जो खुद से प्यार करतें हैं जीवन में जिनके रस है ,जीवन में जो रूचि लेतें हैं उन्हें कार्य स्थल पर भी अपने काम से संतुष्ट देखा गया है .यानी आपके जीवन की ख़ुशी में छिपा है वर्क -प्लेस से संतुष्ट रहने का राज ।
राईट स्टेट यूनिवर्सिटी में संपन्न एक अध्धययन से ऐसी ही ध्वनी आ रही है ।
पूर्व में किये गए अध्धय्यनों का जायजा लेने के बाद पता चला ,जो जीवन से खुश नहीं हैं उन्हें अपने काम से भी संतुष्टि नहीं मिल पाती है ।
बकौल मनो -विज्ञानी नाथन बोवलिंग दो समय अंतरालों पर जायजा लेने मेटा -अनेलेसिस करने के बाद पता चला जॉब सेतिस्फेक्सन और लाइफ सेतिस्फेक्सन में परस्पर एक अंतर -सम्बन्ध एक गुम्फन है .जो अन्दर नहीं है वह बाहर भी नहीं है ।
नाथन ने २२३ अध्धय्यनों का आकलन करते वक्त कार्य -संतुष्टि (जॉब -सेतिस्फेक्सन )से जुडी अन्य बातों यथा काम की प्रकृति से जुड़ा संतोष यानी पसंदगी ,ना पसंदगी ,पगार (पे -पैकेज ),तरक्की के मौके ,सहकर्मी और निगरानी आदि पर भी गौर किया ..
विषयी (सब्जेक्ट्स की ख़ुशी )की ख़ुशी तथा सब्जेक्टिव वेलबींग की भी तुलना की गई .यानी अनेक कोनों से अंतर सम्बन्ध को जांचा परखा गया .कुल मिलाकर काम से संतुष्टि कितनी है यह भी पता लगाया गया और अंत में एक सकारात्मक (पाजिटिव )अंतर सम्बन्ध ही स्थापित हुआ जॉब और जीवन से मिलने वाले संतोष में ।
सन्दर्भ सामिग्री :डोज़ हूँ एन्जॉय लाइफ मोर लाइकली तू बी हेपी एट वर्क (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ५ ,२०१० )
सोमवार, 5 अप्रैल 2010
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