शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

सुपर -टास्कर नहीं हैं मैं और आप ....

सुपर -तास्कर्स : जस्ट वन इन फोर्टी केंन ड्राइव वेळ वाईल ऑन फोन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २ ,२०१० )।
अक्सर हम अपने को सुपर -टास्कर मान समझ बैठतें हैं ,तभी तो हम हीरा -लाल बनने की असफल कोशिश करते रहतें हैं .हाथ हमारा स्टीअरिंग पर होता है दिमाग फोन काल्स में अटका रहता है .उताह मनो विज्ञानियों ने पता लगाया है बिरले हीहम यह दोनों काम कुशलता पूर्वक कर सकतें हैं .फिर भी यदि आप ऐसा कर रहें हैं तो जोखिम उठा रहें हैं .क्योंकि ४० में से कोई एक बिरला ही इन दोनों कामों को बिना जोखिम अंजाम दे सकता है ।
२०० प्रति -भागियों पर संपन्न इस अध्धय्यन में केवल २.५ प्रतिभागी ही काम याब रहें हैं .इन्हें एक ड्राइविंग सिम्युलेटर ओपरेट करने को कहा गया .साथ ही एक सेल फोन पर बतियाने के लिए कहा गया ।
९७.५ फीसद प्रति भागी सिम्युलेटर पर गलती करते देखे गए .केवल २.५ फीसद से ही कोईउल्लेखनीय चूक नहीं हुई ।
मनोविज्ञानी जसन वाटसन और डेविड स्ट्रेअर के नेत्रित्व में संपन्न इस अध्धययन के नतीजे जौर्नल साइकोनोमिक बुलेटिन एंड रिव्यू में प्रकाशित होने हैं ।
कोगनिटिव थिएरी के मुताबिक़ सुपर -टास्कर का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए .किसी किसी में ही असाधारण काबलियत (मल्तीटास्किंग की क्षमता ) होती है .फिरभी कितने ही लोग ड्राविंग को सेल फोन के साथ मिक्स करते देखे जातें हैं .हर कोई अपने आप को माहिर समझता है ,मल्ती -टास्कर माने बैठा है .हेंड्स फ्री सेल फोन स्तेमाल करना भी उतना ही खतरनाक है .ये तमाम लोग ब्रेक मारने में २० फीसद ज्यादा वक्त लेतें हैं .सिम्युलेतिद ट्रेफिक के साथ ९७.५ फीसद लोग ताल मेल नहीं रख सके ३० फीसद ज्यादा दूर जाकर रुकी इन की गाडी . ड्राइविंग के दरमियान .,ब्रेक लगाने के बाद भी .यही हैं इस अध्धय्यन के नतीजे .

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