औकलेन्ड यूनिवर्सिटी न्युज़िलेंद के साइंसदानों ने पता लगाया है ,गर्भ काल में माताओं द्वारा किया गया वातापेक्षी हल्काफुल्का व्यायाम(यानी एरोबिक एक्स्सर -साइज़ ) अजन्मे शिशु के लिए अच्छा है .एक ओर इससे जन्म के समय होने वाले शिशु का भार अधिक नहीं बढ़ पाता ,दूसरी ओर इसका गर्भ वती माँ के इंसुलिन रेजिस्टेंस पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता .अलावा इसके शिशु आगे चलकर मोटापे की ज़द में आने (ओबेसिटी )से अपेक्षाकृत( कमोबेश) बचा रहता है .बच्चा छरहरी काया लिए लेकिन तंदरुस्त रहता है .
दरअसल माता द्वारा किया गया ऐसा व्यायाम जिसमे ओक्सिजन की खपत बढ़ जाती है ,माँ के आंतरिक परिवेश को इस प्रकार ढाल देता है जिसका शिशु के पोषण उत्तेजन ओर परिणाम तय भ्रूण के विकाश पर असर पड़ता है .इसीलिए गर्भस्थ का प्रसव के समय वजन कम रहता है .(लेकिन यह उतना कम भी नहीं रहता ,उसके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाले .तंदरुस्ती के अनुरूप रहता है यह वजन )।
हम जानते है जन्म के समय नवजात का वजन ज्यादा होना ,आगे चलकर उसे ओबेसिटी की ओर ले जा सकता है .लेकिन एक सीमा मेंजन्म के समय वजन के बने रहने पर शिशु विकास के आने वाले चरणों में मोटापे से बचा रह सकता है ।
इंडो -क्राइनोलोजी संघ की विज्ञान पत्रिका "क्लिनिकल एन्दोक्राइनोलोजि एंड मेटाबोलिज्म में इस अध्धययन के नतीजे प्रकाशनाधीन हैं ।
अध्धय्यन में पहली मर्तबा इस बात का जायजा लिया जा रहा है ,एरोबिक एक्स्सर -साइज़ -ट्रेनिंग का इंसुलिन सेंस्तिविती पर क्या असर पड़ता है (गर्भकाल के दौरान )।
मेतर्नल-इंसुलिन -रेजिस्टेंस ज़रूरी होता है भ्रूण के गर्भ -कालिक पोषण के लिए .इसका बर्थ वेट से भी सम्बन्ध बना रहता है .बेशक कसरत इंसुलिन रेजिस्टेंस को कमतर करती है लेकिन इसके(इंसुलिन -रेजिस्टेंस ) बहुत ज्यादा घट जाने का फीटल -न्यूट्रीशन पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ता है .लेकिन गर्भकाल के दौरान नियमित हल्का -फुल्का व्यायाम करते रहने से इंसुलिन रेजिस्टेंस सीमित तौर पर (एक सीमा के अन्दर अन्दर )ही घटता है उन महिलाओं के बरक्स जो गर्भवती नहीं हैं ।इसीलियें हल्का -फुल्का ओक्सिज़ंन खपाऊ व्यायाम अच्छा है अजन्मे शिशु के लिए .
सन्दर्भ सामिग्री :एक्स्सर -साइज़ ड्यूरिंग प्रग्नेंसी फॉर ए स्लिम एंड हेल्दी बेबी (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अप्रैल ६ ,२०१० )
बुधवार, 7 अप्रैल 2010
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