सलेक्टिव हीयारींग ?इट्स इन दी ब्रेन ,नॉट इन ईअर्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १६ ,२०१० )
क्या हमारा दिमाग एक रेडियो की तरह काम करते हुए आवाजों के जमघट में से गैर ज़रूरी बातों की छटनी करके अपने काम की बात सुन लेता है और इस एवज दिमाग में अलग रास्तें हैं न्यूरल पाथ वेज़ हैं ,ब्रेन पाथ वेज़ हैं ?
एक ताज़ा शोध के नतीजे इसी और इंगित कर रहें हैं ।
जिन लोगों की श्रवण शक्ति छीजने लगती है वह आवाजों की ऐसी छटनी करने की क्षमता खो देतें हैं .गैर ज़रूरी पृष्ठ भूमि- शोर- शराबा ,गैर ज़रूरी बात चीत इनका पीछा करती रहती है ।
साइंस दान पूरी विनम्रता से कहतें हैं ,दिमाग कीऐसी भूमिका को बूझ समझकर बेहतर श्रवण -सहायक उपकरणोंको (हीयरिंग एड्स ,इम्प्लान्ट्स )तैयार करने में मदद मिल सकती है ।
इस शोध का नेत्रित्व विविएन्ने मिचेल (देफ्नेस रिसर्च ,यु के ) कर रहें हैं .अलावा इसके इन दिनों यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के साइंसदान "यूनिवर्सिटी के ईयर इन्स्तित्युत "के तत्वावधान में कई प्रकार की प्राविधि और तकनीकें आजमा रहें हैं जिनके तहत साइको -फिजिक्स (सम्वेदनाओं के अध्धय्यन से तालुक रखने वाला विज्ञान )से लेकर न्यूरो -फिजियोलोजी (स्नायुविक शरीर क्रिया विज्ञान )तक कई अनुशाश्नों की मदद ली जा रही है .यानी स्नायुतंत्र तथा दिमाग के अध्धययन से ताल्लुक रखने वाले विज्ञानों का सहारा लिया जा रहा है ।
बेशक यदि ऐसे ब्रेन पाथ्वेज़ को बूझा जा सका जो शोर शराबे और बेकार की बातों में से अपने काम की बात छांट लेतें हैं तब श्रवण हीन लोगों को भी एक दिन राहत दिलवाने की दिशा में आगे बढा जा सकेगा .उम्मीद पे दुनिया कायम है .
मंगलवार, 16 मार्च 2010
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