ऑस्ट्रलियाई साइंस दानों ने पता लगाया है ,जिन लोगों पर चर्बी चढ़ जाती है खासकर एब्दोमन फ्लेब ,सिर्फ ६ किलोग्रेम- वेट वजन घटाकर ये लोग अपने दिस्तार्ब्द इम्यून सिस्टम को दुरुस्त कर सकतें हैं .यह बात उन लोगों के लिए बड़े काम की है जो जीवनशैली दायाबीतीज़ (सेकेंडरी दायाबीतीज़ ) की ज़द में आ गए हैं .,और मोटापे से ग्रस्त है दरअसल हमारा रोग -प्रतिरोधी रक्षा कवच (इम्यून सिस्टम ) कई किस्म की कोशिकाओं से लैस हैं .इनमे सुरक्षा प्रहरी सेल्स भी है ,किलर भी ।
अच्छी सेहत के लिए यह ज़रूरी है इनमे परस्पर सामंजस्य हो मेल मिलाप ,मिलजुलकर काम करने की कूवत हो .तालमेल हो बढ़िया .अतिरिक्त फ्लेब खासकर एब्दोमन ओबेसिटी इसी ताल मेल को तोड़ देती है .विक्षोभ पैदा करती है .यही प्रतिरक्षा कवच हमें तरह तरह के पेथोजंस का ,जीवाणु ,रोगाणु ,विषाणु ,परजीवी आदि का मुकाबला करने की ताकत देता है .मोटापा इसके सुरक्षा कवच में सेंध मारी करता है .कोशिकाओं के परस्पर ताल मेल को भंग कर देता है .ज़ाहिर है इसमें मोटे व्यक्ति की खुराख ,अतरिक्त बॉडी फेट अपना रोल अदा करतें हैं .ऐसे में प्रोइंफ्लेमेत्री सेल्स पैदा हो जातीं हैं .यह हमारी सुरक्षा तो दूर सुरक्षा के लिए ख़तरा बन उसमे सेंध लगाने लगतीं हैं ।
सिडनी के गर्वन इन्स्तित्युत ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के साइंसदानों ने पता लगाया है -सिर्फ ६ किलोग्रेम वजन घटा कर इस ट्रेंड में उलटफेर की जा सकती है .इम्यून सिस्टम में होने वाले नुकसानदायक बदलावों से बचा जा सकता है .एब्दोमन फेट उक्त प्रोइंफ्लेमेत्री सेल्स के पैदा होने में मददगार की भूमिका निभाता है .रक्त प्रवाह में शामिल होकर यह हमारे शरीर में इन्फ्लेमेशन पैदा करने लगतीं हैं .इसीलिए इन्हें 'प्रो -इन्फ्लेमेत्री इम्यून सेल्स भी कह दिया जाता है .इसी क्रोनिक इन्फ्लेमेसन और कोरोनरी आर्तारीज़ डिसीज़ में एक अंतर सम्बन्ध की पुष्टि भी हो चुकी है .मोटापा कम करने के ,अतरिक्त चर्बी उतारने के और भी कई फायदे हैं ,सेहत के लिए ।उनकी चर्चा फिर कभी .
सन्दर्भ -सामिग्री :-लूज़ जस्ट ६ किलोग्रेम तू गिव योर इम्यून सिस्टम ए बूस्ट (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०३० )
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