंगी ।
बस अपनी मुद्रा पर ध्यान दीजिये -टेक्स्टिंग के वक्त .हेंड हेल्ड डिवाइस को हेन्दिल करते वक्त भी पोस्चर्स का ख़याल रखे .टेक्स्टिंग के वक्त मोबाइल को चेहरे के सामने रख सकतें हैं ,झुकने से बचिए .टेक्स्टिंग तथा ई -मेल्स बांचते वक्त भी गर्दन को झुकाए रहने से बचिए .नियमित ब्रेक लीजिये छोटे छोटे ।
सवाल दीर्घावधि में अपनी रीढ़ को बचाए रखने से जुड़ा है .नेक और मसल्स से ताल्लुक रखता है .थोड़ा सा बदलाव लाइए मोबाइल्स ,ई -रीडर्स ,एम् पी ३ प्लेयर्स के स्तेमाल में .बड़ी मुसीबत से आइन्दा के लिए बचिए .

आपकी सुनने की क्षमता (श्रवण -शक्ति )को कम कर सकती है "पेसिव -स्मोकिंग ".

क्या आप स्मोकर्स की सोहबत में रहतें हैं ?पेसिव स्मोकर्स हैं ?यदि हाँ तब पेसिव स्मोकिंग की कीमत आपकी श्रवण क्षमता को चुकानी पड़ सकती है ।
यह तो पहले से ही पुष्ट हो चुका है जो लोग धूम्रपान करतें हैं उनकी श्रवण शक्ति असर ग्रस्त होती है .दे मे डेमेज देयर हीयरिंग ।
अब तकरीबन ३,००० अमरीकी बालिगों पर संपन्न एक अध्ययन से पुष्ट हुआ है ,यही बात पेसिव स्मोकिंग पर भी लागू होती है ।
माहिरों के अनुसार तम्बाकू पीना किसी भी विध (हुक्का या बीडी सिगरेट्स ) कान की स्माल वेसिल्स में ब्लड फ्लो को विच्छिन्न कर सकता है .विघ्न पैदा कर सकता है रक्त प्रवाह में .ऐसे में ऑक्सीजन की आपूर्ति कर्ण को नहीं हो पाती नतीज़नकान में टोक्सिक वेस्ट (विषाक्त -मल,मैला)ज़माहोकर कान को नुकसानी पहुंचा सकता है ।
शोर शराबे और बुढापे की सामान्य प्रक्रिया से होने वाली नुकसानी इस से फर्क होती है ।
अध्ययन में मियामी और फ्लोरिडा अंतर -राष्ट्रीय विश्व -विद्यालय के ३,३०७ नॉन -स्मोकर वोलन -टी -यर्स(गैर -धूम्र्पानी स्वयं -सेवियों ) के श्रवण नतीजों (हीयरिंग टेस्ट्स रिज़ल्ट्स ) का जायज़ा लिया गया .निम्न ,मध्य और उच्च आवृत्तियों के शोर (दी टेस्ट्स मेज़र्द रेंज ऑफ़ हीयरिंग ओवर लो ,मिड एंड हाई -नोइज़ ,फ्रीक्युवेंसीज़ ) का श्रवण -सम्बन्धी मापन किया गया ।
पेसिव स्मोक एक्सपोज़र का जायजा लेने के लिए स्वयं -सेवियों के रक्त में निकोटिन के एक उप -उत्पाद "कोतीनिन"का पता लगाया गया .यह तभी बनता है जब हमारा शरीर तंत्र सिगरेट के धुयें के संपर्क में आता है ।
इस से इल्म हुआ जो लोग सेकिंड हेंड स्मोक झेलतें हैं उनकी श्रवण शक्ति ह्रास की संभावना औरों से ज्यादा बनी रहती है .खासकर शोर शराबे वाली पृष्ठ भूमि में इन्हें कुछ भी सुन ने समझने में खासी दिक्कत पेश आती है ।
बी बी सी से प्रसारित एक खबर से भी इस बात की पुष्टि होती है ।
पेसिव स्मोकिंग इन्क्रीज्द देयर रिस्क ऑफ़ हीयरिंग लोस एक्रोस आल साउंड फ्रीक्युवेंसीज़ बाई अबाउट ए थर्ड .

कोलेस्ट्रोल को विनियमित करें वाली जादू दवा ...

न्यू -ड्रग ट्रिगर्स स्टीप ड्रॉप इन बेड कोलेस्ट्रोल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुबई ,नवम्बर २० ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
ब्रिघम एंड वोमेन्स हॉस्पिटल ,बोस्टन के चिकित्सा माहिर इन दिनों एक दम से चमत्कृत हैं ,एक नै प्रायोगिक दवा के जादुई असर से जिसने हाई -डेंसिटी -लिपो -प्रोटीन कोलेस्ट्रोल का स्तर सब्जेक्ट्स के रक्त में एक दम से बढा दिया तथा साथ ही बेड कोलेस्ट्रोल (लो डेंसिटी लिपो -प्रोटीन कोलेस्ट्रोल ) को यक दम से घटा दिया .इस से दिल केदौरे और सेरिब्रल -वैस्क्युलर एक्सिदेंट्स (ब्रेन अटेक) के बचाव की नै रन -नीति तय की जा सकेगी ।
डॉ .क्रिस्टोफर काननों ने दवा फर्म "मेर्च्क एंड कम्पनी "की इस दवा "अनासत्रपिब "पर चलने वाले अध्ययनों का नेत्रित्व किया है .आप नतीजों से बेहद आशान्वित और उत्तेजित हैं .

वैज्ञानिकों की पकड़ में आया एंटी -मैटर ...

साइंटिस्ट ट्रेप एंटी -मैटर .इट वाज़ वंस यूस्ड टू प्रोपेल केप्टन क्रिक एक्रोस दी स्टार्स .नाव बोफ्फिंस से दे हेव केप्चार्ड ए सेम्पिल ऑफ़ रीयल -लाइफ एंटी मैटर फॉर दी फस्ट टाइम ,व्हाइल इट इज अन -लाइक -ली टू लीड टू वार्प एन्जिंस,इट कुड शेड लाईट ऑन दी नेचर एंड ओरिजिंस ऑफ़ दी यूनिवर्स .(एससीआई -टीईसीएच /मुंबई मिरर ,नवम्बर १९ ,२०१० ,पृष्ठ २९ )।
अमरीकी धारावाहिक स्टार ट्रेक में "वार्प ड्राइव "का ज़िक्र है जिसका मतलब है अन्तरिक्ष यानों को प्रकाश के अपने निर्वातीय वेग से तेज़ दौडाया जा सकता है .और वह भी एंटी -मैटर के हाथों ।
योरोपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर के साइंसदानों ने एंटी -एटम्स (सर्न,जिनेवा के निकट महा -मशीन ,लार्ज -हैद्रान कोलाईदार,योरोपीय न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर सर्न का विस्तार है ) चंद लम्हों के लिए लेब में बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है ।
एटम और एंटी -एटम का मिलन ही वार्प ड्राइव को स्टार ट्रेक में पावर करता है .प्रयोग शाला की परिश्थितियों में एंटी -एटम्स अल्पकाल तक ही हमारे प्रेक्षण का हिस्सा बन सकतें हैं ।
यूनिवर्स में जहां तक हमारी जानकारी है इनकी तंगी है .दुर्लभ है इन्हें पकड़ पाना .विरल है इनकी मौजूदगी .अन्तरिक्ष में इनका कोई सुराग नहीं मिला है ।
अलबत्ता पार्टिकिल एक्सलारेटर (कणों को वेगवान बनाने वाले कण त्वरकों )में इन्हें अल्पकाल के लिए ही सही पैदा किया जा सकता है .लेकिन हमारे प्रेक्षण अध्ययन के दायरे में आने से पहले ही यह ओझल हो जातें हैं .क्योंकि परम्परा गत बोतल में इन्हें नहीं रखा जा सकता .नियमित एटम्स के संपर्क में आते ही ये पारस्परिक तौर पर नष्ट हो जाते हैं .अलबत्ता अल्पकाल के लिए ही सही इन्हें बनाए रखने की तरकीब ढूंढ ली गई है ।
आखिर एंटी मैटर लेब में पैदा ही क्यों किया जाए ?
आखिर यह एक गुत्थी चली आई है हमारे चारों तरफ पदार्थ ही पदार्थ का बसेरा है ,प्रति -पदार्थ यदि है भी तो अल्पांश में ही है .ऐसा क्यों है ?इसी गुत्थी को सुलझाने के लिए लेब में एंटी -मैटर चाहिए ।
सरलतम परमाणु हमारे गिर्द हाइड्रोजन परमाणु है .विश्व में इसकी बहुतायत है .सभी सितारों की एटमी भट्टी का यही ईंधन है .हमारे शरीर में यह पाचन की क्रिया में भागेदारी करता है ,गैसोलीन के दहन में इसका ही हाथ होता है ।
एक प्रोटोन और एक इलेक्त्रोंन का गठबंधन है हाइड्रोजन एटम ।
सिद्धांत -तय एंटी -हाई -द्रोजन एक एंटी -प्रोटोन (प्रोटोन विद ए पोजिटिव चार्ज ) और एक पोजिटिव इलेक्त्रोंन (पोज़ित्रोंन ) का गठबंधन है .हरेक कण के लिए सृष्टि में एक प्रति -कण भी है .लेकिन प्रति -पदार्थ की प्राप्ति आसान नहीं है .इक्का दुक्का बना भी लो लेकिन बड़ी तादाद में एंटी -प्रोटोन प्राप्त करना मुश्किल काम है .इसके लिए पहले रेग्युलर प्रोटानों को वेगवान बनाना पड़ेगा पार्टिकिल एक्स्लारेतर्स में फिर इन्हें मेटल टारगेट्स पर दागना पड़ेगा .इन्हीं टक्करों के फलस्वरूप यदा कदा "प्रोटोन -एंटी -प्रोटोन युग्म ,प्रोटोन -एंटी -प्रोटोन पे -यर"पैदा होतें हैं ।
एंटी -प्रोटानों को एक अलग पुंज के रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हें अदबदाकर मंदा (रिटार्ड )करना पड़ता है .सर्न -योरोपियन ओर्गेनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लीयर रिसर्च ,जिनेवा के निकट जिसके तत्वावधान में लार्ज हेड्रोंन -कोलाईदर काम कर रहा है यही काम करता है .हेयर एक्सलरेशन इज दी थीम ।
लेकिन एंटी -प्रोटोन बाने के लिए सर्न को समर्साल्ट करना पड़ता है पलटी खानी पडती है एक्सलरेशन नहीं ,दी -सलेरेशन देना पड़ता है एंटी -प्रोटानों को .अरबों इलेक्त्रोंन वोल्ट ऊर्जा से चंद इलेकत्रोंन वोल्ट तक ले आना पड़ता है वेगवान एंटी -प्रोटोनों को .दूसरे शब्दों में इसे यूं समझें कणों का तापमान १० ट्रिलियन डिग्री से घटाकर ०.५ केल्विन (परम -शून्य से आधा डिग्री ऊपर )लाया जा रहा है .कणों का तापमान उनकी औसत ऊर्जा का द्योतक ही तो होता है ।
अगला कदम इन एंटी -प्रोटानों का गठबंधन पोज़ित्रानों के साथ करवाना है .ज़ाहिर है ऐसा करने के लिए इन्हें न्यूनतम संभव तापमानों तक लाना पड़ता है .ताकि ये एक दूसरे से आबद्ध हो सकें ।
हाव टू ट्रेप एंटी -मैटर ?
एंटी -एटम्स को एक स्थान पर बनाए रखना बहुत दुष्कर सिद्ध होता है क्योंकि इन्हें परम्परागत पात्रों में नहीं रखा जा सकता .रेग्युलर एटम्स के साथ संपर्क होते ही दोनों विस्फोट के साथ नष्ट हो जातें हैं .इन्हें स्पेस में लोकेलाइज़ करने के लिए शक्ति -शाली चुम्बकीय क्षेत्रों का स्तेमाल किया जाता है ।
इस एवज़ विशेष चुम्बकों का स्तेमाल किया जाता है .कणों को ठंडा करने के लिए बेहद सुधरी हुई प्रणाली अपनाई जाती है .और बेहद के संवेदी सेन्सर्स का स्तेमाल किया जाता है जो आखिरकार एंटी -एटम्स का विनष्ट होना तब दर्ज़ करतें हैं जब यह अपने अल्पकालिक ट्रेप से ओझल होने लगतें हैं ।
सर्न का एल्फा ग्रुप इस पर काम कर रहा है .इसने ३८ एंटी -हाई-द्रोजन एटमों को स्पेस में लोकेलाइज़ करके दिखलाया है .दूसरे चरण में इन्हें बड़ी तादाद में जुटाया जाएगा .देखना यह भी बाकी है क्या इनकी आंतरिक ऊर्जा का स्तर रेग्युलर हाई -द्रोजन एटम्स जैसा ही होता है .यदि दोनों जुदा है तब एक नै भौतिकी कार्य -रत होगी .

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

गरीब दूसरे की भावना को बेहतर समझ लेते हैं .

गरीब दूसरे की भावना को बेहतर समझ लेतें हैं .समानु -भूति ,दूसरे की भावना को समझ कर उसके दुःख को अनुभव करना अमीरों के बसकी बात नहीं .उच्च सामाजिक पद -प्रतिष्ठा वाले लोग दूसरे की भावना को बूझ ही नहीं पाते .पैसे से खुशियाँ भी नहीं खरीद सकते .दूसरों की भावना सुख दुःख को समझने की इनमे कूवत ही नहीं होती ।इन्हें नहीं मालूम क्या होती है 'तदानु -भूति ',एमपेथी .

केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने बहु -विध प्रयोगों से पता लगाया है समाज के ऊपरले पायेदान पर खड़े लोग दूसरों के ज़ज्बातों को समझने का माद्दा ही नहीं रखतें हैं .जबकि सामाजिक हाशिये पर खड़े लोग बा -खूबी दूसरे की संवेदनाओं और आवेगों को समझ लेतें हैं .जीवन निर्वाह के लिए भी ऐसा करना उनकी मजबूरी हो जाती है वरना उनकी तो ज़िन्दगी ही ठहर जाये .गुज़ारे के लाले पड़ जाएँ .अध्ययन के अगुवा मिचेल क्रॉस इसकी तस्दीक करतें हैं .सही बतलाते है इसे ।

सन्दर्भ -सामिग्री :-'पूअर आर बेटर एट एमपेथी देन दी रिच (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १८ ,२०१० ).

ब्लड प्रेशर से मुक्ति के लिए नई तरकीब .

ज़ेप नर्व्ज़ फॉर जस्ट वन आवर ,बी फ्री ऑफ़ हाई बी पी फॉर -एवर (दी टाइम ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १९ ,२०१० )।
परमानेंट फिक्स :दी सिम्पली -सिटी केथीटर सिस्टम डि -ली -वर्स लो पावर रेडियो वेव्ज़ टू डि -एक्टिवेट दी नर्व्ज़ नीयर दी किड -नीज देट फ्यूल हाई ब्लड प्रेशर ।
यकीन मानिए ऐसा भी होता है .एक घंटे का मामूली शल्य कर्म ब्लड प्रेशर से हमेशा हमेशा के लिए भी छुटकारा दिलवा सकता है .लांसेट में प्रकाशित एक अंतर -राष्ट्रीय अध्ययन ने इस ओपरेशन को पूरी तरह सुरक्षित और असरदार माना है ।
इस इलाज़ के तहत एक केथीटर सिस्टम द्वारा कम शक्ति की रेडिओ -तरंगें किडनी के आसपास की नर्व्ज़ को दी -एक्टिवेट कर देतीं हैं (निष्क्रिय बना देतीं हैं ).हाई -ब्लड प्रेशर को यही नसें हवा देतीं हैं .बस एंजियोप्लास्टी प्रोसीज़र की तरह ही ग्रोइन से एक पतली सी ट्यूब(केथीटर की तरह ही ) रक्त वाहिकाओं में पहुंचाई जाती है.यही किडनी के आसपास की नसों कोकम शक्ति की रेडियो -तरंगे डालकर ठप्प कर देती है ,निष्क्रिय बना देती है ।
इस अधययन में शरीक १०० लोगों को इलाज़ मुहैया करवाया गया .इनके रक्त चाप का ऊपरी पाठ औसतन (सिस्टोलिक रीडिंग ,दी कोंत्रेक्शन ऑफ़ दी हार्ट ड्यूरिंग व्हिच ब्लड इज पम्प्द इनटू दी आर्ट -रीज ) ३३ पॉइंट्स कम हो गया .ऐसे में यदि इलाज़ आंशिक तौर भी कामयाब रहता है तब भी हाई -पर -टेंशन से ग्रस्त लोगों के लिए इस से दिल के दौरे ,सेरिब्रल -वैस्क्युलर एक्सीडेंट (ब्रेन -अटेक) और आखिरकार इनसे संभावित मृत्यु का ख़तरा तो कमतर हो ही जाएगा .ड्रग्स रक्त चाप को नीचे लाने में उतना कारगर नहीं रहीं हैं यह कहना मानना समझना है "ब्रिघम एंड वोमेन्स हॉस्पिटल "में हृद -रोगों के माहिर (उप -मुखिया अमरीकी ह्रदय संघ सभा ,शिकागो )का ।
उन मरीजों के लिए यह इलाज़ बेहद उपयोगी रहेगा जो हाई -ब्लड प्रेशर के संग -साथ मधुमेह से भी पीड़ित हैं .बोनस के रू में यह इलाज़ ब्लड सुगर का भी विनियमन करता है .बेहतर ढंग से प्रबंधन और नियंत्रण होता है खून में घुली शक्कर का ।
एक अनुमान के अनुसार सात करोड़ पचास लाख (७५ मिलियन )अमरीकी तथा दुनिया भर में एक अरब लोग जीवन शैली रोग हाई -ब्लड प्रेशर की जद में हैं इनका ब्लड प्रेशर १४०/९० या और भी ज्यादा बना रहता है .ब्लड प्रेशर का आदर्श मान अब ११० /७० माना जाता है .तीन से लेकर चार दवाओं का सहारा लेना पड़ता है तब जाकर इनमे से एक तिहाई का ही ब्लड प्रेशर प्रभावी तौर पर कम हो पाता है .इस नज़रिए से सोचेंगे तो संदर्भित इलाज़ जादुई नजर आयेगा .

सिर्फ एक पिल आपके जीवन की गुणवत्ता (लाइफ स्पेन )को १० साल और बढा सकती है

हारवर्ड विश्वविद्यालय के रोग -विज्ञान विभाग में असोशियेट प्रो -फेसर , डेविड सिंक्लेयर एक ऐसी जी- वन इकाई(क्वांटम ऑफ़ लाइफ ) जीन या जीवन खण्ड को एक्टिवेट करने में मशगूल हैं जो बकौल उनके बुढ़ाने की प्रक्रिया को विनियमित करके हमारे जीवन की गुणवत्ता को ५-१० साल आगे बढा सकती है .इसका मतलब यह नहीं है कि उम्र ठहर जायेगी हम बूढ़े ही नहीं होंगे ,उम्र बढ़ेगी लेकिन हम बुढ़ाने कि सामान्य प्रक्रिया के साथ -साथ अशक्त नहीं हो पायेंगे .ता -उम्र ,मरते दम तक हम जीवन क्षमता से भरे रहेंगे ।
सिर्तुइन जींस हैं ये .जिन पर आप काम कर रहें हैं .सिर्तुइंस को एक्टिवेट करने से याददाश्त में इजाफा होगा ,काम करते रहने कि क्षमता बढ़ेगी ,हाई -फैट डाइट से होने वाली नुकसानी कम होगी बुढ़ाने कि रफ्तार कम हो जायेगी ।
यदि एनीमल स्टडीज़ को मनुष्यों में भी आज़माइश के बाद अनुकूल पाया गया तब हमारे हाथ में जोड़ों के दर्द "आर्थ -राय -टिस"के समाधान के लिए भी पिल होगी जो एल्जाई -मर्स (न्यूरो -दिजेंरेतिव डीज़ीज़ ऑफ़ ओल्ड एज )से भी हमारी हिफाज़त करेगी ,सफ़ेद मोतिया बिन्द को भी रोकेगी ,कार्डिएक अरेस्ट (हृद गति रुक जाने )और हृद रोगों के बढ़ने को भी थाम लेगी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-सून ,ए पिल मे एक्सटेंड लाइफ बाई १० ईयर्स (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १९ ,२०१० ,पृष्ठ २१ ).

अवसाद की वजह बन सकता है बत्ती जलाकर सोना ...

स्लीपिंग विद लाइट्स ऑन काज़िज़ डिप्रेसन (डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,२०१० ,पृष्ठ ,२१ )।
एक अध्ययन के अनुसार यदि आप लाइट्स ऑन किये ही नींद की गोद में चले जाते हैं ,रोशन कमरों में ही सो जातें है तो सुबह आपकी उनींदी और बेचैनी से भरी हुई हो सकती है -आप चिडचिडे और अवसाद ग्रस्त भी हो सकतें हैं .नाईट लेम्प जलाकर सोना ,टी वी की पावर ऑन छोड़ देना आपके मानसिक स्वास्थ्य को असर ग्रस्त बना सकता है ।
दी ग्लो एमितिड बाई ए टी वी ऑर दी रिअस्योरिंग प्रिज़ेंस ऑफ़ ए नाईट लेम्प कूद एक्चुअली इम्पेक्ट ऑन मेंटल हेल्थ ।
यही वजह है सोने के कमरों में लोग मोटे पर्दे लगाते हैं ताकि बाहर की रौशनी भी सोते वक्त किसी भी पहर आपको डिस्टर्ब न कर सके .

होली ग्रेल ऑफ़ फिजिक्स .एंटी -मैटर क्रिएतिद.

कहाँ गया सारा प्रति पदार्थ ?

पहले प्रति पदार्थ की अवधारणा को समझना होगा .जब यह सृष्टि अबसे कोई १३.६ अरब बरस पहले एक आदिम अणु में जो अपने सूक्ष्म (शून्य आयतन वत )कलेवरमें सृष्टि का तमाम गोचर ,अगोचर पदार्थ -ऊर्जा एक अति -उत्तप्त सूप के रूप में छिपाए हुआ था बनी तब पदार्थ के साथ -साथ उतना ही प्रति -पदार्थ भी पैदा हो गया था .पदार्थ से यह सृष्टि बनी लेकिन प्रति -पदार्थ आज भी हमारे लिए अज्ञेय अबूझ अदृशय बना हुआ है .यही कहानी डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की है ।

समझा जाता है मैटर (पदार्थ )ग्रेविटी के लिए और प्रति - पदार्थ एंटी -ग्रेविटी के लिए उत्तर दाई है .तभी तो यह सृष्टि अपने जन्म के बाद से ही उत्तरोत्तर फैलती विस्तारित होती चली जा रही है ।

योरपीय ओर्गेनाइज़ेसन ऑफ़ न्यूक्लीयर फिजिक्स के तत्वावधान में भौतिकी के माहिरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने पहली मर्तबा एंटी -हाइड्रोजन का एक परमाणु (इसे एंटी -हाइड्रोजन परमाणु कहना ज्यादा समीचीन रहेगा )अल्प काल के लिए ही सही रच डाला है .संभावना बनी है प्रति -पदार्थ हमारे प्रेक्षण जगत में आ सकता है .हम प्रति -पदार्थ का अध्ययन कर सकतें हैं ।

आपको बतला -दें यह वही योरोपीय नाभिकीय शोध संघ है जो महा -मशीन लार्ज -हेद्रोंन कोलाइदर से जिनेवा की बाहरी सीमा के पास से सम्बद्ध है ।

तब क्या अब पदार्थ और प्रति -पदार्थ का तुलनात्मक अध्ययन हो सकता है ?आखिरकार एक नहीं दो नहीं ३८ एंटी -हाइड्रोजन एटम संजोये गए है भले एक सेकिंड के दसवें भाग तक ही सही ।

विज्ञान पत्रिकानेचर (साप्ताहिक )के एक आलेख में "सर्न"योरोपियन न्यूक्लीयर रिसर्च सेंटर के साइंसदानों ने लिखा है हमने वेक्यूम में (निर्वात में )न सिर्फ एंटी -हाइड्रोजन एटम्सरचे हैं इन्हें बनाए भी रखा गया है सेकिंड के दसवें भाग तक .सवाल यही है यदि सृष्टि के आरम्भ में पदार्थ के साथ -साथ प्रति -पदार्थ भी पैदा हो गया था तो वह गया कहाँ ?क्यों हमारे दृश्यक्षेत्र और प्रेक्षणों से बाहर चला आया है ।

आपको बतला दें :फोर्सिज़ कम इन पे-यरस यानी बलों के कुदरती जोड़े होतें हैं (बल युग्म ).अकेले बल का कोई अस्तित्व नहीं है .वह परिणामी बल होता है ,रिज़ल्तेंत फ़ोर्स होता है एक सिस्टम पर लगने वाले तमाम बल युग्मो का .यही न्यूटन के पहले और तीसरे नियम का निचोड़ है .पहला नियम बल की नहीं ,बल की अनुपस्थिति (एब्सेंस ऑफ़ फ़ोर्स की बात करता है .इन दी एब्सेंस ऑफ़ ए फ़ोर्स ए बॉडी आइदर मूव्स इन ए स्ट्रेट लाइन विद युनिफोर्म मोशन ऑर स्टे अटरेस्ट ।यही न्यूटन का प्रथम नियम है .

प्रत्येक कण के लिए सृष्टि में एक प्रति कण मौजूद है .सीनों -निम् है तो एन्तिनिम भी है .इलेक्ट्रोनहै तो पोजिटिव इलेक्ट्रोन (पोजीत्रोंन ,इलेक्ट्रोन विद ए पोजिटिव चार्ज )भी है .प्रोटोन के लिए एंटी -प्रोटोन है ।न्युत्रोंन के लिए एंटी -न्युत्रोंन .ओबामा है तो मिशेल भी है .

एक इलेक्ट्रोन जब एक प्रोटोन की परिक्रमा करने लगता है तब एक हाइड्रोजन एटम अस्तित्व में आता है .इसी प्रकार जब एक पोज़ित्रोंन एंटी -प्रोटोन की परिक्रमा करने लगेगा तब एक एंटी -हाइड्रोजन एटम अस्तित्व में आ जाएगा .दोनों का प्रेम मिलन घातक होगा .दोनों एक दूसरे को नष्ट कर देंगे इसलिए नदी के दो किनारों से बने रहतें हैं .सृष्टि है तो प्रति -सृष्टि भी है .कहाँ ?इसका कोई निश्चय नहीं .परमाणुओं के बन ने पर ऊर्जा मुक्त होती है क्योंकि इनके के घटकों को अनंत दूरी से (जहां से यह एक दूसरे पर आकर्षण बल नहीं डाल पाते) उठाकर इनके विद्युत् आकर्षण क्षेत्र में लाना पड़ता है .बस एक सिस्टम बन जाता है .जैसे पृथ्वी -चंद्रमा (अर्थ -मून सिस्टम ).

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

क्या होतें हैं खर्राटे ,कैसे और क्यों ?

स्नोरिंग यानी खर्राटे क्यों पैदा होतें हैं ?
किसी भी ध्वनी ,किसी भी किस्म की श्रव्य या अश्रव्य आवाज़ के पैदा होने के लिए कम्पनों का पैदा होना एक आवश्यक शर्त है .सोफ्ट पैलट (तालू )के कम्पन बनते हैं खर्राटे की वजह .कम्पनों की वजह सांस की धौकनी का अटक के लेकिन शोर पैदा करते हुए चलना है .कह सकतें हैं खर्राटे गले की घंटी हैं .गहरी नींद को छोडिये कुछ लोग तो उनींदे बैठे -बैठे दिन में भी खर्राटे लेतें हैं .(हाइपो -थारोइड -इज्म से ग्रस्त लोग ऐसा करते देखे जा सकतें हैं )।
अलबत्ता खर्राटे उप -ज्व्हिया (यूव्युला ,कौआ,गले की घंटी भी कहा जाता है इसे अलिजिह्व्या भी कहतें हैं जो मुख के एक दम भीतर ठीक गले से ऊपर लटकता छोटा मांस पिंड होता है )या एपिग्लोतिस (काग या कौआ ,काकल ) के ज़ोरदार हरकत में आने से भी पैदा होतें हैं .दायें -बाएं हिलने लगता है काग या कौआ .इट एग्जीक्युट्स टूएंड फ्रो मोशन .इन्हीं कम्पनों का नतीजा होता है स्नोरिंग जो हमारी औडिबिल रेंज (श्रवण की सीमा के अन्दर बने रहतें हैं .).अनेक वजहें होतीं हैं आ -बाल -वृद्धों में खर्राटों की .इससे पहले की ये खुद के लिए जान लेवा और दूसरे की नींद ले उड़ने वाले बने चिकित्सीय परामर्श ज़रूरी है .अलबत्ता मोटापा कम करना धूम्रपान छोड़ देना लाभ -दायक सिद्ध होता है .बच्चों में टोंसिल या एडी -नोइड्स बढ़ने पर इन्हें सर्जरी के द्वारा ज़रूरी होने पर निकाल दिया जाता है.दोनों का बढना बच्चों में खर्राटों की वजह बन सकता है .नासिका श्वसन मार्ग (नेज़ल ए-यर वे )की सर्जरी भी की जाती है ताकि सांस की आवाजाही में आने वाली बाधा को हठाया जा सके ।
पला -टो -प्लास्टी ,यूव्युलो -पला -टो -फेरिंगो -प्लास्टी भी की जाती है .

रोजाना कितनी नींद ले उड़तें हैं जीवन -साथी के खर्राटे ....

७३० आवर्स' स्लीप लोस्ट `ड्यू टू स्पाउस स्नोरिंग :(डी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १८ ,२०१० ,पृष्ठ १७ ।).
एक हालिया सर्वे के अनुसार ब्रितानीदम्पत्तियों की नींद के ७३० घंटे हर साल साथी के खर्राटे ले उड़तें हैं.साथी का बारहा करवटें बदलना भी इसमें अपना पार्ट प्ले करता है .पति, पत्नी की वजह से या फिर पत्नी, अपने पति के खुर्राटे और नोइज़ी ब्रीथिंग (ब्रेअथिंग ) के हाथों हर रात अपनी नींद के औसतन दो घंटा हैरान -परेशान रहतें हैं .ब्रिटेन में यह तलाक का बड़ा मुद्दा बनता रहा है ।
वैसे भी खर्राटे लेना सांस लेने में खलल है .एक मेडिकल कंडीशन भी हो सकती है जिसका समाधान होना चाहिए ।
व्हाट इज स्नोरिंग ?
इट इज नोइज़ी ब्रेअथिंग व्हाइल एस्लीप ड्यू टू वाइब्रेशन ऑफ़ दी सोफ्ट पैलट(तालू ,मुख के अन्दर का ऊपरी भाग ),यूव्य्ला(कौआ,काकल ,मुख के एक दम भीतर ठीक गले से लटकता छोटा मांस -पिंड )फैरिन्जियल वाल्स ओर एपिग्लोतिस (गले की घंटी ,उप -जिव्ह्या ,कौआ )।
इन चिल्ड्रन इट इज ओफतिन एसोशियेतिदविद एनलार्जमेंट ऑफ़ दी टोंसिल्स एंड एडी -नोइड्स ।
ट्रीटमेंट ऑफ़ स्नोरिंग इनक्लूड वेट लोस ,टुबेको एंड एल्कोहल एव्होइदेन्स ,एडिनोई -डेक -टामी(एक्सीज़ंन ऑफ़ एडिनोइड ),tonsillectomy ,nasal airway surgery,uvulopalatoplasty .(continued ....)

कभी -कभार बीमार होना आपके लिए अच्छा है .

फ्लू को ही लीजिये .सर्दी आई नहीं ,आँख ,नाक से पानी बहना शुरू ,गले में खिच -खिच नाक से सूं-सूं .सूं -सुड़कबारहा .जुकाम -सर्दी न हो तो सर्दी बे -मजा ,न गर्म हल्दी वाला दूध न तुलसी चाय (मसाला चाय के तो कहने ही क्या दाल चीनी ,लॉन्ग ,काली मिर्च सभी एक साथ ,ऊपर से ताज़ा -ताज़ा तुलसी पत्ता ।
इधर कुछ जेहादी किस्म के लोग ना हक़ ही फ्लू के पीछे पड़े हैं .सुना है एक ही टीका बनाया जा रहा है फ्लू की सीजनल और पेंदेमिक स्ट्रेनदोनों ही किस्मों की काट के लिए .एक तरफ एक आजमाइशी (एक्सपेरिमेंटल पिल )आ रही है दूसरी तरफ सिल्वर टिप्द योघर्ट बेक्टीरिया है जो फ्लू की ऐसी तैसी कर देगा .ऐसी जैविक तरकीब भी सोची जा रहीं हैं जो रोग रोधी तंत्र को फ्लू से ताकतवर बनादे .रोग -प्रति -रोधी तंत्र के हाथ मज़बूत करके इसे बेहद खबरदार कर दे .दवा कम्पनियां भारी मुनाफ़ा कमा लेने की ताक में डॉक्टरों की चांदी करने वाली सभा गोष्ठियां आयोजित कर रहीं हैं ।
जरा सोचिये यदि बारहमासी फ्लू का नामो -निशाँ ही मिट गया तो आइन्दा आने वाली संतानों को पूरे साल स्कूल में ही खटना पड़ेगा .दादी -नानियों के सारे नुश्खे बे -कार हो जायेंगे ।नथुनों में गंध भरने वाला बेसन का हलुवा अन्य सुस्वादु जुकाम भगाऊ चीज़ें उन्हें कौन खिलाएगा .जुकाम -सर्दी ,फ्लू एक चेंज ,वेळ कम चेंज मुहैया करवातें हैं आम -ओ -ख़ास को .आ -बाल -वृद्धों को .दफ्तरी बोस की घुड़क -घू से निजात अल्पकाल के लिए ही सही बेहद ज़रूरी है .रजाई की गर्माहट और किस्म किस्म की चाय -कहवा .तन और मन को पूरा आराम .लोगों की सहानुभूति सब कुछ चुक जाएगा ।फ्लू बिना सब सून.
डॉक्टरों का क्या है ज़रा सा जुकाम हुआ नहीं ,ठण्ड लगी नहीं ,ले भैया एंटी -बाय -टिक्स ,पूछो उनसे यह तो वायरल होता है ,बेक्टीरिया से पैदा नहीं होता ,ज़वाब मिलेगा ,भाई साहिब सेकेंडरी इन्फेक्सन से बचायेगें एंटी -बाय -टिक्स .ड्रग -एडिक्ट बना रहीं हैं हमें ,दवा कम्पनी .हम ड्रग -जन्कीज़ जन्मजात पैदानहीं हुए थे .रोगों से लड़ने वाला कुदरती तंत्र हमें विकास -क्रम में मिला है .उसे हम नाकारा बनवा रहें हैं .ऐसा नहीं है आधुनिक चिकित्सा तंत्र में हमारी आस्था नहीं है .लेकिन यह क्या दवा ज्यादा खुराक कम .सर्दी -जुकाम में एंटी -बाय -टिक .कोई राष्ट्रीय एंटी -बाय -टिक पालिसी नहीं .ओवर दी काउंटरड्रग के नाम पर कुछ भी ले लो .ऊपर से विज्ञापनी नुश्खे .
मुफ्त में माहिरों सा परामर्श देने वाले देशी नुश्खे तजवीज़ करने वाले आम -ओ -ख़ास क्या करेंगे यदि फ्लू धरती से चला गया तो ?आप जानतेहैं यहाँ भारत में हर व्यक्ति डॉक्टरी के जींस लेकर पैदा होता है .उसके पास मेडिकल कोलिजों में सालों साल दिमाग खपाके कड़ी महनत करने वालों से ज्यादा जानकारी और माहिरी होती है .सर्दी - जुकाम के नुश्खे बतलाने में इनका कोई सानी नहीं . ये सारे लोग बेकार हो जायेंगे .फ्लू के संग साथ लिविंग -टुगेदर (सहजीवन ,सिम्बियो -टिक लिविंग ज़रूरी है .जेहादियों के चक्कर में आने की ज़रुरत नहीं है .

हार्ट अटक के इलाज़ के लिए "बेली फैट"?

बेली फैट एड्स रिकवरी आफ्टर हार्ट अटेक(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १८ ,२०१० ,पृष्ठ १७ )।
बेली फैट का पहली मर्तबा स्तेमाल हार्ट अटेक के मरीजों पर किया गया है .इस एवज़ कटि -प्रदेश वसीय ऊतकों (वेस्ट -लाइन फैट टिश्यु )से कलम -कोशायें (स्टेम सेल )जुटाई गई .इनकी मदद से दिल का दौरा भुगत चुके दिल को १० मिनिट के भीतर ही अनुप्राणित किया गया .स्टेम सेल्स को दिल में इन्फ्युज़ किया गया .इस अग्र- गामी स्टडी से लाभ उठाने के लिए ऐसे ११ मर्द और तीन औरतें आगें आईं जिन्हें हाल -फिलाल ही दिल का दौरा पड़ा था .इनमे से १० को स्टेम सेल्स तथा ४ को डमी (प्लेसिबो )दिया गया .सभी मरीजों की बेली से(एब्दोमन से )लाइपो -सक्शन विधि द्वारा २५० घन सेंटीमीटर फैट खींचा गया ।
इनमे से हरेक साम्पिल में से साइंसदानों ने २ करोड़ अडल्टस्टेम सेल्स अलग किये .एक मरीज़ के दिल तक इन्हें इन्फ्युज़ करने में बा -मुश्किल १० मिनिट लगे ।
आप जानते हैं स्टेम सेल्स (कलम कोशायें रिजेंरेतिव सेल्स ) होतीं हैं जो कई तरह के ऊतकों में ढल सकतीं हैं ।
१० मरीजों में जिनके दिल को कलम कोशाओं से अनुप्रेरित किया गया था हार्ट पर्फ्युज़ंन में ३.५ %सुधार देखा गया ,यानी ऑक्सीजन युक्त रक्त इनके दिल को ३.५% ज्यादा पहुंचा इस प्रोसीज़र के ६ माह बाद .इनके दिल के बाएं निलय ने ५.७ %ब्लड भी ज्यादा उलीचा .बरक्स उनके जिन्हें स्टेम कोशाओं के नाम पर छद्म नुस्खा ही दिया गया था ।
इस अध्ययनको नीदरलैंड्स के एरास्मुस यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटरके रिसर्च -दानों ने अंजाम तक पहुंचाया .६ माह के बाद परि -ह्रदय धमनी रोग(कोरोनरी -आर्ट -अरी दीजीज़ ) के मरीजों को ज्यादा ऑक्सीजन युक्त रक्त मिलने लगा ,दिल ने ज्यादा खून पम्प किया ,दिल को पहुँचने वाली नुकसानी भी कम हुई ।
इसका मतलब यह हुआ बेली फैट कितना ही बुरा सही ,इसका अच्छा स्तेमाल भी हो सकता है .वक्त पे खोटा सिक्का भी काम आ जाता है .

हाई -केफ्फीन एनर्जी ड्रिंक्स और एल्कोहल का बे -हिसाब स्तेमाल ...

हाई -केफीन एनर्जी ड्रिंक्स और एल्कोहल एब्यूज (बे -हिआब और ज़रुरत से ज्यादाएल्कोहल का स्तेमाल )क्या कहीं एक दूसरे से जुड़े हैं .एक की लत दूसरी लत को हवा देती है ?एक अध्ययन से कुछ ऐसे ही संकेत मिले हैं ,पता चला है हाई -केफ्फीन युक्त कथित एनर्जी ड्रिंक्स का सेवन कम समय में ज्यादा शराब पीने के दौर को बढाता है .बिंज ड्रिंकिंग की और ले जाता है .एल्कोहल की गुलामी करता व्यक्ति हेवी ड्रिंकिंग करने लगता है ।
एक हज़ार अमरीकी छात्रों पर संपन्न इस अध्ययन में देखा गया इनमे से जो विश्व -विद्यालयी छात्र हाई -केफीन से लदी लोकप्रिय ब्रांड 'रेड बुल ',मोंस्टर ,,रोक्स्टार आदि का नियमित (रोजाना या फिर हफ्तावार )सेवन करते थे .वे अकसर शराब भी पीते थे और ज्यादा भी पी लेते थे एक बार में .इनके एल्कोहल आश्रित हो जाने की संभावना भी बलवती दिखलाई दी बरक्स उन छात्रों के जो कभी कभार ही बेहद केफीन युक्त ऊर्जा पेयों के माया जाल में फंसते थे ।
एनर्जी ड्रिंक्स का बेहद सेवन करने वाले एल्कोहलसे पैदा होने वाली कई अन्य परेशानियों (ब्लेक -आउट्स ,हंग -ओवर ,क्लास से नदारद रहना ,सेल्फ इंजरी आदि ) की चपेट में आते देखे गए .बरक्स इनके वे तमाम छात्र जिनके लिए एनर्जी ड्रिंक कोई ख़ास आकर्षण या फैशन स्टेटमेंट नहीं थी या जो इधर रुख ही नहीं करते थे इन तकलीफों से बचे रहते थे ।अध्ययन की अगुवाई मेरी लैंड विश्व विद्यालय की रिसर्च दान अमेलिया अररिया ने की है ।
अध्ययन पूर्व में सम्पान ऐसे अध्ययनों की पुष्टि करता है जिनमे हाई -एनर्जी -ड्रिंक्स कन्ज़म्प्सन ,सब्सटेंस एब्यूज (नशीली दवाओं आदि का बेहिसाब सेवन )और जोखिम भरे व्यवहार में एक अंतर -सम्बन्ध देखा गया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-हाई -केफीन एनर्जी ड्रिंक्स टाइड टू एल्कोहल एब्यूज(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १८ ,२०१० )/पृष्ठ १७

न्यूरल -स्टेम सेल थिरेपी से ब्रेन अटेक के इलाज़ की पहली आज़माइश ..

फस्ट स्ट्रोक स्टेम सेल ट्रायल स्टार्ट्सदी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई नवम्बर १७ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )।
ब्रितानी बायो -टेक कम्पनी "रिन्यूरोंन "के साथ काम करते हुए स्कोट -लैंड के चिकित्सकों ने एक पायो -नीयर क्लिनिकल ट्रायल (अपने किस्म के पहले नैदानिक परीक्षण )में आज़माइश के तौर पर पहले ब्रेन स्ट्रोक के मरीज़ का इलाज़ किया है ।
इस से इस से इस बात का जायजा लिया जा सकेगा क्या सेरिब्रल वैस्क्युलर एक्सीडेंट (ब्रेन अटेक )से शारीरिक रूप से अशक्त या थोड़ा विकलांग (अपंग )हुए लोगों को फायदा पहुँच सकता है ।
बिला -शक दुनिया भर में न्यूरल स्टेम सेल थिरेपी की आज़माइश का यह अग्रणी मामला है .बहर -सूरत ग्लासगो विश्विद्यालय के "न्यूरो -साइंस और मनो -विज्ञान विभाग,संस्थान "के तत्वावधान में एक मरीज़ का न्यूरो -स्टेम सेल थिरेपी( शल्य, सर्जरी )की जा चुकी है .नतीजों के प्रति कीथ मुइर आशान्वित रहें हैं .

खाने -पीने की खुशबू दूर से ही आ जाती है मोटे भारी -भरकम लोगों को ....

पोर्ट्स -माउथ विश्व -वद्यालय के अगुवा रिसर्च्दान लोरेंजो स्ताफ्फोर्ड ने पता लगाया है ,भारी -भरकम वजनी लोग किसी भी प्रकार की खाने पीने की चीज़ों का अरोमा और सुबन्धी गंध और स्वाद दूर से भांप लेते हैं .क्षुधा -वर्धक होता है यह रूप रस और गंध पकवानों की इनके लिए नतीज़न ,ये लोग ज़मके जीमते हैं .दबा के खाते है .इनकी घ्राण शक्ति मोटापे के साथ बढती जाती है .जो जितना हट्टा-कट्टा उसकी घ्राण -शक्ति(ओल्फेक्त्री -फेकल्टी) उतनी ही तीव्र .ज़ाहिर है इंटेंस सेन्स ऑफ़ स्मेल के पीछे घ्राण -कोशिकाओं और इनकी नासिका (नाक )का हाथ होता है .बिला शक दोनों में एक सह -सम्बन्ध है ज़रूर लेकिन ठीक -ठीक यह को -रिलेसन है क्या इसका हाल -फिलाल कोई निश्चय नहीं ।
लेकिन जिन लोगों में वजन बढ़ने (वेट गेन की)विशेष प्रवृत्त रहती है उनकी तीक्ष्ण घ्राण शक्ति ज़रुरत से ज्यादा खाने के लिए उकसाती ज़रूर है ,खाना उन्हें ज्यादा सुस्वादु लगता है .चटकारा ले ले कर खाते हैं ये लोग ।
जो लोग वजन कम करना चाहते हैं उनकी मदद के लिए रिसर्चचर देर सवेर आगे आ सकते हैं .मोटापे का इलाज़ करने वालों के लिए भी इस रिसर्च के अपने निहितार्थ हैं ।
"केमिकल सेंसिस "विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित इस रिसर्च का मकसद अब यह पता लगाना भी है क्या भूख या भरा पेट व्यक्ति की इस घ्राण शक्ति को कम ज्यादा करता है ?गडबड कहाँ है नाक में या भूखा बने रहने में ?

बुधवार, 17 नवंबर 2010

फ्ल्यू का जीवन भर के लिए बस एक ही टीका तमाम तरह के फ्लू वायरस से बचाव के लिए .

अमरीकी साइंस -दानों की माने तो जल्दी ही फ्ल्यू का एक ऐसा टीका तैयार कर लिया जाएगा जो आजीवन फ्ल्यू की तमाम तरह की स्ट्रेंस से हिफाज़त करेगा .चाहे फिर वह वायरस की सीजनल विंटर फ्ल्यू स्ट्रेन हो या फिर पेंडेमिक(विश्वमारी बनने की सामर्थ्य रखने वाली )स्ट्रेन ।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेरी -लैंड की एक माहिरों की पूरी टीम इसपे काम कर रही है .इसे "होली ग्रेल"ऑफ़ फ्लू -रिसर्च कहा जा रहा है .(मच सौट आफ्टर वेक्सीन इन दी फील्ड ऑफ़ मेडिसन कहा जाता रहा है इसे .).हर कोई चाहता है एक मुठ्ठी आसमान ।
प्रस्तावित जादुई दवा डी एन ए का स्तेमाल करती है .यह हमारे शरीर के रोगों से लड़ने वाले तंत्र को भुलावे छलावे में रखते हुए प्रोटीन बेस के खिलाफ एंटी -बॉडीज तैयार करवाएगी न की दी "लोलीपोप स्टिक ".बस एक या दो टीके इस वेक्सीन के ता -उम्र जीवन भर की सुरक्षा प्रदान कर सकेंगे ,किस्म -किस्म के फ्लू वायरस से ।
इन फेक्ट दी न्यू ड्रग युज़िज़ डी एन ए टू ट्रिक दी बॉडीज इम्यून -सिस्टम इनटू प्रो -ड्युसिंग एंटी -बॉडीज अगेंस्ट दी प्रोटीन्स बेस इन -स्टेड -दी "लोलीपोप स्टिक"।
अन -लाइक दी हेड ,दी स्टिक चेंज़िज़ लिटिल फ्रॉम स्ट्रेन टू स्ट्रेन ,मीनिंग वन वेक्सीन शुड प्रोटेक्ट अगेंस्ट मल्टी -पल स्ट्रेंस ऑफ़ दी वायरस ।
गैरी नाबेल ने (संस्थान के डायरेक्टर हैं आप) ने इसके विकास के लिए कौन सी रन -नीति अपनाई है ?
Gary Nabel ,the institute ,s director of vaccine resarch used the DNA from the protin to trick animals ,immune system into producing antibodies that seek out and destroy the bug .The team then gave a" booster shot " ऑफ़ ए हार्मलेस फ्लू ऑर कोल्ड वायरस टू रेचेट अप इम्यून रेस्पोंस .दिस प्राइमरएप्रोच किल्ड ऑफ़ ए फ्लू वायरस फ्रॉम २००७ एंड वन फ्रॉम १९३४ ,देस्पाईट दी डी एन ए कमिंग फ्रॉम ए स्ट्रेन सर्क्युलेतिद इन १९९९ ।
इंतज़ार कीजिये बस थोड़ा सा इस राम -बाण फ्लू औषधि (टीके )का .

लघु -ग्रह इतोकावा की धूल लेकर लौटा है ,जापानी अन्तरिक्ष -यान .

हय्बुसा जापानी अन्तरिक्ष यान जून में पृथ्वी पर सकुशल लौट आया है .बकौल जापानी अन्तरिक्ष संस्था "जाक्सा "यान अपने साथ लघु -ग्रह (एस्टेरोइड )इतोकावा की धूल लेकर लौटा है .एजेंसी ने यह नतीजे साम्पिल्स के गहन विश्लेसन के बाद निकाले हैं .इससे सौर मंडल की बनावट और बुनावट ,कैसे बना सौर मंडल इस पर नै रौशनी पड़ सकती है .अब तक यह चौथा मौक़ा है जब अन्तरिक्ष से जुटाए गये साम्पिल्स पृथ्वी पर लाये गये हैं ।
सबसे पहले चन्द्र सतह से अपोलो अभियानों ने मिटटी उठाई थी ."स्टारडस्ट "ने कोमेट मेटीरियल जुटाया था ,"जिनेसिस मिसन" के तहत सोलर मैटर पृथ्वी पर लाया गया था ।
दी स्पेस क्राफ्ट "हयाबुसा "ज कैप्स्यूल लेन्दिद सक्सेसफुली इन दी ऑस्ट्रेलियन आउट -बेक इन जून आफ्टर ए ७ईयर ,४ बिलियन माइल जर्नी .

पृथ्वी ही नहीं विक्षोभ -मंडल भी गरमा रहा है .

विश्व्यापी तापन की चपेट में पृथ्वी की सतह के अलावा पृथ्वी के वायुमंडल की निम्न -तम परत (यह निचली परत पृथ्वी की सतह के ऊपर ६-१० किलोमीटर तक मौजूद है ,इसे ट्रोपो -स्फीयर या विक्षोभ मंडल कहा जाता है .)भी आ रही है .यह इत्तला अब तक के अनुमानों और आशंकाओं के ही अनुरूप है जिसकी पुष्टि अमरीकी तथा ब्रितानी मौसम -विज्ञान के माहिरों ने की है ।
साइंसदानों ने गत चार दशकों के विक्षोभ मंडल तापमानों का पूरा जायजा लेने के बाद पता लगाया है ,विक्षोभ मंडल गरमा रहा है .आपको बतला दें आंधी तूफ़ान ,झंझा ,क्लाउड बर्स्ट,गर्जन मेघ टोर्नेडो ,हुरिकेंस ,आदि सभी वायु मंडलीय घटनाएं विक्षोभ मंडल में ही घटित होती हैं .इस सबके लिए पृथ्वी के नजदीक बढती ग्रीन हाउस गैसों का जमावड़ा ही जिम्मेवार है .

दिल के दौरे की प्रागुक्ति ब्लड टेस्ट से ?

हार्ट अटेक रिस्क ?ब्लड टेस्ट टू टेल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १७ ,२०१० )।
अमरीकी रिसर्चदानों ने एक ऐसा ब्लड टेस्ट ईजाद (विकसित )कर लिया है जो ऊपर से स्वस्थ दिखलाई देने वाले उम्र -दराज़ लोगों के हार्ट फेलियोर की चपेट में आने के खतरे की इत्तला दे सकता है .हार्ट फेलियोर के खतरे का वजन समय रहते बतला सकता है ।
इस परीक्षण के तहत "ट्रोपो -निन टी "का स्तर खून में पता लगाया जाता है .यह एक एक ऐसा मार्कर है जो बायलोजिकल प्रोसिस ऑफ़ सेल डेथ का द्योतक है .उस जैविक प्रक्रिया के बारे में खबर देता है जो कोशा की मृत्यु की वजह बन जाती है .हार्ट -फेलियोर की वजह यही प्रक्रिया" कोशिका मृत्यु" की ,बनती है .

गर्भावस्था में औरतों द्वारा धूम्रपान का मतलब आपराधिक प्रवृत्ति की संतानों के पैदा होने की संभावना को बढाता है ..

स्मोकिंग इन प्रेगनेंसी मे मेक किड्स क्रिमिनल्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,नवम्बर १७ ,२०१० )./टाइम्स ट्रेंड्स ।
एक सद्य प्रकाशित अध्ययन के अनुसार जो महिलायें गर्भावस्था के दौरान रोजाना एक पैकिट या उससे भी ज्यादा सिगरेट फूंक देती हैं उनकी संतानों के बड़ा होने पर मुजरिम बन जाने का जोखिम अन्यों की बनिस्पत ३०%बढ़ जाता है .आपराधिक प्रवृत्ति ,आपराधिक व्यवहार से जुड़े अन्य स्तेतिस्तिकल घटकों यथा मनो -रुग्णता ,पारिवारिक समस्याओं ,गरीबी आदि को अल्हेदा रखने पर भी यह सम्बन्ध स्मोकिंग और संतानों केआगे चलकर क्रिमिनल ओफेंदर्सहो जाने का बना रहता है ।
हारवर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के रिसर्च -दानों ने ४०००ऐसे अमरीकियों का स्वास्थ्य संबंधी तथा पूरा अपराधिक रिकार्ड खंगाला है जिनकी उम्र ३३-४० तक थी .उनकी माताओं के धूम्रपान करने के बारे में भी पूरा ब्योरा जुटाया गया जिन्हें इस अध्ययन में १९५९ और १९९६ के बीच एनरोल किया गया था ।
पता चला इनमे से जिनकी माताओं ने गर्भावस्था में कमसे कम एक पैकिटसिगरेट्स का धूम्रपान किया था उनके आपराधिक प्रवृत्ति का क़ानून तोड़ने वाले मुजरिम होने का ख़तरा ३० %बढ़ गया था .इनमे बार -बार क़ानून तोड़ने की प्रवृत्ति भी दिखलाई दी.ये तो वही बात हो गई करे कोई भरे कोई .करे जुम्मा पिटे मुल्ला .

जलवायु परिवर्तन की मार से पृथ्वी को बचाने के लिए वीडियो गेम्स ...

सेव दी अर्थ व्हाइल प्लेइंग ए वीडियो -गेम .कंप्यूटर गेम्स हू लाइक ए चेलेंज कैन नाव टेक ऑन वन ऑफ़ दी ट्फेस्ट एराउंड :सेविंग दी एंटायर प्लेनेट ,दिस टाइम फ्रॉम क्लाइमेट चेंज (मुंबई मिरर ,नवम्बर १७ ,२०१० ,पृष्ठ २० )।
'फेट ऑफ़ दी वर्ल्ड 'है इस रणनीतिक गेम का,नाम .एक सामाजिक अंश्चेतना के तहत इस खेल में हर खिलाड़ी बढती हुई आबादी की ज़रूरीयात को पूरा करते कराते हुए भी भूमंडलीय जलवायु और संशाधनों को बचाने का प्रयास करता है रणनीतिक चालें चलकर .सबको बिजली पानी और आवास भी और दो जून का खाना मुहैया करवाते हुए जलवायु परिवर्तन की मार से पृथ्वी को बचाए रखना इस वीडियो -गेम का अंतिम लक्ष्य है ।
अब यह आपके हाथ में है आप पृथ्वी के संशाधनों को बनाए रखकर बढती आबादी का पेटआइन्दा आने वाले २०० सालों तक भरें,भरते रहें या पृथ्वी को विनाश की और ले जाएँ .सब कुछ की चाबी आपके हाथ में है ।
आप जानतें हैं आपको 'फिक्शनल ग्लोबल एन्वायरन्मेंट ओर्गेनाज़ेशन' का मुखिया बना दिया गया है.आप एमेजन के वर्षा -जंगलात पर पेड़ों(वृक्षों ) के कटान पर रोक लगा सकतें हैं पूरे योरोप भर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बिजली से चलाने का आदेश ज़ारी कर सकतें हैं ,पूरे एशिया भर में एक परिवार एक बच्चा नियम लाद सकतें हैं ।
लेकिन ऐसा करने के अपने जोखिम और खामियाजे भी भुगतने पड़ सकतें हैं ,घटती आबादी संशाधनों को तो बचा लेगी लेकिन वर्क फ़ोर्स की तंगी के चलते आमजन को ८० साल की उम्र तक काम करना पड़ेगा .ऐसे में 'फिक्शनल ग्लोबल ओर्गेनाइज़ेशन के खिलाफ जनमत का विरोध खड़ा होगा .जिसका खामियाजा भी आपको भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ेगा ।
बोर्नियो और सुमात्रा में रहने वाला ओरंग उटान (लम्बी बाहों और कुछ -कुछ लाल बालों वाला एक प्रकार का बड़ा बंदर )तो इस सीनारियो में बचा लिया जाएगा .विश्व -व्यापी तापमान भी एक डिग्री कम हो जायेंगे .लेकिन ज़रासी चूक भर योरॉप को विनाशकारी बाढ़ों (जलप्लावन )की ओर ले जायेगी .अफ्रिका युद्ध से घिर जाएगा ।
यदि खिलाड़ी अपनी चालों से दुनिया को नष्ट करने का फैसला कर लेतें हैं तब भी उनकी जलवायु परिवर्तन से पैदा विनाश के बारे में जानकारी ओर जागरूकता दोनों बढेंगी ।
पूरा गेम वैज्ञानिक ,आर्थिक तथा जन -संख्या सम्बन्धी आंकड़ों पर आधारित है इसके लिए नासा ,संयुक्त राष्ट्र औरऑक्सफोर्ड विश्विद्यालय से आंकड़े जुटाए गए हैं .जलवायु परिवर्तन से जुड़े माहिरों की पूरी सलाह गेम को विकसित करने में ली गई है ।
गेम बेहद जन शिक्षण का ज़रिया बनेगा .लोग यह जान समझ सकेंगे हम निकट भविष्य में कौन से फैसलों का सामना करेंगे .पर्यावरण के माहिरों तथा विकासात्मक समूहों (डिव -लप -मेंटल ग्रुप्स )ने भी गेम का स्वागत किया है .इनका पूरा संग साथ भी इसे विकसित करने में माहिरों को मिला है .जो हो खेल खेल में जलवायु -परिवर्तन और उस से होने वाले संभावित विनाश की जानकारी गेम खेलने वालों को बिना इस विषय में पोथी पत्रा पढ़े हुए ही मिल जायेगी .