हार्ट वाल्व एक झिल्लीनुमा संरचना को कहतें हैं .चार -कक्षों वाले हमारे ह्रदय में इतने ही हृद वाल्व होतें हैं .जिनका काम निरंतर एक ही दिशा में रक्त संचरण को बनाए रखना है .यह ऊपरी और निचले कक्षों के प्रवेश और निकासी मार्ग पर मौजूद रहतें हैं ।वास्तव में वाल्व किसी भी होलो ओर्गेंन या वेसिल (पात्र )में लगे होतें हैं .इनका काम तरल को आगे प्रावाहित करते रहना है ,पीछे लौटने से रोकना है .इनमे फोल्ड होनेया बंद का प्रावधान रहता है ।
हृद वाल्वों के खुलने , बंद होने का मतलब ही दिल की धोंकनी का निरंतर चलते रहना है .तथा शरीर के विभिन्न अवयवों तक रक्त पहुंचाना .,इनके ही जिम्मे रहता है ।
बहुत ही नाज़ुक होतें हैं हृद वाल्व .यह जन्मजात तथा अर्जित दोनों ही तरह की बीमारियों से असर ग्रस्त हो जातें हैं ।
हृद वाल्व सम्बन्धी रोगों को अब सही प्रकार से ठीक कर लिया जाता है .चंद दशक पहले यह मुमकिन ही नहीं था .वाल्व खराब हो जाने ,वाल्व में किसी प्रकार की गडबडी ,वाल्व डेमेज हो जाने पर मरीज़ को उसके ही हाल पर छोड़ देना पड़ता था .नतीज़न जीवन की गुणवत्ता से समझोता करना पड़ता था ,रोगी की असमय मौत भी हो जाती थी ।
अब हर तरह के पेचीला- पन कोम्प्लेक्स वाल्व दिस -ऑर्डर को बाकायदा दुरुस्त कर रोगी को सामान्य जीवन जीने के अनुकूल बना दिया जाता है ।
लेकिन कई जन्मजात रोग इलाज़ ना करवाने पर हार्ट वाल्व और स्वयम हमारे जीवन के लिए खतरा बन जातें हैं .
र्ह्युमेतिक फीवर ऐसा ही एक कोन्जिनाइत्ल -रोग है .यह दिल के इन द्वारपालों ,जीवन रक्षक वाल्वों को इलाज़ मयस्सर ना हो पाने की स्थिति में नस्त ही कर डालता है ।
भारत में खासकर आर्थिक -सामाजिक तौर पर समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों में यह रोग व्याप्त है .आम तौर पर इसी वर्ग के किशोर -किशोरियां इस बीमारी की चपेट में आतें हैं .इन्हें पेंसीलिन के दीर्घावधि इलाज़ से रोग मुक्त किओया जा सकता .ज़रुरत तवज्जो देने की है ।
इलाज़ के लिए इन्हें आगे लाने के लिए जन -शिक्षण वक्ती ज़रुरत है ।
र्युमेतिक फीवर शुरूआती दौर में थ्रोट -इन्फेक्सन के बतौर अपने को प्रकट करता है .उच्च ज्वर और जोड़ों में दर्द इसके ख़ास लक्षण हैं .इसकी अनदेखी करना ख़तरा -ए -जान समझो ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-हार्ट वाल्वस :गेट-कीपर्स ऑफ़ लाइफ (टाइम्स ऑफ़ फिन्डिया ,अप्रैल २८ ,२०१० .,कवर स्टोरी )
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
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