क्या कुसूर था राजेन्द्र का ?यही ,वह कबाड़ी की दूकान पर काम करता था .पढ़ा लिखा ज्यादा नहीं था इसलिए वह क्या कबाड़ी बाज़ार पश्चिमी दिल्ली के माया- पुरी में कोई नहीं जानता था -गामा -इरादियेटर का मतलब क्या है .यह भी नहीं जानता था इसके आस पास जाने से पहले लेड धातु का एप्रिन पहनना पड़ता है ,ताकि खतरनाक विकिरण (गामा -विकिरण से जिसकी भेदन क्षमता बेशुमार होती है बचा जा सके ).,के असर से बचा जा सके ।
लेकिन देश की नाक समझे जाने वालेदिल्ली - विश्व -विद्यालय के एक नहीं दसियों प्रोफेसरों को मालूम था -गामा -इरादियेटर से रिसने वाला विकिरण विषाक्त होता है ।यह एक रिसर्च उपकरण है जिसके पास पूरी एहतियात बरतते हुए ही जाया जा सकता है .ला -परवाही खतरनाक हो सकती है .
इसका स्तेमाल उपकरणों को वि -संक्रिमित (स्त्रेलाइज़ेसन )करने ,खाद्य सामिग्री को डी-कन्तामिनेट करने ,सेल्फ लाइफ बढाने के लिए किया जाता है .गामा -विकिरण पड़ने पर जीवाणु नष्ट हो जातें हैं ।
इसका स्तेमाल बतौर विकिरण चिकित्सा कैंसर के खात्मे के लिए भी किया जाता है,उद्योग जगत में भी .कोबाल्ट -६० (मानव -निर्मित ,रेडिओ -धर्मी समस्थानिक ,रेडियो -एक्टिव -आइसो -टॉप कोबाल्ट -६० ) इसका प्रमुख स्रोत है ।
दिल्ली विश्व -विद्यालय का रेडियेशन -केमिस्ट्री विभाग इसका स्तेमाल १९७० -१९८० के दशक में शोध के बतौर कर रहा था ।
इसे कनाडा से १९६८ में आयात किया गया था .बेशक भाभा -परमाणु -शोध -केंद्र (बार्क )की अनुमति से ही इसकी खरीद की गई थी ।
लेकिन ४० बरस बाद इसे आम कबाड़ की तरह बेच दिया गया .पढ़े लिखे समाज में कुछ भी तो हो सकता है ।
१९८३ में एटोमिक एनर्जी रेग्युलेटरी बोर्ड का गठन हुआ .शायद यह 'गामा -इरादियेटर 'इसके राडार पर नहीं था ।
भारत रेडियो -आइसो -टॉप्स का निर्यात करता है ,एक्सपोर्ट करता है .भारत निर्मित सभी कोबाल्ट -६० स्रोतों का एटोमिक रेग्युलेटरी एजेंसी के साथ पंजीकरण (रजिस्ट्रेसन )ज़रूरी रहता है .नजर रखी जाती है इन्स्रोतों पर ।
अलबत्ता १९७० -१९८० के दशकों में आयातित विकिरण स्रोत इस एजेंसी के साथ पंजीकृत नहीं रहें हैं .ऐसे तमाम स्रोतों पर अब नजर रखने की ज़रूरत बढ़ गई है ।बेशुमार खतरा है चिकित्सा कबाड़ से जो मेडिकल कालिजों से निकल रहा है .
फिर कोई बे-कसूर राजेन्द्र (३५ वर्ष )विकिरण का ग्रास ना बने ।
रेडिओ -एक्टिव तत्वों में एटोमिक स्केल पर लगातार विस्फोट होते रहतें हैं .इनके नाभिक आपसे आप टूटते रहतें हैं .इस डिके (दिस -इन्तिग्रेसन ),विखंडन के साथ विकिरण के बतौर अल्फा ,बीटाया फिर गामा -रेज़ रिस्तीं हैं ।
हरेक रेडिओ -धर्मी तत्व का एक लाइफ -साइकिल ,जीवन अवधि है .इसका निर्धारण हाफ लाइफ -साइकिल्स से होता है .इनमे लोंगर -लिव्ड कुदरती आइसो -टॉप्स भी हैं ,शोर्ट -लिव्ड भी ,मानव निर्मित भी .
एक हाफ- लाइफ- साइकिल के बाद किसी तत्व की मात्रा पहले से आधी रह जाती है .कोबाल्ट -६० दस हाफ -लाइफ -साइकिल के बाद बेअसर हो जाता है .यानी अब विकिरण रिसाब एक सुरक्षित सीमा में ही होता है जिसे निरापद समझा जाता है ।
एक हाफ साइकिल की अवधि ५.२७ बरस है कोबाल्ट -६० के लिए .दस हाफ साइकिल यानी ५२.७ बरस बाद यह निरापद समझा जा सकता था ।
लेकिन शायद यह इससे पहले ही कबाड़ में पहुँचा दिया गया .ऐसी लापरवाही भविष्य में भी किसी राजेन्द्र की जान ले सकती है .खुदा खैर करे .
शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
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