साइंस- दानों ने पता लगाया है ,सर्प अँधेरे में कैसे एक मीटर दूर से माउस (चूहे -चुहियों ) के बदन से निकलते अति कमज़ोर किस्म की गर्मी (इन्फ्रा रेड -रेडियेशन )को भांप कर सटीक तौर पर उस पर झपट कर उसे अपना शिकार बना लेतें हैं .(हम जानतें हैं हमारे शरीर से भी २७३ केल्विन तापमान के ऊपर अवरक्त विकिरण निकलता रहता है ,माउस भी एक कमज़ोर विकिरण उत्सर्जित करता है )।
बरसों से ऐसा माना समझा जाता था रेतिल्स्नेक्स,बोअस ,और पाई -थन्स(विषैले सर्प ,साउथ अमरीका में पाया जाने वाला एकख़ास किस्म का बड़े आकार का सर्प ,अजगर आदि )अपनी आँख और नथुने के मध्य भाग में एक तथा कथित "पिट ओर्गेंन" से युक्त होतें हैं .यही अंग अवरक्त विकिरण के अल्पांश (बहुत कम इन्तेंसिती वाले अवरक्त विकिरण ,बदन से निकली गर्मी )का पता लगा लेता है .फल्ताया अपने गिर्द के शिकार को भांप कर उसपर टूट पडतें हैं ।
केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय के डेविड जुलियस कहतें हैं साँपों में एक जुदा किस्म का "न्युरोलोजिकल -पाथ- वे "स्नायुविक मार्ग ,एक छ्टे-समवेदन अंग (सिक्स्थ सेंस,छटी-इन्द्री )की मानिंद काम करता रहता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :हाव स्नेक्स "सी "प्रे इन दी डार्क (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १६ ,२०१० )
मंगलवार, 16 मार्च 2010
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1 टिप्पणी:
very good
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