एक औस्त्रेलिआइ अध्धय्यनसे जिसमे ४५०० प्री -स्कूलर्स की दिनचर्या पर नजर टिकाये रखी गई एक अति एहम और समाजोपयोगी निष्कर्ष निकला है .जिन नौनिहालों की मम्मियां आंशिक तौर पर ही नौकरी -पेशा से जुडी हैं उनके बच्चे अपेक्षा कृत कम निष्क्री य रहतें हैं बरक्स उन माताओं के जो या तो सिर्फ घरेलू काम काज देखती करतीं हैं या फिर पूरे दिन की पूरी नौकरी (फुल टाइम जॉब )।
यह भी पता चला ,पार्ट टाइम घर से बाहर काम करने वाली माओं के बालगोपाल एक घंटा कम टीवी देखतें हैं .इन्हें ना तो कोच पोटेटो कहा जाएगा और नाही" ट्यूबर" क्योंकि यह "बूब ट्यूब "यानी "बुद्धू बक्से "के सामने उतना वक्त नहीं बिताते .काऊच पोटेटो तो चिपके रहतें हैं ,खाते पीते ,हर वक्त गाहे बगाहे ।
ज़ाहिरहै यह बच्चे अपेक्षाकृत कुशला बुद्धि (तीक्ष्ण बुद्धि )वाले रहतें हैं ।
अलावा इसके इन्हें हर दम हाई -केलोरी फ़ूड (जंक फ़ूड )भी नहीं परोसा जाता जिसकी लत पड़जाती है .बाकी को आप चाहे तो जंक बेबीज़ कह समझ सकतें हैं .(कथित काम क़ाज़ी महिलाओं से क्षमा याचना सहित ,हमें तो इस लव्ज़ "कामकाजी "पर ही आपत्ति है .बाकी क्या भाड़ झोंकती हैं ?)।
ओबेसिटी (मोटापे) की जद और ओवरवेट होने से भी यह अपेक्षाकृत बचे रह सकतें हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :पार्ट टाइम वर्किंग मोम्स बेस्ट फॉर किड्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च ३० ,२०१० )
मंगलवार, 30 मार्च 2010
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