एच आई वी-एड्स के खिलाफ स्तेमाल होने वाली दवाओं में एक खोट यह निकल आती है ,एच आई वी विषाणु इन दवाओं के प्रति एक प्रतिरोध खडा कर लेता है .अपना बाहरी रूप प्रोटीन कोट बदलता रहता है एच आई वी ,म्युतेट भी होता है .लेकिन बनाना ,केला या कदली में एक ऐसा लेक्तींन मिला है जिसकी मौजूदगी में एच आई वी से उत्परिवर्तन के मौके छीनलिए जातें हैं यानी इस लेक्तींन की मौजूदगी में आसान नहीं रह जाता है इस विषाणु का उत्परिवर्तन ,रूप परिवर्तन या म्युतेट हो पाना ।
एक अध्धययन के मुताबिक़ यही लेक्तींन एक कुंजी बन सकता है ,एच आई वी का अभिनव इलाज़ इस लेक्तींन की मदद से हासिल हो सकता है .अध्धय्यन के अनुसार टी -२० और मराविरोक एंटी एड्स (एड्स -रोधी )दवाओं की मानिंदही कदली या केले में पाया जाने वाला एक लेक्तींन असरकारी सिद्ध हो सकता है .बेन्लेक (एक लेक्तींन जो केले में कुदरती तौर पर पाया जाता है )एड्स के खिलाफ इलाज़ में प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है .एच आई वी इन्फेक्शन से बचाए रह सकता है यह लेक्तींन लेबोरेट्री आजमाइशों में अमरीकी रिसर्चों से यही पता चला है .दरअसल यह लेक्तींन एच आई वी के शरीर में प्रवेश को बाधित करता है .यह रसायन (लेक्तींन )उस प्रोटीन खोल पर अपना असर डालता है जिसमे एच आई वी का आनुवंशिक पदार्थ मौजूद रहता है ।
मिशीगन विश्व -विद्यालय के मिचेल स्वांसों कहतें हैं ,अब तक रेट्रो - वायरल दवाओं के साथ यही दिक्कत रही है एच आई वी विषाणु इन दवाओं के असर को भौथ्रा बनाकर एक प्रति -रोध इन दवाओं के ही खिलाफ खडा कर लेता है .लेक्तिंस की मौज़ोदगी में यह मुश्किल ज़रूर हो जाएगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :बनानाज़ में हेल्प प्रोटेक्ट अगेंस्ट एड्स (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मार्च १९ ,२०१० )
शुक्रवार, 19 मार्च 2010
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