रोगों से जूझने बचे रहने में विटामिन -डी एक विधाई भूमिका निभाता है .यह कोशिकाओं के उन दस्तों को जो बघनखे पहने तरह तरह के कीटाणुओं (रोग कारकों ,विषाणुओं ,रोगाणुओं ,परजीवियों )से जूझने के लिए तैयार रहतें हैं और भी ज्यादा मारक बना देता है .यह किलर कोशिकाओं का दस्ता और भी धार दार हो जाता है चौकस हो जाता है विटामिन -डी की मौजूदगी में .इन्हें ही टी- सेल्स कहा जाता है .दुनिया भर में आधे से ज्यादा लोग विटामिन डी की कमी से ग्रस्त हैऐसे में रोग -प्रतिरोधी तंत्र (इम्युनिटी सिस्टम )तकरीबन नाकारा हो जाता है नतीज़ा होता है शरीर का बीमारियों का घर बन जाना ।
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के कार्स्तें गेइस्लेर तथा अन्यसाथी रिसर्चरों ने पता लगाया है इस विटामिन की क्षति पूर्ती करके शरीर की संक्रमणों से जूझने की क्षमता और इलाज़ को और असरदार बनाया जा सकता है .विटामिन -डी का अभाव संक्रमणों से मुकाबले में हमें पछाड़ देता है .और भरपाई संक्रमण को मार भगा सकती है ।
आलमी बीमारियों (पेंदेमिक्स )से मुकाबले में विटामिन -डी एक निर्णायक रोल अदा कर सकता है ।
टी सेल्स विटामिन डी से ही ताकत और होंसला लेतीं हैं .इसकी कमी बेशी इन्हें घात लगाए बैठे पेथोजंस के प्रति ला परवाह बना के छोड़ देती है ,एक तरह से अक्रिय पड़े रहतें हैं ये सैनिक दस्ते .विटामिन -डी इनका राशन पानी ,वारदाना है .रक्त में विटामिन डी का स्तर बनाए रखिये .रोगकारक कमज़ोर पर जायेंगे .सेंध मारी नहीं कर सकेंगे इम्यून सिस्टम की .
मंगलवार, 9 मार्च 2010
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