दिल के मरीजों को खासकर वह जो गुस्सा अन्दर ही अन्दर ज़ज्ब कर जातें हैं ,एक बारफिर अपने इस नज़रिए के बारे में पुनर -विचार करना पड़ेगा ।
टिलबर्ग यूनिवर्सिटी ,नीदर लैंड्स के रिसर्चरों ने पता लगाया है ,दिल के ऐसे मरीज़ जो अपना गुस्सा किसी पे ज़ाहिर नहीं कर पाते अन्दर अन्दर सुलगते रहतें हैं वह अपने लए दिलके दौरे के खतरे का वजन तीन गुना बढा लेतें हैं .आइन्दा पांच दस सालों में इनकी मृत्यु की संभावना भी बलवती बनी रहती है ।
रिसर्चरों ने इन्हें टाइप-डी व्यक्तित्व वाला कहा है ।
रिसर्चरों ने क्रोध (गुस्सा ),गुस्से की ज़ज्बी (सप्रेसन ऑफ़ एंगर ),और टाइप -डी पर्सनेलितीज़ पर इसकेपरस्पर संभावित सभी पहलुओं की जांच पड़ताल की है .दिल के दौरे के जोखिम का जायजा लिया है इनके लिए ।
गुस्से के अलावा तमाम तरह के रिनात्मक संवेगों की सामाजिक अभिव्यक्ति में इन लोगों को खासी दिक्कत पेश आती है .प्रतिकूल सामाजिक परिस्थितियों का यह ठीक से सामना नहीं कर पाते .चिल्ला नहीं पाते ,रो नहीं पाते .नतीज़ा होता है -हार्ट अटेक।
सन्दर्भ -सामिग्री :-बोतिल्ड अप एंगर केंन किल हार्ट पेशेंट्स :टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २३ ,२०१० .
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें